संजीव जैन
(owner)
"अच्छी थी, पगडंडी अपनी, सड़कों पर तो, जाम बहुत है!!
फुर्र हो गई फुर्सत, अब तो, सबके पास, काम बहुत है!!
नही बचे, कोई सम्बन्धी, अकड़,ऐंठ,अहसान बहुत है!!
सुविधाओं का ढेर लगा है यार, पर इंसान परेशान बहुत है!!\ud83d\udc9e
" गाँव "
मनोज जैन
दुनियां का सबसे छोटा संविधान अमेरिका का है
केवल 13 पन्नों का
उससे भी छोटा संविधान योगी जी का है केवल दो लाइन का
कायदे में रहोगे तो ही फायदे में रहोगे
sanjay jain
किसी का अपमान करके जो सुख मिलता है
वह थोड़े समय का होता है …लेकिन किसी को
सम्मान देकर जो आनंद मिलता है
वह जीवन भर साथ रहता है !
Aditya singh
गीत भी उदास थे, छन्द बदहवास थे
रागिनी अधीर थी, राग बने दास थे
और हम ठगे- ठगे
रात दिन जगे-जगे
चाँद के लिए सदा, चकोर माँगते रहे
रात के चरन पकड़ के भोर माँगते रहे
चाह थी कि हर कली को, तितलियों का प्यार दूँ
आँसुओं की पालकी को, आँख के कहार दूँ
हर झुकी - झुकी नज़र की, आरती उतार दूँ
पतझड़ों से हार चुके , बाग़ को बहार दूँ
किन्तु भाग्य में लिखा
है कौन जो मिटा सका
सिन्धु की लहर में स्वयं बूँद सा समा सका
किन्तु हम बुझे - बुझे
अश्रुबाण से बिंधे
सूख चुके नयन हेतु, लोर माँगते रहे
रात के चरन पकड़ के, भोर माँगते रहे
इस धरा पे कौन है जो दर्द में पला नहीं
या किसी सुबह को साँझ -साँझ में ढ़ला नही
कौन सूर्य है जो स्वयं अग्नि में जला नहीं
कौन है पथिक जो राह - राह में चला नहीं
देह , प्राण , चेतना
है विशुद्ध कल्पना
शूल के नगर - नगर में फूल की विवेचना
सत्य की तलाश में
सृजन में, विनाश में
शान्त प्राण - सिन्धु में हिलोर माँगते रहे
रात के चरन पकड़ के , भोर माँगते रहे
- मुक्तेश्वर पराशर