संजीव जैन
"अच्छी थी, पगडंडी अपनी, सड़कों पर तो, जाम बहुत है!!
फुर्र हो गई फुर्सत, अब तो, सबके पास, काम बहुत है!!
नही बचे, कोई सम्बन्धी, अकड़,ऐंठ,अहसान बहुत है!!
सुविधाओं का ढेर लगा है यार, पर इंसान परेशान बहुत है!!\ud83d\udc9e
" गाँव "
दीपक कुमार गुप्ता
तुम दर्द दो हम आह भी न करें,
इतने भी नहीं है मजबूर की अपना दर्द बयां भी न करें...
दीपक ✍️
Mukesh Bansal
प्रिय सेवानिवृत्त या वरिष्ठजन,
हम लोग वरिष्ठ नागरिक स्वरूप 60 के उस पार एक शानदार उम्र के दौर में हैं । शायद हम लोग उम्र के इस मोड़ पर भी बहुत खूबसूरत दिखते हैं, ऐसा मेरा विश्वास है । हमारे पास लगभग वह सब कुछ है जो हम बचपन में चाहते थे ।
हम स्कूल या काम पर नहीं जाते है लेकिन हमें हर महीने पेंशन बैठे बिठाये मिलती है।हमें कहीं भी जाने के बाद एक निश्चित समय पर वापस नहीं आना पड़ता।हममें से कुछ के पास अभी भी ड्राइविंग लाइसेंस और यहाँ तक कि अपनी कार भी है।
*तो जीवन सुंदर है ना !*
साथ ही, हम अविश्वसनीय रूप से असीमित अनुभव के कारण होशियार भी हैं । हमारा मस्तिष्क थोड़ा धीमा चलने लगा है क्योंकि यह ज्ञान से भरा हुआ है।हमारे दिमांग में कई चीजें जमा हो जाती हैं, जो हमारे आंतरिक श्रवण शक्ति पर दबाव डालती हैं, जिसके कारण हमें कभी-कभी सुनने में समस्या होती है। यह मानव तंत्र बिल्कुल वैसा ही है जैसे कंप्यूटर की हार्ड ड्राइव, जो धीमी हो जाती है क्योंकि वह विभिन्न फाइलों से भर जाती है।हमारा मस्तिष्क कमजोर नहीं लेकिन इसमें बहुत सारी जानकारीयाँ जमा हो गई है। हमारी उम्र के लोग, कभी-कभी हम एक कमरे में जाते हैं और हमें याद ही नहीं रहता कि हम क्या करना चाहते थे, या हमें याद नहीं रहता कि हमने कुछ कहाँ रखा था।
*यह बिल्कुल भी याददाश्त की समस्या नहीं *
प्रकृति हमें कम से कम थोड़ी देर और चलते रहने के लिए मजबूर करती है।
हमारी आयु के सभी लोगों के लिए अवश्यक -
*आवश्यक खाद्य पदार्थ *