संजीव जैन
"अच्छी थी, पगडंडी अपनी, सड़कों पर तो, जाम बहुत है!!
फुर्र हो गई फुर्सत, अब तो, सबके पास, काम बहुत है!!
नही बचे, कोई सम्बन्धी, अकड़,ऐंठ,अहसान बहुत है!!
सुविधाओं का ढेर लगा है यार, पर इंसान परेशान बहुत है!!\ud83d\udc9e
" गाँव "
दीपक कुमार गुप्ता
तुम दर्द दो हम आह भी न करें,
इतने भी नहीं है मजबूर की अपना दर्द बयां भी न करें...
दीपक ✍️
Mukesh Bansal
[आगे]
*गूगल से अनुवादित*
जापान कभी किसी का गुलाम नहीं रहा। इज़राइल की तरह वहाँ भी बड़े स्वाभिमानी लोग रहते हैं। अमेरिका ने उस पर परमाणु बम गिराए। जापान फिर उठ खड़ा हुआ। लेकिन उसके बाद उसने अमेरिका से एक तिनका भी नहीं लिया। जापान में लगभग एक साल बिताने के बाद, एक भारतीय सज्जन की कई लोगों से दोस्ती हो गई थी, लेकिन फिर भी उन्हें लगता था कि वहाँ के लोग उनसे दूरी बनाए रखते हैं, वहाँ किसी दोस्त ने उन्हें कभी अपने घर चाय पर नहीं बुलाया...?
यह बात उन्हें बहुत परेशान कर रही थी, इसलिए आखिरकार उन्होंने अपने एक करीबी दोस्त से पूछा...?
थोड़ी हिचकिचाहट के बाद, उसने जो कुछ भी बताया, उस पर भारतीय सज्जन चुप रहे।
जापानी मित्र ने पूछा - हमें भी भारतीय इतिहास पढ़ाया जाता है, लेकिन प्रेरणा पाने के लिए नहीं, बल्कि शिक्षा पाने के लिए।
"200 साल के शासन के दौरान भारत में कितने अंग्रेज रहे...?"
भारतीय सज्जन ने कहा कि "लगभग 10,000" रहे होंगे!
"तो फिर 32 करोड़ लोगों पर अत्याचार किसने किया?
वे तो आपके ही लोग थे, है ना?
जब जनरल डायर ने "गोली चलाओ" कहा...
1300 निहत्थे लोगों पर गोलियां किसने चलाईं?
उस समय ब्रिटिश सेना तो थी ही नहीं!
एक भी बंदूकधारी (जो सभी भारतीय थे) ने पलटकर जनरल डायर को क्यों नहीं मारा...? इतनी गुलामी
फिर उन्होंने उस भारतीय सज्जन से कहा-
बताओ कितने मुगल भारत आए? कितने सालों तक उन्होंने भारत पर राज किया? और भारत को गुलाम बनाए रखा! और तुम्हारे ही लोगों को मुसलमान बनाकर तुम्हारे खिलाफ खड़ा किया! तुम्हारे ही भाई जिंदा रहने के लिए मुसलमान बन गए। जिन्होंने 'कुछ' पैसों के लालच में अपने ही लोगों पर अत्याचार शुरू कर दिए! अपने ही लोगों के साथ बदसलूकी शुरू कर दी...!!
तुम्हारे देश में चंद्रशेखर आज़ाद जैसे लोग आज़ादी के दीवाने हो गए, लेकिन चंद रुपयों के लालच में तुम्हारे ही लोगों ने उन्हें गिरफ्तार करवा दिया। भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी को बचाने कोई नहीं आया। उनसे हर मुद्दे पर सवाल पूछे गए। क्या गांधी, जो भगत सिंह को बचाने के लिए दो दिन की भूख हड़ताल पर नहीं, बल्कि मरते दम तक भूख हड़ताल पर।
तो दोस्त, तुम्हारे अपने ही लोग सदियों से चंद पैसों के लिए अपनों को ही मारते आ रहे हैं...?
इस स्वार्थी, धोखेबाज, विश्वासघाती, मतलबी, 'दुश्मनों से दोस्ती और भाइयों से गद्दारी' के लिए
मोहन सिंह
सुवेंदु अधिकारी का रोहिंग्या घुसपैठियों को लेकर बड़ी मांग
बिहार में जो हो रहा है, वही यहां भी होना चाहिए। लाखों रोहिंग्या मुसलमानों के नाम यहां की मतदाता सूची में हैं, उन्हें हटाया जाना चाहिए। यह राष्ट्रीय हित का सवाल है। बंगाल को बचाना होगा।
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