संजीव जैन
"अच्छी थी, पगडंडी अपनी, सड़कों पर तो, जाम बहुत है!!
फुर्र हो गई फुर्सत, अब तो, सबके पास, काम बहुत है!!
नही बचे, कोई सम्बन्धी, अकड़,ऐंठ,अहसान बहुत है!!
सुविधाओं का ढेर लगा है यार, पर इंसान परेशान बहुत है!!\ud83d\udc9e
" गाँव "
दीपक कुमार गुप्ता
तुम दर्द दो हम आह भी न करें,
इतने भी नहीं है मजबूर की अपना दर्द बयां भी न करें...
दीपक ✍️
Mukesh Bansal
"बटोगे तो कटोगे" – अधिवक्ता आंदोलन में इसकी प्रासंगिकता
"बटोगे तो कटोगे" यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक सशक्त संदेश है, जो अधिवक्ताओं की एकजुटता और संघर्ष की आवश्यकता को दर्शाता है। एडवोकेट अमेंडमेंट बिल 2025 को लेकर अधिवक्ताओं में जो असंतोष और आंदोलन चल रहा है, उसमें इस नारे की प्रासंगिकता और भी अधिक बढ़ जाती है।
एडवोकेट अमेंडमेंट बिल 2025 – विवाद और चिंता
एडवोकेट अमेंडमेंट बिल 2025 को लेकर अधिवक्ताओं के बीच गहरी चिंता व्याप्त है। इस बिल में कुछ ऐसे प्रावधान प्रस्तावित हैं, जो वकालत पेशे की स्वतंत्रता, स्वायत्तता और सुरक्षा को प्रभावित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए:
1. अधिवक्ताओं की जवाबदेही को कठोर बनाना – कुछ प्रावधान ऐसे हो सकते हैं, जिनसे अधिवक्ताओं के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गुंजाइश बढ़ जाएगी।
2. सरकारी हस्तक्षेप की आशंका – यह बिल अधिवक्ताओं की स्वतंत्रता पर नियंत्रण बढ़ाने की कोशिश कर सकता है।
3. हड़ताल या विरोध प्रदर्शन पर रोक – यदि इस बिल में ऐसा कोई प्रावधान जोड़ा गया तो यह अधिवक्ताओं के लोकतांत्रिक अधिकारों पर चोट होगी।
"बटोगे तो कटोगे" – आंदोलन में इसकी प्रासंगिकता
यह नारा मौजूदा अधिवक्ता आंदोलन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अधिवक्ताओं को यह संदेश देता है कि यदि वे आपसी मतभेद भूलकर एकजुट नहीं होंगे, तो उनकी स्वतंत्रता और अधिकारों पर कुठाराघात होना निश्चित है।
1. एकजुटता की शक्ति – यदि अधिवक्ता समुदाय संगठित रहेगा, तो वे सरकार पर उचित दबाव बना सकते हैं और अपने हक की रक्षा कर सकते हैं।
2. आंदोलन को धार देना – आंदोलन में जितनी अधिक संख्या होगी, उसकी आवाज उतनी ही बुलंद होगी।
3. भविष्य की सुरक्षा – यह केवल वर्तमान का सवाल नहीं है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी वकालत के पेशे को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी अधिवक्ताओं की ही है।
"बटोगे तो कटोगे" नारा हमें यह याद दिलाता है कि एकता में ही शक्ति है। यदि अधिवक्ता इस बिल के खिलाफ संगठित होकर विरोध नहीं करेंगे, तो यह बिल उनके पेशेवर अधिकारों और स्वतंत्रता पर चोट कर सकता है। यह समय आपसी मतभेद भुलाकर एक साथ खड़े होने का है, ताकि अधिवक्ता समुदाय अपने अधिकारों की रक्षा कर सके और न्याय व्यवस्था की स्वतंत्रता बनी रहे।
आपका साथी
Advocate, New Delhi