संजीव सिंह
घोड़ों की रेस में हमारा गधा दौड़ेगा।
फेसबुक छोड़कर इनबूक पर आओ
टिक टोक छोड़कर
मित्रों या रोपोसो डाउनलोड करो।
एक किस्सा याद आ रहा है, जब घर में पालक नही था तो पनीर के जगह बथुआ मिला दिया , ये कहकर की बथुआ भी हरा है और अपने खेत का है।
आप जब फेसबुक पर आते हो तो वो आपको एक प्राइवेसी पालिसी पढ़वाता है और जब आप सन्तुष्ट होंतें हैं तभी वो आपको प्रोफाइल बनाने देता है, इसके अलावा भी फेसबुक अमेरिकन कानूनों के तहत बंधा हुआ है जहाँ वो आपका डेटा नही बेच सकता, इसके बाद थोड़ी सी भी आईटी की जानकारी रखने वाले ने सर्वर नाम का शब्द सुना होगा, फेसबुक का डेटा सर्वर दुनिया के सबसे बड़े सर्वर में से एक है, साथ ही आजके तारीख़ में फेसबुक दुनिया की सबसे बड़ी कम्पनियों में से एक है।
अब बात करतें हैं उन एप्पस की जो इसके विकल्प के रूप में दिखायें जा रहें हैं , पहली बात तो ये की ये स्वदेशी जिसके नाम पर इनको बेचा जा रहा है, वो बिल्कुल भी नहीं है, इनका सोर्स कोड दुनिया के दूसरे देशों के डेवलपर से खरीदा गया है जैसे "मित्रों" नामक एप्प को मात्र 2600 रुपये में एक पाकिस्तानी डेवेलोपर ने भारतीय कंपनी को बेचा है। अब बात करतें हैं प्राइवेसी पालिसी की तो अबतक मेरे ज्ञात जानकारी में ऐसी कोई पालिसी है ही नही, इसका सीधा सा मतलब है कि ये आपका डेटा किसी को भी बेचने के लिए स्वतंत्र हैं, आखिरी बात सर्वर अभी तक इनका हो कहीं ये ज्ञात नही है, यानी किसी कोने में बैठा कोई डेवेलोपर अपने 4 टीबी के सिस्टम पर इसको चला रहा है और जैसे ही काम भर लोगों के डेटा इसके पास आएगा , ये निकल लेगा।
सबसे आखिरी बात , चलो आपको डेटा से कोई फ़र्क़ नही पड़ता फिर भी परफॉर्मेंस के नाम पर शून्य बटा सन्नाटा हैं, आप एक बड़ी वीडियो अपलोड कीजिये और आपका प्रोफाइल हैंग करने लगेगा, और 2 mb से बड़ी फ़ोटो भी आप नही भेज सकते। साथ ही मैसेंजर की सुविधा बेहद बकवास है, कुल मिलाकर एक फ्लॉप एप्प , जो दस दिन में आपकी जानकारी बेचके निकल लेगी।
अब बात करतें हैं फेसबुक पर वामपंथियों के प्रभाव की, फेसबुक का मालिक मार्क एक राइट विंगर है पर एक इंटरव्यू में उसने खुलेआम कहा है कि यहाँ सिलिकॉन वैली में उन्ही लोगों का कब्जा है तो उसे भी उन्ही के हिसाब से चलना पड़ता है, वही बात भारत मे भी लागू होती है, यहाँ के सिस्टम की जड़ो में वामपंथियों का कब्जा है आप कैसे लड़ोगे इनसे, कल को इस एप्प पर भी वामपंथियों ने प्रभुत्व स्थापित कर लिया , ऐसा नही होगा इसकी क्या गारंटी है ?
तो सौ बातों की एक बात जब तक अम्बानी, अडानी, टाटा , बिड़ला या मित्तल जैसा कोई संगठन अपना एप्प नही लाता , यहीं फेसबुक पर बने रहिये और यहीं से लड़ाई चालू रखिये।
एक मित्र का तार्किक सच्चाई से भरा विश्लेषण
मैं कल INBOOK को छोड़ दूंगा.
Kapil Gupta
Slow start I hope this this picks up. Wish you all the success.