राहुल वर्मा
अभी भला रुक गए कदम क्यों?
अभी कहां है यात्रा पूरी?
नियति नहीं तुम निर्णायक हो!
नायक! तुम बिन कथा अधूरी !
बहुत हुआ विषपान उठो अब
जीवन का अमृत पीना है!
तुमको अब फिर से जीना है!
माना जीवन की निष्ठुरता
अंतर्मन चोटिल करती है।
बिखरी उम्मीदों की पीड़ा
पलकों को बोझिल करती है!
नहीं! वेदनाओं से थक कर
कहीं हार कर मत रुक जाना!
तुम जीवन का हाथ पकड़ना
कसकर उसको गले लगाना
तुम खुद ही खुद की औषधि हो
घाव तुम्हे अपने सीना है
तुमको अब फिर से जीना है!
जब रिश्ते बेमानी हों तो
तुम कुछ रिश्ते नए बनाना!
आसमान से बातें करना
नदियों को कुछ गीत सुनाना!
बारिश में बूंदों के संग संग
अपनी लय में झूम के गाना!
अपने मांझी खुद ही बनना
अपने होने पर इतराना!
चुपके चुपके रोते रहना,
ये जीना भी क्या जीना है?
तुमको अब फिर से जीना है!
तय कर लो क्या नियति
लेख के सारे पन्ने कोरे होंगे?
या सपनों की स्याही में
कुछ सतरंगी से डोरे होंगे?
हार मान कर जीवन जीना
बोलो ये स्वीकार नहीं है!
'भाग्य! तुम्हे सारे ही निर्णय
लेने का अधिकार नहीं है!
तुम ही बोलो मन का संबल
भला भाग्य ने कब छीना है?
तुमको अब फिर से जीना है!!