राहुल वर्मा
खिल भी गया ग़र
ये गुलिस्तां दोबारा
वो ही फूल तो नहीं
आएंगे मेरे यारा!
नया दौर होगा
नये नये फूल होंगे
नये फूलों से क्या
वाबस्ता हमारा!
तुम्हें ही मुबारक
यह बहारों का दौर
हमें तो करना है
वीरानों में गुज़ारा!
तुम्हारे हक़ में हो
चांद तारे सारे
टूट गया हमारे
हक़ का हर सितारा!
क्या काम हमें फूल
और शबनम से
हमारे सीने में तो
है सुलगता अंगारा!!