राहुल वर्मा
कायर पंछी कहलाएंगे
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दो पंछी ग़म में बैठे थे,
निकले आँसू असहनीय थे।
उनके रोने से ऐसा लगा,
वे घर से बेघर हो गए थे।
एक पेड़ पर उनके पूर्वज
युग युग से रहते आए थे
उन्होंने अपने दुख सुख
उसी वृक्ष के साथ बिताए थे।
एक समय की बात
पेड़ तूफ़ान से जूझ रहा था
इतनी विकराल हवा में भी
वह अपनी साँसें खोज रहा था।
बिलखते आए वहाँ दो पंछी,
बेचारे तूफ़ान में फँसे हुए थे।
इस यमराज रूपी तूफ़ान ने
उनके घर बार तोड़ दिए थे।
पंछी बोले, हे! पेड़ देवता
तुम तो बहुत बड़े हो
डरते नहीं तुम तूफ़ानों से
तुम इंसानों से भी परे हो।
मुझे आसरा दे दो भगवन
मैं वक्त का मारा पंछी हूँ।
इस विपदा की दुखित घड़ी में
ये तूफ़ान हमारा भक्षी है
पेड़ ने अपने दुख में भी
हमारा साथ निभाया
हमारी पीढ़ी दर पीढ़ी को भी
हँसकर गले लगाया।
कुछ लोग लगे काटने पेड़ को
पेड़ दर्द से चिल्लाया।
कुछ आवारा पंछी जल्दी से
उड़कर लगे भागने।
पेड़ था दुख से घायल
वो लगा उन्हें समझाने
" बेटों" मेरा अन्त समय है
मैं अब गिरने वाला हूँ।
दूर जाओ तुम बच्चों को लेकर
क्यों अपनी जान गंवाते हो
मिलता नहीँ जन्म जहाँ में
क्यों इसको व्यर्थ गंवाते हो।
तुम्हारी जान बच्चों की दुनिया
क्यों इसको दाँव पर लगाते हो।
"पंछी बोले अरे दोस्त मेरे!
हम साथ तेरा ना छोड़ेंगे
इस दुख की घड़ी में मरकर भी
हम दामन तेरा ना छोड़ेंगे।
तुम्हारे उपकार का बदला
हम कभी चुका ना पाएंगे।
यदि साथ तेरा छोड़ दिया
तो देशद्रोही हम कहलाएंगे
जी कर भी हम जीते जी
कायर पंछी कहलाएंगे।
(राहुल वर्मा)