अपने आप को रंगमंच की कठपुतली मानकर सब कुछ ईश्वर के हाथों में है यह सोच कर सब कुछ ईश्वर के अधीन कर... moreअपने आप को रंगमंच की कठपुतली मानकर सब कुछ ईश्वर के हाथों में है यह सोच कर सब कुछ ईश्वर के अधीन कर देना एक नकारात्मक कल्पना है। कारण स्पष्ट है, कठपुतली की डोर कठपुतली की तरह ही आंखों को दिखाई देती है, लेकिन दूसरी तरफ मनुष्य का नियंत्रण करने वाली ईश्वर की डोर इंद्रियों को दिखाई नहीं देती।
पृथ्वी,वायु,जल,अग्नि और आकाश इन तत्वों का बना मनुष्य। अपने अस्तित्व का अनुभव तो कर सकता है लेकिन यह अस्तित्व कैसे यह नहीं जानता। दूसरे शब्दों में, किन्ही पांच तत्वों से बने किसी मानव निर्मित वस्तु का ‘अस्तित्व’ नहीं होता। वस्तु जीवित नहीं होती और मानव वस्तु नहीं होता। कठपुतली वस्तु है। less
Pankaj Khare Om_G
Being evil is something only Humans are capable of.
Again today we are witnessing the dark side of human beings. Animal abuse is getting common day by day and these instances bring shame to us as a species.
An elephant in Kerala has lost her life in an horrifying incident where the local people fed her pineapple stuffed with crackers, moreover she was also pregnant. She was a friendly elephant and trusted humans for food and meant no harm yet she became a victim to one of the most gruesome act of humans. The firecracker exploded in her mouth causing excruciating pain, and even in those testing times she did not harm a single human being or rampaged through the village. She entered a river to calm her nerves under flowing water as we can only imagine the pain she might have been suffering but before she was administered for treatment, she lost her life.
During the postmortem it was confirmed that she was pregnant. Such incidents are disturbing and on a rise, it's high time now that the laws are revised so that we can ensure a strict punishment for animal abusers which could help us to reduce the number of such cases in the coming future.
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Such cruelty to an animal is not only inhumane but it is also a terrible crime. The culprits should be punished for two murders.
-Pankaj Khare Om_G
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Brijesh Pandey
♨♨केहू नईखे बोलत बा♨♨
काल चक्र ई अइसन सबके, चढ़ल कपारे डोलत बा।
बड़का भइया शहर से अइलन, केहू नईखे बोलत बा।।
बॉम्बे जइसन शहर में उनकर,
चढ़ल जवानी बीत गइल,
उनहीं के पैसा से हमरे,
घर कै पक्की भीत भइल,
लमवैं से अब छोटका बड़का, सबही मेथी छोलत बा।
बड़का भइया शहर से अइलन, केहू नईखे बोलत बा।।
पांव में छाला पड़ल बा उनके,
अखिया जइसे जागल बा,
बांम्बे से पैदल अइले में ,
सोरह दिनवां लागल बा,
बड़े प्यार से बोलत बाड़े , मुंहवां केहु ना खोलत बा।
बड़का भइया शहर से अइलन, केहू नईखे बोलत बा।।
बड़की भउजी मुहां तोपि के,
कलुआ के समझावति बाड़ी,
अबहिन पजरे मत जाइहे तै,
ओके आंखि देखावति बाड़ी,
अइसन पापी हवे कोरोना, रिश्ता में विष घोलत बा।
बड़का भइया शहर से अइलन, केहू नईखे बोलत बा।।
टिबुले वाली मडई में अब,
भइया कै चरपाई बा,
मस मांछी के छोड़ि उहाँ ना,
केहु कै आवा जाही बा,
कहैं "लाल" ई मनवां हमरा भितरैं भीतर खउलत बा।
बड़का भइया शहर से अइलन, केहू नईखे बोलत बा।।