अशोक "प्रवृद्ध"
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अन्धं तम: प्रविशन्ति येऽसंभूतिमुपासते ।
ततो भूय इव ते तमो य उ संभूत्यां रता: । ।
-यजुर्वेद 40/9
अर्थात - वह व्यक्ति प्रगाढ़ अन्धकार को प्राप्त होते हैं, जो असम्भूति (त्रिगुणात्मिका मूलप्रकृति) की उपासना करते हैं । उससे भी अधिक अन्धकार को वे प्राप्त होते हैं, जो सम्भूति (स्थूल प्रपन्च) की उपासना करते हैं । स्थूल जगत को ही परमार्थ समझते हैं ।