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संजीव जैन
गुजरात के वडोदरा में नाव पलटने से कई बच्चों के असामयिक निधन का समाचार अत्यंत दु:खद एवं पीड़ादायक है।
ईश्वर दिवंगत आत्माओं को अपने श्रीचरणों में स्थान प्रदान करे व परिजनों को यह दु:ख सहन करने की शक्ति दे।
ॐ शांति:!
राजेश शर्मा
माँ भारती के अमर सपूत, महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, जलियांवाला बाग नरसंहार का प्रतिशोध लेकर विश्व में भारतीय शौर्य और साहस को प्रतिष्ठित करने वाले सरदार उधम सिंह के बलिदान दिवस पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि!
आपका अतुल्य बलिदान राष्ट्र सेवा हेतु सभी को सदैव प्रेरित करता रहेगा।
गगन शर्मा
पेट्रोल पंप मशीनों में रुपए की गणना दो डिजिट में फीड है। सौ रुपए प्रति लीटर पेट्रोल का आंकड़ा पार होते ही मशीनें गणना नहीं करेंगी। जिससे पम्प संचालकों को देसी माप से पेट्रोल बेचने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
Pankaj Doshi
किसान अण्डोलन सुरु होने के बाद से चुइयो और चमचों की उन पोस्ट ने पका दिया जिनमें लिखा है या फोटो चेप रखे हैं
देखो जो गेंहूँ 18 रुपये किलो आटा 180 का छटाँक भर
मक्का 9 रुपये भुट्टा सौ का मक्के का आटा 40 का
मेरी गोभी 2 रुपये की अम्बानी 80 के बेच रिया है.....
मेरी बेचते वखत भी मारी और में खरीदते वक्त भी ठुकवाऊंगा....
भाई तू ठुकाई एन्जॉय करता है तो मोदी क्या करे...
रे बावड़ीगाँ$ मन्ने नू बता भाई पहली बात तू 9 रुपये की मक्की बेच 40 का आटा लिया क्यों 2 रुपये की पिसाई दे देता भले आदमी.....
दूसरी तेरी गोभी 2 रुपये में मंडी के आढ़तिये ने ली #आढ़तिया_कौन_अब्दुल जोल्हा.... उसने आगे कित्ते की बेची उससे पूछ..... अब तेरे इस बात से भी दर्द के अब्दुल तेरे से सस्ती ले आगे मंहगी बेचता है मोदी ने तुझे ये छूट भी दे डाली के अब्दुल को मत दे सीधे अम्बानी को बेच या उसे भी छोड़ खुद छटाई, सफाई पैकिंग कर और बेच तू भी 80 की....... पर न तेरे को तो चईये के खेत में गोभी भी न लगानी पड़े और तेरे और अब्दुल के खाते में 80 रुपये किलो के रेट से 20 कविंटल बीघे के हिसाब से मोदी पैसा डाल दे.......
तो भइये तू ढक्कन है..... मोदी थोड़े न है....
अब आते हैं अब्दुल की कहानी पर तो जिनको भी दर्द उठ रहा है किसान आंदोलन पर सरकार द्वारा बिल वापस न लेने से या जिनके दूध उतर रहा है जाओ यार अपने शहर की मंडी जाओ सुबह जल्दी उठ कर देखो वहां बैठे आढ़तिये कौन हैं...... अब्दुल के मामू ख़ालू या कोई और
पूरा एक छत्र राज है फल, शब्जी के व्यापार पर और ये कृषि उत्पाद ही है.....
कृषि बिल का सबसे बड़ा फायदा शब्जी फल उगाने वाले किसान को होगा..... जिसकी ये अब्दुल ब्रिगेड खुली मरती थी.....
समझिए के कृषि बिल से 1 बिस्वा जमीन न होने के बाद भी अब्दुल को दिक्कत काहे है..... काहे अब्दुल अचानक किसान बन गया....
अब्दुल सड़क पर बैठा है मुझे समझ आता है.... पर तू काहे प्यारे..?
और अगर तुझे सड़क पर बैठने में मज़ा आरहा है तो भाई अपनी गोभी रख कर भी बैठ साथ में अम्बानी 80 बेच रहा तू 40 बेच..... लगा दे वाट अम्बानी की दिखा धंधे के जोहर अब तो कोई मंडी समिति वाला आकर तुझे रोक भी न सकता ....... यही तो नया कानून है!
Dharmendra Sharma
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Ranjeet Rai
सऊदी अरब ने अमेरिकी डॉलर को छोड़ दिया और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ 9 जून को एक्सपायर होने वाले 50 वर्षीय 'पेट्रो-डॉलर' समझौते को नवीनीकृत करने से इनकार कर दिया है।
इसके बहू आयाम होंगे। सबसे पहले तो सऊदी अरब को अमेरिका द्वारा सुरक्षा की गारंटी खत्म हो जाएगी और सऊदी अरब भी भविष्य में राजनीतिक तौर पर असुरक्षित हो जाएगा। आने वाले समय में हम सऊदी अरब के अंदर भी गृह युद्ध जैसे हालात देख सकते हैं। यहां यह समझना बहुत जरूरी है कि अपने डॉलर के प्रभाव को कम होता देखते हुए अमेरिका हर हालत में सऊदी से बदला लेगा। इसके साथ-साथ विश्व में बड़ी तेजी से पेट्रोल को इलेक्ट्रिक वाहनों द्वारा रिप्लेस किया जा रहा है और आने वाले समय में तो हाइड्रोजन का जमाना होगा। ऐसे में सऊदी अरब पूर्णतया घुटनों पर आ जाएगा अभी तक इस्लाम के नाम पर बड़ी-बड़ी डोनेशन देने वाला सऊदी अरब अब शायद भविष्य में देखभाल कर खर्च करेगा।
दूसरा अमेरिका का पेट्रोल डॉलर साम्राज्य भी धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा जिसका पूरे विश्व की आर्थिक स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।
विस्तृत रिपोर्ट:
सऊदी अरब अब केवल अमेरिकी डॉलर में तेल बेचने के बजाय चीनी आरएमबी, यूरो, येन, आईएनआर और युआन सहित कई मुद्राओं में तेल बेचेगा।
हेनरी किसिंजर ने 1974 में सऊदी के साथ 50 वर्षीय समझौता किया था कि तेल व्यापार में अमेरिकी डॉलर का वर्चस्व होगा। सऊदी को इस समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए अमेरिका द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से ब्लैकमेल किया गया था, बदले में ईरान और अन्य कट्टरपंथी देशों के खिलाफ समर्थन का वादा किया गया था। कृपया ध्यान दें कि अगस्त 1971 में निक्सन द्वारा "अस्थायी रूप से" स्वर्ण मानक को निलंबित करने के बाद अमेरिकी डॉलर ने अपनी विश्वसनीयता खो दी थी। अमेरिकी डॉलर को पेट्रोडॉलर बनाकर, अमेरिका इसे वैश्विक आरक्षित मुद्रा बना सकता था, जिससे वह अपनी आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए अंधाधुंध ऋण जुटा सकता था।
अब....इसके पास न तो गोल्ड स्टैंडर्ड है और न ही पेट्रोडॉलर, जिससे यह अत्यधिक असुरक्षित हो जाएगा और कर्ज बहुत महंगा हो जाएगा और यह अंधाधुंध तरीके से यूएसडी भी नहीं छाप पाएगा, जैसा कि यह आज तक करता रहा है।
आने वाले दिनों में अमेरिकी अर्थव्यवस्था गंभीर खतरे में होगी। दरारें विकसित होने लगी हैं।
सऊदी अरब द्वारा पेट्रोडॉलर समझौते को नवीनीकृत न करने का महत्व बहुआयामी है और वैश्विक आर्थिक और भू-राजनीतिक गतिशीलता दोनों पर इसका प्रभाव पड़ता है। यहाँ बताया गया है कि यह क्यों महत्वपूर्ण है:
1. अमेरिकी डॉलर पर प्रभाव: पेट्रोडॉलर प्रणाली, जिसे 1970 के दशक में स्थापित किया गया था, अमेरिकी डॉलर को दुनिया की आरक्षित मुद्रा के रूप में बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण कारक रही है। इस प्रणाली के तहत, सऊदी अरब और अन्य तेल उत्पादक देश अपना तेल अमेरिकी डॉलर में बेचने के लिए सहमत हुए, जिससे डॉलर की वैश्विक मांग में वृद्धि हुई। समझौते के नवीनीकरण न होने से, अमेरिकी डॉलर की वैश्विक मांग में कमी आ सकती है, जिससे इसका मूल्य संभावित रूप से कमज़ोर हो सकता है।
2. भू-राजनीतिक पुनर्संरेखण: पेट्रोडॉलर समझौता सिर्फ़ एक आर्थिक व्यवस्था नहीं थी, बल्कि भू-राजनीतिक भी थी। यह अमेरिका और सऊदी अरब के बीच एक व्यापक गठबंधन का हिस्सा था, जिसमें सऊदी अरब को अमेरिका की ओर से सैन्य और राजनीतिक समर्थन शामिल था। समझौते को नवीनीकृत न करने का निर्णय सऊदी अरब के भू-राजनीतिक संरेखण में बदलाव का संकेत दे सकता है, संभवतः चीन, भारत और रूस जैसी अन्य वैश्विक शक्तियों के करीब जा रहा है, जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अमेरिकी डॉलर से दूर जाने की वकालत कर रहे हैं।
3. आर्थिक प्रभाव: अमेरिका के लिए, पेट्रोडॉलर समझौते के खत्म होने से तेल की कीमतें और मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। चूंकि तेल की कीमत डॉलर में होती है, इसलिए कमज़ोर डॉलर तेल को और महंगा बना देगा। इससे व्यवसायों और उपभोक्ताओं के लिए लागत बढ़ सकती है, जो संभावित रूप से आर्थिक विकास को धीमा कर सकती है।
4. वित्तीय बाज़ार प्रभाव: अमेरिकी वित्तीय बाज़ार, जिन्हें अमेरिकी डॉलर और अमेरिकी ऋण की वैश्विक मांग से लाभ हुआ है, उन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। यदि अमेरिकी डॉलर की मांग कम है, तो अमेरिकी सरकार के बॉन्ड की मांग भी कम हो सकती है, जो वैश्विक वित्तीय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
5. वैश्विक शक्ति गतिशीलता में बदलाव: पेट्रोडॉलर समझौता अमेरिका की आर्थिक और भू-राजनीतिक शक्ति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। इसका अंत वैश्विक शक्ति गतिशीलता में बदलाव का संकेत दे सकता है, जिसमें अन्य देशों और मुद्राओं को संभावित रूप से अधिक प्रभाव प्राप्त हो सकता है। डीप स्टेट ने दुनिया भर में शासन परिवर्तन, अशांति और आतंकवाद को निधि देने के लिए पेट्रो डॉलर का उपयोग किया है
6. अन्य मुद्राओं के लिए अवसर: पेट्रोडॉलर समझौते के समाप्त होने के साथ, चीनी युआन, INR या रूसी रूबल जैसी अन्य मुद्राओं के लिए वैश्विक तेल व्यापार में अधिक प्रमुखता प्राप्त करने का अवसर हो सकता है। यह वैश्विक व्यापार में डी-डॉलरीकरण की चल रही प्रवृत्ति को तेज कर सकता है।
संक्षेप में, पेट्रोडॉलर समझौते का अंत संभावित आर्थिक, भू-राजनीतिक और वित्तीय बाजार निहितार्थों के साथ एक महत्वपूर्ण घटना है। यह कमजोर अमेरिकी डॉलर, उच्च तेल की कीमतों और वैश्विक शक्ति गतिशीलता में बदलाव का कारण बन सकता है। कमज़ोर अमेरिका का मतलब है दूसरे देशों का उदय और आज सबसे महत्वपूर्ण जो उभरती हुई शक्ति है वो है भारत। इसका मतलब है कि अगले 10-25 सालों में रेडिकलिज्म बिखर जाएगा जिसे पेट्रोडॉलर से फ़ंड किया गया था