Amit Kishore Kapoor
. ॐ परमात्मने नम:
श्री गणेशाय नम:
#राधे कृष्ण
( मन के निग्रह का विषय )
अर्जुन उवाच
योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन।
एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम्॥
चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्।
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्॥
. ( श्रीमद्भगवद्गीता ६/३३, ३४ )
हिन्दी अनुवाद : -
अर्जुन बोले- हे मधुसूदन! जो यह योग आपने समभाव से कहा है, मन के चंचल होने से मैं इसकी नित्य स्थिति को नहीं देखता हूँ।
क्योंकि हे श्रीकृष्ण! यह मन बड़ा चंचल, प्रमथन स्वभाव वाला, बड़ा दृढ़ और बलवान है। इसलिए उसको वश में करना मैं वायु को रोकने की भाँति अत्यन्त दुष्कर मानता हूँ।
व्याख्या : -
हे मधुसूदन! यह योग जो आप पहले बता आये हैं, जिसमें समत्व भावदृष्टि मिलती है, मन के चञ्चल होने से बहुत समय तक इसमें ठहरने वाली स्थिति में मैं अपने को नहीं देखता।
हे कृष्ण! यह मन बड़ा चंचल है, प्रमथन स्वभाव वाला है ( प्रमथन अर्थात् दूसरे को मथ डालने वाला है ), हठी तथा बलवान है, इसलिये इसे वश में करना मैं वायु की भांति अतिदुष्कर मानता हूँ। तूफानी हवा और इसे रोकना बराबर है।
इस पर योगेश्वर श्रीकृष्ण का प्रतिउत्तर कथन अगले सत्र में मित्रों-
हरि ॐ तत्सत हरि:
#ॐ गुं गुरुवे नम:
#राधे_राधे राधे, बरसाने वाली राधे, तेरी सदा हि जय हो #माँ |
शुभ हों दिन रात सभी के |