नलिनी Nalini Mishra (Advocate)
सामने देश माता का भव्य चरण है
जिह्वा पर जलता हुआ एक बस प्रण है
काटेंगे अरि का मुण्ड कि स्वयं कटेंगे
पीछे परन्तु सीमा से नहीं हटेंगे
माँगेगी जो रणचण्डी भेंट चढ़ेगी
लाशों पर चढ़ कर आगे फौज बढ़ेगी।
- दिनकर
शशि यादव
(owner)
सुना है आजकल लोगो को "हिंदुस्तान" कहने में दिक्कत है,
चलो फिर आज पूरे देश मे
हिंदुस्तान_जिंदाबाद के नारे की होड़ लगा देते है
संभव जैन
पूरे देश में 43 लाख ट्रैक्टर हैं, 62 करोड़ किसान हैं। कुल सब्सिडी का 65 प्रतिशत पंजाब, हरियाणा और आंशिक उत्तर प्रदेश को दी जा रही है। पंजाब में धान का कुल उत्पादन 15 लाख टन है जबकि एमएसपी में खरीद 23 लाख टन का हो रही है। यहां देखने वाली बात है कि उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान से भी जो किसान वहां पहुंचे हैं वे सारे सिख किसान हैं।
अब इन कानूनों के लागू होने से यह सब कहां से मिलेगा सारे किसानों में बंट जाएगा। इसी लिए कोई तर्क वितर्क कोई कारण, कोई कमेटी, सरकार नहीं बस सड़क बन्द कर संसद से बहुमत से पारित कानून निरस्त चाहिए।
अब तक मछली को पानी पीते किसी ने नहीं देखा होगा। यहां ये मछलियां दूसरे के हिस्से का पानी भी पी रही हैं।
10-15 हजार लोग अगर सोच रहे हैं कि वे कानून रदद करवा लेंगे उन्हें पता होना चाहिए कि को लोग समर्थन में घरों में बैठे हैं क्या वे चुप रहेंगे।
लवली ठाकुर
पूरे इंटरनेट पर APMC act और मण्डी परिषद को इतनी आसान भाषा मे समझाने वाला दूसरा लेख नही मिलेगा।
"पैरों में जंजीर और गले में फन्दा"
कभी सोचा है-??- किसानों का "धन्धा" क्यों बांधा गया था...
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सही क्या और गलत क्या -??-
क्या किसानों का "तीन अध्यादेश" के विरुद्ध आंदोलन उचित - है भी या नहीं ?
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सन 1960-70 के आसपास देश में कोंग्रेसी सरकार ने एक कानून पास किया जिसका नाम था - "apmc act" ...
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इस एक्ट में यह प्रावधान किया गया कि किसान अपनी उपज केवल सरकार द्वारा तय स्थान अर्थात सरकारी मंडी में ही बेच सकता है।
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इस मंडी के बाहर किसान अपनी उपज नहीं बेच सकता। और इस मंडी में कृषि उपज की खरीद भी वो ही व्यक्ति कर सकता था जो apmc act में registered हो, दूसरा नही।
इन registered person को देशी भाषा में कहते हैं "आढ़तिया" यानि "commission agent".....
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इस सारी व्यवस्था के पीछे कुतर्क यह दिया गया कि व्यापारी किसानों को लूटता है इस लिये सारी कृषि उपज की खरीद बिक्री -"सरकारी ईमानदार अफसरों" के सामने हो।
जिससे "सरकारी ईमानदार अफसरों" को भी कुछ "हिस्सा पानी" मिलें।
इस एक्ट आने के बाद किसानों का शोषण कई गुना बढ़ गया। इस एक्ट के कारण हुआ क्या कृषि उपज की खरीदारी करनें वालों की गिनती बहुत सीमित हो गई।
किसान की उपज के मात्र 10 - 20 या 50 लोग ही ग्राहक होते है। ये ही चन्द लोग मिल कर किसान की उपज के भाव तय करते है।
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मजे कि बात ये है कि :--- फिर रोते भी किसान ही है कि :---
इस महगाई के दौर में - किसान को अपनी उपज की सही कीमत नही मिल है।
जब खरीददार ही - "संगठित और सिमित संख्या में" - होंगे तो - सही कीमत कैसे मिलेगी - ??-
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यह मार्किट का नियम है कि अगर अपने producer का शोषण रोकना है तो आपको ऐसी व्यवस्था करनी पड़ेगी जिसमें - "खरीददार" buyer की गिनती unlimited हो।
जब खरीददार ज्यादा होंगे तभी तो - किसी भी माल की कीमत बढ़ेगी।
लेकिन वर्तमान में चल रही - मण्डी व्यवस्था में तो - किसान की उपज के मात्र 10 - 20 या 50 लोग ही ग्राहक होते है।
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apmc act से हुआ क्या कि अगर किसी retailer ने ,किसी उपभोक्ता नें ,
किसी छोटे या बड़े manufacturer ने, या किसी बाहर के trader ने किसी मंडी से सामान खरीदना होता है तो वह किसान से सीधा नहीं खरीद सकता उसे आढ़तियों से ही समान खरीदना पड़ता है।
इसमें आढ़तियों की होगी चांदी ही चाँदी और किसान और उपभोक्ता दोनो रगड़ा गया।
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जब मंडी में किसान अपनी वर्ष भर की मेहनत को मंडी में लाता है तो buyer यानि आढ़तिये आपस में मिल जाते हैं और बहुत ही कम कीमत पर किसान की फसल खरीद लेते हैं।
याद रहे :-- बाद में यही फसल ऊचें दाम पर उपभोक्ता को उबलब्ध होती थी।
यह सारा गोरख धंदा ईमानदार अफसरों की नाक के नीचे होता है।
एक टुकड़ा मंडी बोर्ड के अफसरों को डाल दिया जाता है।
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मंडी बोर्ड का "चेयरमैन" को लोकल mla मोटी रिश्वत देकर नियुक्त होता है। एक हड्डी राजनेताओं के हिस्से भी आती है। यह सारी लूट खसूट apmc act की आड़ में हो रही है।
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दूसरा सरकार ने apmc act की आड़ में कई तरह के टैक्स और commission किसान पर थोप दिए।
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जैसे कि :--- किसान को भी अपनी फसल "कृषी उपज मंडी" में बेचने पर 3%, मार्किट फीस ,
3% rural development fund और 2.5 commission ठोक रखा है।
मजदुरी आदि मिलाकर यह फालतू खर्च 10% के आसपास हो जाता है। कई राज्यों में यह खर्च 20% तक पहुंच जाता है। यह सारा खर्च किसान पर पड़ता है।
बाकी मंडी में फसल की transportation ,रखरखाव का खर्च अलग पड़ता है।
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मंडियो में फसल की चोरी ,कम तौलना , आम बात है। कई बार फसल कई दिनों तक नहीं बिकती किसान को खुद फसल की निगरानी करनी पड़ती है। एक बार फसल मंडी में आ गई तो किसान को वह "बिचोलियों" द्वारा तय की कीमत पर,
यानि - ओने पोंने दाम पर बेचनी ही पड़ती है।
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क्योंकि कई राज्यों में किसान अपने राज्य की दूसरी मंडी में अपनी फसल नहीं लेकर जा सकता । दूसरे राज्य की मंडी में फसल बेचना apmc act के तहत गैर कानूनी है।
Apmc act सारी कृषि उपज पर लागू होता है चाहे वह सब्ज़ी हो ,फल हो या अनाज हो। तभी हिमाचल में 10 रुपये किलो बिकने वाला सेब उपभोक्ता तक पहुँचते पहुँचते 100 रुपए किलो हो जाता है।
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आढ़तियों का आपस में मिलकर किसानो को लूटना मैंने {लेखक ने} अपने आंखों से देखा है। मेरे पिताजी खुद एक आढ़तिया थे। उन्होंने ने हमेशा किसानों को उनकी फसल का सही दाम दिलवाने की कोशिश की। किसान मंडी में तब तक अपनी फसल नहीं बेचता था जब तक मेरे पिता जी बोली देने के लिये नहीं पहुँचते थे। किसान मेरे पिता जी को ट्रैक्टर पर बिठा कर खुद लेकर जाते थे। जिस फसल का retail में दाम 500 रुपये क्विंटल होता था सारे आढ़तिये मिलकर उसका दाम 200 से बढ़ने नहीं देते थे। ऐसे किसानों की लूट मैंने अपनी आंखों के सामने देखी है।
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मोदी सरकार द्वारा किसानों की हालत सुधारने के लिये तीन अध्यादेश लाएं गये हैं।
जिसमे निम्नलिखित सुधार किए गए हैं।
1. अब किसान मंडी के बाहर भी अपनी फसल बेच सकता है और मंडी के अंदर भी ।
2. किसान का सामान कोई भी व्यक्ति संस्था खरीद सकती है जिसके पास पैन कार्ड हो।
3. अगर फसल मंडी के बाहर बिकती है तो राज्य सरकार किसान से कोई भी टैक्स वसूल नहीं सकती।
4. किसान अपनी फसल किसी राज्य में किसी भी व्यक्ति को बेच सकता है।
5. किसान contract farming करने के लिये अब स्वतंत्र है।
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कई लोग इन कानूनों के विरुद्ध दुष्प्रचार कर रहें है।
जोकि निम्नलिखित हैं।
1. आरोप :--- सरकार ने मंडीकरण खत्म कर दिया है ?
उत्तर :--- सरकार ने मंडीकरण खत्म नहीं किया। मण्डियां भी रहेंगी।लेकिन किसान को एक विकल्प दे दिया कि अगर उसको सही दाम मिलता है तो वह कहीं भी अपनी फसल बेच सकता है। मंडी में भी और मंडी के बाहर भी।
2. आरोप :--- सरकार msp समाप्त कर रही है ?
उत्तर :- मंडीकरण अलग चीज़ है msp नुयनतम समर्थन मूल्य अलग चीज़ है। सारी फसलें ,सब्ज़ी ,फल मंडीकरण में आते हैं msp सब फसलों की नहीं है।
3. आरोप :- सारी फसल अम्बानी खरीद लेगा
उत्तर :--- वह तो अब भी खरीद सकता है - आढ़तियों को बीच में डालकर।
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यह तीन कानून किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मुक्ति के कानून हैं।
आज इस सरकार ने किसानों पर - कोंग्रेस द्वारा लगाई हुई -"बन्दिश" को हटा कर,
"हर किसी को" अपनी उपज बेचने के लिये आजाद करके,
"पुरे देश का बाजार" किसानो के लिये खोल दिया है।
किसानो को कोई भी टैक्स भी नही देना होगा।
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जो भी लोग विरोध कर रहे है वो उन की अपनी समझ है,
इस सरकार से बढ़ कर कोई "किसान हितेषी" सरकार कभी नही बनी और भविष्य में भी कोई नही बनेगी।
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क्योकि ये मोदिया - बहुत अच्छे से जानता है कि - "किसान और जवान" - ही देश का आधार है।
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"साभार - मित्रगण"
संकलन और संसोधन - गिरधारी भार्गव 15.9.2020
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जिस किसी भी मित्र को मेरी बात ठीक लगे तो - शेयर नही - कोपी पेस्ट ही करे क्योकि - शेयर की हुई पोस्ट चलती नही है {धन्यवाद}
गिरधारी भार्गव
शशिरंजन सिंह
उज्जैन के एक राजा हुए है, भरथरी। उन्होंने गुरु गोरखनाथ के सानिध्य में राज्य और संपत्ति त्याग कर सन्यास धारण किया। उन्होंने संस्कृत में कई उपदेश कहानियां लिखी और भर्तृहरि के नाम से प्रसिद्ध हुए। नीतिशतक, श्रृंगारशतक, वैराग्यशतक उनकी हिबलिखी हुई संस्कृत कृतियाँ हैं। पहले गांवों में उनके जीवन पर कई सारे नाट्य किए जाते थे।
मेरठ में एक जमींदार हुए है, चौधरी लटूरी सिंह। उनको अभिनय का बड़ा शौक था। हर चौमास वो नाटक मंडली गांव में बुलवाते और नाट्य कलाकारों के साथ खुद भी मंच पर अभिनय करते। एक बार उन्होने नाट्य मंडली बुलवाई और राजा भरथरी का नौ दिन का नाट्य मंचन शुरु हुआ। राजा भरथरी का अभिनय खुद चौधरी लटूरी सिंह कर रहे थे। आठ दिन का नाट्य समाप्त हो चुका था। आठवें दिन घर पर भोजन करते हुए लटूरी सिंह ने अपनी पत्नी से कहा कि कल नाट्य का अंतिम दिन है, तुम नाट्य देखने मत आना।
नौंवें दिन मंच पर नाट्य शुरू हुआ। लटूरी सिंह के बेटे बेटिंयाँ बहुएं सभी नाट्य देखने जा चुके थे। पत्नी घर पर अकेली रह गई। रह रह कर मन में संदेह के बादल घुमड़ने लगते। आखिर मुझे मंच पर आने से क्यों रोका, कोई तो बात है जो मुझसे छुपाई जा रही है। पति मना करे और पत्नी मान जाए ऐसी पत्नियाँ तो रामायण काल मे भी न थी तो चौधराइन ने दरवाजे में कुंडी लगाई और मंच के सामने न जाकर रिश्ते में जेठानी लगने वाली महिला के घर की छत पर जाकर नाट्य देखने लगी। उधर मंच पर राजा भरथरी के सन्यास लेने का दृश्य चल रहा था। भरथरी बने लटूरी सिंह ने राज वस्त्र उतार कर भगवा धारण किया और डॉयलॉग बोलने लगे, " मैं अपने हृदय में बसे भगवान शंकर, अग्नि और जल को साक्षी मानकर ये सौगंध लेता हूँ कि इसी वक्त से हर तरह की संपत्ति, राज्य, सिंहासन आदि का त्याग करता हूँ। मेरी कोई सम्पत्ति नहीं है, मेरा कोई बेटा नहीं, मेरी कोई बेटी नहीं है, मेरी कोई पत्नी नहीं है। यहां उपस्थित सभी स्त्रियाँ मेरी मां है।
तभी लटूरी सिंह की भाभी छत से चिल्लाई, ओए लटूरी तेरी लुगाई इधर बैठी है। सब लोग हंसने लगे। नाट्य की समाप्ति के बाद सभी कलाकारों ने अपने वस्त्र चेंज किए लेकिन लटूरी सिंह भगवाया धारण किए रहे। उन्होने अभिनय के लिए प्रयोग में लाया जाने वाला भिक्षा पात्र उठाया औऱ सीधा अपने घर के दरवाजे पर पहुँचे। आवाज़ लगाई, भिक्षा दो माता। भीतर से पत्नी निकल कर आई, अरे अभी तक आपने वस्त्र नही बदले। भीतर आइए, वस्त्र बदलिए तब तक मैं भोजन लगा देती हूँ। लटूरी सिंह बोले, मैंने तुम्हें वहाँ आने से मना किया था क्योंकि जब मैं अभिनय करता हूँ तो मेरे भीतर शंकर स्वयं उपस्थित होते है। आज से तुम मेरी माता समान हो और मैंने सन्यास ले लिया है। पत्नी रोने लगी , बच्चों ने मनाने का प्रयास किया मगर वो असफल रहे। चौधरी लटूरी सिंह ने गृहस्थ का त्याग कर दिया औऱ महात्मा लटूरी सिंह के नाम से जाने गए। उनका नाम आर्य समाज के बड़े और अग्रणी प्रवाचकों में लिया जाता है।
मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, गाज़ियाबाद, बुलंदशहर में चालीस से ज्यादा इंटर कॉलेज, डिग्री कॉलेज, आईटीआई कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, मेडिकल उनके बनवाये हुए हैं। वहाँ प्रवेश द्वार पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा है, इस कॉलेज का निर्माण महात्मा लटूरी सिंह जी ने करवाया है। महात्मा लटूरी सिंह हिन्दू थे, योगी थे, सन्यासी थे और वो जीवन भर स्कूल बनवाते रहे। उन्होंने कभी इस किसी मंदिर के सामने बैठकर चरस फूंकते हुए ढपली बजाकर ये आरआर नहीं किया कि इस मंदिर के बजाय स्कूल बनना चाहिए था। उन्होंने सरकार को नही कोसा बल्कि वो उठे और उन्होंने अपनी संपत्ति से भिक्षा से दान से स्कूल बनवाये।
है कोई एक उदाहरण जिसमे दिन रात स्कूल का रोना रोने वाले किसी ढपलीबाज़ वामपंथी या किसी स्यूडो फेमिनिस्ट ने अपनी सम्पत्ति बेचकर या चंदे से एक प्राईमरी स्कूल भी बनवाया हो...??
साभार Zoya दद्दा
एक ये हिन्दू थे और एक तांडव वाले हैं....