राहुल वर्मा
हम कदम जो थे, वो
एक एक करके जाने गये,
रहनुमा की भीड़ में
मक्कार पहचाने गये। रवायतें तोड़ी गयी बेखौफ होकर, नयी सोच पैदा हुई,
खयालात पुराने गये। थिरकते पैरों पर
लग गया है विराम, फिजाओं में गूंजते
मधुर तराने गये। खलफिशार मचा है खुद के
अंदर ही कब से,
आँखों में बसे सभी
सपने सुहाने गये।
रूस्वा हुए, मगर दिल में
कोई आग न थी,
गम हुआ कि पराये की
पनाह में अपने गये।।।