राहुल वर्मा
लफ़्ज़ों में बेरूखी
दिल में मलाल रहने दो।
हमसे मुत्तालिक वो
तल्ख़ ख्याल रहने दो।
बाक़ी जो बचे हैं वो
दिन भी गुज़र जाएंगे।
उलझे हुए सब वक्त के
हैं सवाल रहने दो।
बेतकल्लुफ़ है आज
हमसे हरेक ग़म तेरा।
अब किस बात पर
उठे नए सवाल रहने दो।
कुछ भी नहीं बदला
वक्त के निज़ाम का।
फिर तुम ही क्यों बदलो
बहरहाल रहने दो।
अब उम्र ही कितनी
कैदे हयात की।
रंजिशें गर दिल में है तो
इस साल रहने दो।
कुछ दिन इन आंखों में
समन्दर बसर पाए।
कुछ दिन इन ज़ख्मों को
खुशहाल रहने दो।