यह ग्रुप सिर्फ कानुनों के उपर बनाने का विचार आया जहा हम सभी कानुन के जानकार या
विधी प्रकोष्ठ के... moreयह ग्रुप सिर्फ कानुनों के उपर बनाने का विचार आया जहा हम सभी कानुन के जानकार या
विधी प्रकोष्ठ के बाकी बड़े भाई बहन और आदरणीय अपनी सलाह और अलग अलग कोर्ट के फैसले के उपर विचार विमर्श करें
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निश्चित ही देश के एक नया काम शुरू होगा जहां फ्री में सुझाव के साथ साथ उस सुझाव के नफे नुकसान पर भी विचार विमर्श किया जा सके।
राहुल वर्मा
नाराज़ होने से कहीं ज़्यादा ख़तरनाक है
किसी रिश्ते से निराश हो जाना ...
नाराज़ होने में ही छुपा है
कि नाराज़ होने वाले का, नाराज़ होने वाले से
अभी भी कुछ वास्ता है,
निराश हो जाना रिश्ते से अलग होने का,
पहला क़दम, पहला रास्ता है,
नाराज़गी देती है रास्ता रिश्तों को रफ़ू करने का,
निराशा करती है निर्णय रास्ता बदलने का
रविंद्र रावत
You're virtually bankrupt, why not accepting Centre's aid: HC to Delhi govt
The Delhi High Court on Wednesday expressed shock over the Delhi government reportedly not accepting financial aid through a Centre-funded health scheme.
A bench of Chief Justice Manmohan and Justice Tushar Rao Gedela said it was "strange" that the Delhi government was not accepting Centre's aid when there was "no money" with it for its healthcare system.
"You may have difference of opinion but in this case you are refusing aid.. None of your machines are working. The machines have to work but you have no money actually," it said.
CJ Manmohan went ahead to remark, "Today you are refusing Rs 5 lakh for the citizens. I am shocked." Seven BJP MPs have moved the High Court to direct the AAP government to implement the Ayushman Bharat Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana (AB-PMJAY).
vstripathimba
(owner)
जिस भड़वे ने मुझे ब्लाक किया है उसे बंता दु मुझे सिर्फ 1घंटा लगेगा पुरे इनबुक सर्वर को हैक करने के लिए।
हर हर महादेव
मान्धाता प्रताप सिंह
"जो भी स्त्री आक्रामक होती है तो वह आकर्षक नहीं होती है. अगर कोई स्त्री पीछे पड़ जाए और प्रेम का निवेदन करने लगे तो हम घबरा जाएगे . क्योंकि वह स्त्री पुरुष जैसा व्यवहार कर रही है, स्त्रैण नहीं है. स्त्री का स्त्रैण होना, उसकी माधुर्यता और सौंदर्यता स्त्री गुण होने से है।
स्त्री हमे उकसाती है, लेकिन आक्रमण नहीं करती. वह हमे बुलाती है, उसका बुलाना भी बड़ा मौन है. वह हमे सब तरफ से घेर लेती, लेकिन हमे पता भी नहीं चलता. उसकी जंजीरें बहुत सूक्ष्म हैं, वे दिखाई भी नहीं पड़तीं. वह बड़े पतले धागों से, सूक्ष्म धागों से हमे सब तरफ से बांध लेती है, और उसका बंधन कहीं दिखाई भी नहीं पड़ता।
स्त्री अपने आप को नीचे रखती है. पर होती सदा ऊपर ही, हम गलत सोचते हैं कि पुरुषों ने स्त्रियों को दासी बना लिया. नहीं…स्त्री हमे सूक्षम रूप मे दास बनाने की कला जानती है. जिसका हमे पता ही नहीं, उसकी यह कला बड़ी महत्वपूर्ण है, कोई पुरुष किसी स्त्री को दासी नहीं बनाता. स्त्री किसी पुरुष के प्रेम में पड़ती है,तत्क्षण अपने को दासी बना लेती है, क्योंकि दासी होना ही गहरी मालकियत है. वह जीवन का राज समझती है.
स्त्री अपने को नीचे रखती है, चरणों में रखती है. और हमने देखा है कि जब भी कोई स्त्री अपने को हमारे चरणों में रख देती है, वो रखती चरणों में है, पहुंच जाती है बहुत गहरे, बहुत ऊपर......!
छोड़ देती है अपने को हमारे चरणों में, हमारी छाया बन जाती है. और हमे पता भी नहीं चलता कि छाया हमे चलाने लगती है, छाया के इशारे से हम चलने लगते है.
स्त्री कभी यह भी नहीं कहती सीधा कि यह करो, लेकिन वह जो चाहती है करवा लेती है. वह कभी नहीं कहती कि यह ऐसा ही हो, लेकिन वह जैसा चाहती है वैसा ही होता है।
स्त्री की शक्ति बहुत बड़ी है. और ये शक्ति पुरुष के गहरे तल को प्रभावित करती है जहाँ पर मन और तन विदा हो जाते है. बड़े से बड़े शक्तिशाली पुरुष स्त्री के प्रेम में पड़ जाते हैं, और हम एकदम अशक्त हो जाते हैं। दास बन जाते है.
(प्रेमिका और पत्नियो को समर्पित)
नीरू हिंदू
@_user_7 यह क्या हो रहा है फोटो या वीडियो पोस्ट होती है पर प्रोफाइल पिक्चर चेंज नहीं हो रही स्टोरेज परमीशन मांग रहा है परमिशन देने के बाद भी स्टोरेज ओपन नहीं हो रहा
Paras Sharma
सामान्यतः सभी धर्मों और पंथों में , मानव आचरण के दो पहलू सामने आते हैं , वे हैं अच्छाई और बुराई ...! इनके पक्ष में चलने वाले क्रमशः अच्छे और बुरे लोग माने जाते हैं। जो कुछ ३१ दिसम्बर की रात और १ जनवरी के प्रारंभ को लेकर यूरोप - अमेरिका और ईसाई समुदाय सहित अन्य लोग देख देखी करते हैं वह अच्छाई तो नहीं है !!! यथा शराब पीना, अश्लील नाचगाना , सामान्य मर्यादाओं को तिलांजली देना ! होटल , रेस्तरां और पब में जा कर मौज मजे के नाम पर जो कुछ होता है !! वह न तो सभ्यता का हिस्सा है और न ही उसे अच्छा होने का सर्टिफिकेट दिया जा सकता है। इसलिए सभ्यता अनुकूल यह नया के क्रियाकलापों को व्यवस्थित करने की प्रक्रिया में निर्मित सत्रारंभ है। इसकी तुलना कभी भी भारतीय नववर्ष से नहीं की जा सकती , क्योंकि वह ईश्वरीय है, सृष्टिजन्य है, नक्षत्रिय है इसी कारण सम्पूर्ण हिन्दू समाज में सभी धार्मिक आयोजन , कार्य शुभारंभ मुहूर्त, मानव जीवन से सम्बद्ध मांगलिक कार्यों को आज भी बड़ी निष्ठा से इन्ही आधार पर आयोजित किया जाता ।