यह ग्रुप सिर्फ कानुनों के उपर बनाने का विचार आया जहा हम सभी कानुन के जानकार या
विधी प्रकोष्ठ के... moreयह ग्रुप सिर्फ कानुनों के उपर बनाने का विचार आया जहा हम सभी कानुन के जानकार या
विधी प्रकोष्ठ के बाकी बड़े भाई बहन और आदरणीय अपनी सलाह और अलग अलग कोर्ट के फैसले के उपर विचार विमर्श करें
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निश्चित ही देश के एक नया काम शुरू होगा जहां फ्री में सुझाव के साथ साथ उस सुझाव के नफे नुकसान पर भी विचार विमर्श किया जा सके।
राहुल वर्मा
लफ़्ज़ों में बेरूखी
दिल में मलाल रहने दो।
हमसे मुत्तालिक वो
तल्ख़ ख्याल रहने दो।
बाक़ी जो बचे हैं वो
दिन भी गुज़र जाएंगे।
उलझे हुए सब वक्त के
हैं सवाल रहने दो।
बेतकल्लुफ़ है आज
हमसे हरेक ग़म तेरा।
अब किस बात पर
उठे नए सवाल रहने दो।
कुछ भी नहीं बदला
वक्त के निज़ाम का।
फिर तुम ही क्यों बदलो
बहरहाल रहने दो।
अब उम्र ही कितनी
कैदे हयात की।
रंजिशें गर दिल में है तो
इस साल रहने दो।
कुछ दिन इन आंखों में
समन्दर बसर पाए।
कुछ दिन इन ज़ख्मों को
खुशहाल रहने दो।
रविंद्र रावत
हिन्दुओं में कल भी शत्रुबोध की कमी थी और आज भी कमोबेश यही स्थिति है। इसका उदाहरण नीचे है।
दक्षिणपंथी हिंदू अपने साथी हिंदुओं के बचाव में आगे आए थे। इस विद्रोह के कुछ सकारात्मक परिणामों में से एक 1929 में सामने आया, जब अंग्रेजों ने मालाबार काश्तकारी अधिनियम पारित किया, जिसने किराए को नियंत्रित किया, उचित किराया तय किया और काश्तकारों की बेदखली पर प्रतिबंध लगा दिया।
ग्रन्थसूची
डेल, स्टीफन एफ. इस्लामिक सोसाइटी ऑन द साउथ एशियन फ्रंटियर: द मप्पिलास ऑफ मालाबार, 1498-1922 . न्यूयॉर्क: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1980. मोपला इतिहास की व्यापक चर्चा उन कारकों की जांच करती है जिन्होंने मोपला विद्रोह और विद्रोह की घटनाओं में योगदान दिया।
हिचकॉक, आर.एच. मालाबार में किसान विद्रोह: मालाबार विद्रोह का इतिहास, 1921। नई दिल्ली: उषा, 1983। मोपला विद्रोह पर प्रमुख सरकारी रिपोर्ट का पुनर्प्रकाशन। प्रसिद्ध इतिहासकार रॉबर्ट एल. हार्डग्रेव, जूनियर द्वारा लिखित भूमिका, मोपला विद्रोह का एक अच्छा सारांश और अध्ययन शुरू करने के लिए एक उपयुक्त आधार प्रदान करती है। यह पुस्तक विद्रोह के बारे में जानकारी के प्रमुख स्रोतों में से एक है।
जोन्स, केनेथ डब्ल्यू. ब्रिटिश भारत में सामाजिक-धार्मिक आंदोलन । कैम्ब्रिज, इंग्लैंड: कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, 1989. यह पुस्तक मोपला विद्रोह को उस समय के राजनीतिक और धार्मिक आंदोलनों के संदर्भ में प्रस्तुत करती है। यह पुस्तक बताती है कि हिंदू, दक्षिणपंथी आर्य समाज ने मोपला विद्रोह के जवाब में मुसलमानों को पुनः हिंदू धर्म में लाने के लिए दक्षिण में मिशनरियों को भेजा और हिंदुओं को नष्ट हुए मंदिरों के पुनर्निर्माण में मदद के लिए वित्तीय सहायता भेजी। यह पुस्तक इस बात पर ज़ोर देती है कि मोपला विद्रोह ने दक्षिण भारत में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच तीव्र प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया, जो उत्तर भारत की विशेषता थी।
vstripathimba
(owner)
जिस भड़वे ने मुझे ब्लाक किया है उसे बंता दु मुझे सिर्फ 1घंटा लगेगा पुरे इनबुक सर्वर को हैक करने के लिए।
हर हर महादेव
मान्धाता प्रताप सिंह
भीम आर्मी के आंदोलन को वापस लेने से एक महत्वपूर्ण सबक केवल सवर्ण समाज को ही नही बल्कि जो जातिवाद से ऊपर उठ चुके OBC और दलित हिन्दू है उन सबको मिलना चाहिए क्योंकि भीम आर्मी के गुंडे पूरे देश के लिए खतरा बन चुके है : जब आप एकजुट होकर अपनी आवाज उठाते हैं, तो विधर्मियों और अराजक तत्वों के हौसले अपने आप टूट जाते हैं। यह हिंदू समाज की वह महान शक्ति है, जो न केवल अपनी रक्षा करती है, बल्कि पूरे राष्ट्र को मजबूती प्रदान करती है।
साथ ही, आज उन सभी महान व्यक्तियों का हार्दिक धन्यवाद करना उचित है, जिन्होंने पार्टी की संकीर्ण सीमाओं से ऊपर उठकर विचारधारा को प्राथमिकता दी और सवर्ण समाज के सम्मान की सबसे सशक्त आवाज बने।
भीम आर्मी के डरपोक और अतिउत्साही गुंडों ने सोचा था कि सवर्ण हिंदू एकता के नाम पर पीछे हट जाएगा, और इसी अवसर का लाभ उठाकर वे सत्य को दबा देंगे। उन्होंने अनिल मिश्रा जी को कुत्ते का पट्टा पहनाने की धमकी से लेकर तरह-तरह की निरंतर धमकियां दीं। लेकिन जैसे ही सवर्णों को एहसास हुआ कि ये डरपोक गुंडे हमारी उदारता और अच्छाई का फायदा उठा रहे हैं, तो सभी हिंदू सवर्णों ने एक स्वर से हुंकार भरी और इन अत्याचारियों के खिलाफ प्रचंड रूप धारण कर लिया। इस महान एकता को देखकर भीम आर्मी के इन अतिउत्साही गुंडों की हिम्मत टूट गई, उनकी पैंट गीली हो गई, और उन्हें लगा कि अब लेने के देने पड़ जाएंगे।
जब इन डरपोकों ने देखा कि सवर्णों के साथ-साथ वाल्मीकि हिंदू और गैर-जाटव दलित हिंदू, जो स्वयं भीम आर्मी के इन गुंडों से त्रस्त हैं, भी इनके खिलाफ एकजुट होकर हुंकार भर रहे हैं, तो उनकी सांसें ऊपर-नीचे होने लगीं। इसी तरह, जातिवाद से ऊपर उठ चुके ओबीसी समाज (कुछ अपवादों को छोड़कर) ने भी समझ लिया कि ये अतिउत्साही गुंडे उन्हें फंसाने और धन लूटने के लिए फर्जी एससी-एसटी एक्ट लगवाते हैं, इसलिए वे भी इन अत्याचारियों के खिलाफ सवर्ण हिंदुओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हो गए। भीम आर्मी का वह छपरी नेता, जो रोज धमकियां बकता फिरता था, उसे अपने जोश में निकले शब्द उल्टे खुद पर ही तीर बनकर लगते दिखे, और भयभीत होकर उसने ग्वालियर में उपद्रव करने का कार्यक्रम रद्द कर दिया।
यह घटना स्पष्ट रूप से साबित करती है कि इस संविधान, लोकतंत्र और राष्ट्र की रक्षा केवल हिंदू समाज ही करता है। हिंदुओं की अटूट एकता, सहिष्णुता और बलिदान की भावना के कारण ही यह देश संविधान की गरिमा, लोकतांत्रिक मूल्यों और राष्ट्रीय अखंडता को सुरक्षित रख पाया है। हिंदू समाज ने हमेशा राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखा, जिससे देश की प्रगति और विकास सुनिश्चित हुआ।
भीम आर्मी जैसे डरपोक और अतिउत्साही गुंडे लोकतंत्र और संविधान के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं, क्योंकि वे अराजकता फैलाकर, धमकियां देकर और फर्जी मुकदमों से समाज को बांटने का प्रयास करते हैं, जो सीधे तौर पर संवैधानिक व्यवस्था को कमजोर करता है और राष्ट्र की एकता को चुनौती देता है। भीम आर्मी जैसे डरपोक और अतिउत्साही गुंडों को छोड़कर, सभी हिंदू—सवर्ण, वाल्मीकि, दलित, ओबीसी—यह दिखाते हैं कि एकजुट होकर हम राष्ट्र की रक्षा कर सकते हैं, अपराध और अराजकता को रोक सकते हैं, और देश को समृद्धि की राह पर ले जा सकते हैं। सभी हिंदुओं से निवेदन है कि हिंदू नाम पर एकता बनाए रखें, लेकिन भीम आर्मी के जो गुंडों है इनकीं अराजकता के खिलाफ आवाज उठाएं और इनपर कानूनी करवाई करवाये क्योंकि ये—ये राष्ट्र के लिए खतरा हैं। इनका डटकर मुकाबला करें, क्योंकि यही देश, धर्म, संविधान और लोकतंत्र को बचाने का एकमात्र मार्ग है, जो अंततः हमारी साझी उन्नति सुनिश्चित करेगा।
धर्मो रक्षति रक्षितः।
तस्माद्धर्मं न त्यजामि मा नो धर्मो हतोऽवधीत्॥
अर्थ: धर्म रक्षा करने वाले की रक्षा करता है। इसलिए धर्म को कभी न त्यागें, क्योंकि त्यागा हुआ धर्म हमें नष्ट कर देता है।
(यहां धर्म से तात्पर्य राष्ट्र, संविधान और लोकतंत्र की रक्षा से है, जो हिंदुओं की एकता से ही संभव है; भीम आर्मी जैसे खतरे इसे कमजोर करते हैं, लेकिन हिंदू इसे बचाते हैं।)
नीरू हिंदू
@_user_7 यह क्या हो रहा है फोटो या वीडियो पोस्ट होती है पर प्रोफाइल पिक्चर चेंज नहीं हो रही स्टोरेज परमीशन मांग रहा है परमिशन देने के बाद भी स्टोरेज ओपन नहीं हो रहा
Paras Sharma
सामान्यतः सभी धर्मों और पंथों में , मानव आचरण के दो पहलू सामने आते हैं , वे हैं अच्छाई और बुराई ...! इनके पक्ष में चलने वाले क्रमशः अच्छे और बुरे लोग माने जाते हैं। जो कुछ ३१ दिसम्बर की रात और १ जनवरी के प्रारंभ को लेकर यूरोप - अमेरिका और ईसाई समुदाय सहित अन्य लोग देख देखी करते हैं वह अच्छाई तो नहीं है !!! यथा शराब पीना, अश्लील नाचगाना , सामान्य मर्यादाओं को तिलांजली देना ! होटल , रेस्तरां और पब में जा कर मौज मजे के नाम पर जो कुछ होता है !! वह न तो सभ्यता का हिस्सा है और न ही उसे अच्छा होने का सर्टिफिकेट दिया जा सकता है। इसलिए सभ्यता अनुकूल यह नया के क्रियाकलापों को व्यवस्थित करने की प्रक्रिया में निर्मित सत्रारंभ है। इसकी तुलना कभी भी भारतीय नववर्ष से नहीं की जा सकती , क्योंकि वह ईश्वरीय है, सृष्टिजन्य है, नक्षत्रिय है इसी कारण सम्पूर्ण हिन्दू समाज में सभी धार्मिक आयोजन , कार्य शुभारंभ मुहूर्त, मानव जीवन से सम्बद्ध मांगलिक कार्यों को आज भी बड़ी निष्ठा से इन्ही आधार पर आयोजित किया जाता ।