विनीता झा
*(एक खूबसूरत कविता सभी शिक्षकों के लिये!!)*
*मत पूछिए कि शिक्षक कौन है?*
*आपके प्रश्न का सटीक उत्तर*
*आपका मौन है।*
*शिक्षक न पद है, न पेशा है,*
*न व्यवसाय है ।*
*ना ही गृहस्थी चलाने वाली*
*कोई आय हैं।।*
*शिक्षक सभी धर्मों से ऊंचा धर्म है।*
*गीता में उपदेशित*
*"मा फलेषु "वाला कर्म है ।।*
*शिक्षक एक प्रवाह है ।*
*मंज़िल नहीं राह है ।।*
*शिक्षक पवित्र है।*
*महक फैलाने वाला इत्र है*
*शिक्षक स्वयं जिज्ञासा है ।*
*खुद कुआं है पर प्यासा है ।।*
*वह डालता है चांद सितारों ,*
*तक को तुम्हारी झोली में।*
*वह बोलता है बिल्कुल,*
*तुम्हारी बोली में।।*
*वह कभी मित्र,*
*कभी मां तो ,*
*कभी पिता का हाथ है ।*
*साथ ना रहते हुए भी,*
*ताउम्र का साथ है।।*
*वह नायक ,खलनायक ,*
*तो कभी विदूषक बन जाता है ।*
*तुम्हारे लिए न जाने,*
*कितने मुखौटे लगाता है।।*
*इतने मुखौटों के बाद भी,*
*वह समभाव है ।*
*क्योंकि यही तो उसका,*
*सहज स्वभाव है ।।*
*शिक्षक कबीर के गोविंद सा,*
*बहुत ऊंचा है ।*
*कहो भला कौन,*
*उस तक पहुंचा है ।।*
*वह न वृक्ष है ,*
*न पत्तियां है,*
*न फल है।*
*वह केवल खाद है।*
*वह खाद बनकर,*
*हजारों को पनपाता है।*
*और खुद मिट कर,*
*उन सब में लहराता है।।*
*शिक्षक एक विचार है।*
*दर्पण है , संस्कार है ।।*
*शिक्षक न दीपक है,*
*न बाती है,*
*न रोशनी है।*
*वह स्निग्ध तेल है।*
*क्योंकि उसी पर,*
*दीपक का सारा खेल है।।*
*शिक्षक तुम हो, तुम्हारे भीतर की*
*प्रत्येक अभिव्यक्ति है।*
*कैसे कह सकते हो,*
*कि वह केवल एक व्यक्ति है।।*
*शिक्षक चाणक्य, सान्दिपनी*
*तो कभी विश्वामित्र है ।*
*गुरु और शिष्य की*
*प्रवाही परंपरा का चित्र है।।*
*शिक्षक भाषा का मर्म है ।*
*अपने शिष्यों के लिए धर्म है ।।*
*साक्षी और साक्ष्य है ।*
*चिर अन्वेषित लक्ष्य है ।।*
*शिक्षक अनुभूत सत्य है।*
*स्वयं एक तथ्य है।।*
*शिक्षक ऊसर को*
*उर्वरा करने की हिम्मत है।*
*स्व की आहुतियों के द्वारा ,*
*पर के विकास की कीमत है।।* *वह इंद्रधनुष है ,*
*जिसमें सभी रंग है।*
*कभी सागर है,*
*कभी तरंग है।।*
*वह रोज़ छोटे - छोटे*
*सपनों से मिलता है ।*
*मानो उनके बहाने*
*स्वयं खिलता है !*
*वह राष्ट्रपति होकर भी,*
*पहले शिक्षक होने का गौरव है।*
*वह पुष्प का बाह्य सौंदर्य नहीं ,*
*कभी न मिटने वाली सौरभ है।*
*बदलते परिवेश की आंधियों में ,*
*अपनी उड़ान को*
*जिंदा रखने वाली पतंग है।*
*अनगढ़ और बिखरे*
*विचारों के दौर में,*
*मात्राओं के दायरे में बद्ध,*
*भावों को अभिव्यक्त*
*करने वाला छंद है। ।*
*हां अगर ढूंढोगे ,तो उसमें*
*सैकड़ों कमियां नजर आएंगी।*
*तुम्हारे आसपास जैसी ही*
*कोई सूरत नजर आएगी ।।*
*लेकिन यकीन मानो जब वह,*
*अपनी भूमिका में होता है।*
*तब जमीन का होकर भी,*
*वह आसमान सा होता है।।*
*अगर चाहते हो उसे जानना ।*
*ठीक - ठीक पहचानना ।।*
*तो सारे पूर्वाग्रहों को ,*
*मिट्टी में गाड़ दो।*
*अपनी आस्तीन पे लगी ,*
*अहम् की रेत झाड़ दो।।*
*फाड़ दो वे पन्ने जिन में,*
*बेतुकी शिकायतें हैं।*
*उखाड़ दो वे जड़े ,*
*जिनमें छुपे निजी फायदे हैं।।*
*फिर वह धीरे-धीरे स्वतः*
*समझ आने लगेगा*
*अपने सत्य स्वरूप के साथ,*
*तुम में समाने लगेगा।।*
*सभी शिक्षकों को समर्पित*
Vijay Verma
Sir, hum comments nahi kar pa rahe h. Aur na hi comments ko read kar pa rahe h.
Piyas Sarkar
वैसे आजकल पूर्व पाकिस्तान (बांग्लादेश) में धर्मनिरपेक्षता का क्या भाव चल रहा है❓
Sandeep Kumar
मनोवैज्ञानिक सत्य है कि सम्भोग के मामले में पुरुष दृश्य पर अधिक निर्भर करते हैं। वे आकार, गोलाइयाँ, नग्नता देखना चाहते हैं। पश्चिम में किंजी ने पाया कि 76% पुरुष पुरुषों ने कहा कि उन्हें बत्ती जलाकर संभोग करना पसंद है जबकि केवल 35%महिलाओं को ऐसा करना पसंद था। कुल मिलाकर महिलाएँ तब तक उत्तेजित नहीं होती जब तक वह कोई रोमैंटिक नग्न जोड़ा न हो, या फिर वह कोई सांकेतिक दृश्य न हो। जब कोई पुरुष किसी नग्न महिला को देखता है तो वह तुरंत कामोत्तेजित हो जाता है वहीं दूसरी ओर नग्न पुरुष को देखे जाने पर आम तौर पर महिला की हँसी छूट जाती है।
महिलाओं को शब्द व भावनाएँ पसंद आती हैं। उन्हें संभोग के समय बत्ती बुझाना या आँखें बन्द करना पसन्द है, क्योंकि यह उनकी संवेदन प्रणाली के अनुकूल है। हौले से सहलाना, कामुक - स्पर्श, कानों में मीठी बातें कहना, उन्हें उत्तेजित करता है।
लज्जा, स्त्री का आभूषण है, परंतु रति - काल में नहीं। रति के समय निर्लज्जता ही उनका आभूषण बन जाता है परन्तु स्वभाव वश यहाँ भी वह पूरा प्रकाश नही चाहती जबकि पुरुष उसका अंग - प्रत्यंग नग्न निरावरण देखना चाहता है। बड़ी विचित्र स्थिति है।
❤️ वस्तुतः सौंदर्य का सारा आकर्षण लुका-छिपी में ही है। आंख-मिचौली, थोड़ा आवृत - थोड़ा अनावृत। उस आवृत को निरावृत देखने की ललक ही पुरुष की उत्सुकता बनाए रखती है। यदि उसे पूरी तरह नग्न कर दिया जाए तो थोड़े समय बाद उसके प्रति सारी उत्सुकता समाप्त हो जाएगी। इसे यूँ समझें कि जिस नारी अंगों को आप देखने के लिए ललकते हैं, थोड़ा आवरण हटते ही कामोत्तेजित हो जाते हैं, वही चौबीस घंटे आपके सामने पूर्ण नग्न रहे तो धीरे-धीरे आपके अंदर उसे देखकर कोई उत्तेजना होगी ही नहीं। ब्ल्यू फिल्म देखने के ऐडिक्ट की ऐसी ही स्थिति हो जाती है।
❤️ पत्नी बेचारी पुरुष के इस स्वभाव को समझ नहीं पाती।
गृहणी जाती हार दाँव, सम्पूर्ण समर्पण करके।
जयिनी रहती बनी अप्सरा, ललक पुरुष में भरके।
पर क्या जाने ललक जगाना, नर में गृहणी नारी?
बर्ट्रेन्ड रसेल कहते हैं - पत्नी को कभी भी पति के आगे संपूर्ण समर्पण नहीं करना चाहिए। उसे एक आवरण में प्रच्छन्न रहना चाहिए। जिससे पति के मन में उसके प्रति एक ललक बनी रहे। वह अप्सरावत गोपनीयता ही पति को पर नारी से मुक्त करेगी। पत्नी को कुछ दूर तक शारीरिक गोपनीयता भी रखनी चाहिए।
प्रियतम को रख सके निमज्जित जो अतृप्ति के रस में। पुरुष बड़े सुख से रहता है उस प्रमदा के वश में।।
❤️ अब आप स्वयं निर्णय करें, विशेषकर स्त्री, कि संभोग के समय तेज रोशनी हो या अँधेरा?
विशेषज्ञों का कहना है कि संभोग के समय न तो तेज रोशनी होनी चाहिए और न ही घुप्प अँधेरा। वहाँ केवल मद्धम प्रकाश होना चाहिए।
❤️ न अँधेरा - न उजाला। बस एक मद्धम प्रकाश। एक टिमटिमाते-काँपती लौ। रात की गहन नीरवता। केलि-शैय्या पर दो जिस्म। धीरे-धीरे एक दूसरे को उत्तेजित कर मंजिल की अग्रसर। एक - दूजे में समा जाने को व्यग्र। द्वैत से अद्वैत का सफर।