संजीव जैन
"अच्छी थी, पगडंडी अपनी, सड़कों पर तो, जाम बहुत है!!
फुर्र हो गई फुर्सत, अब तो, सबके पास, काम बहुत है!!
नही बचे, कोई सम्बन्धी, अकड़,ऐंठ,अहसान बहुत है!!
सुविधाओं का ढेर लगा है यार, पर इंसान परेशान बहुत है!!\ud83d\udc9e
" गाँव "
Anupama Jain
ऐसा क्या लिखूं
जिसे पढ़ कर
तुम्हें ये अहसास हो
कि...
बिछड़ कर भी
तुम मेरे कितने पास हो
न जाने
किस अंजान खता की
सज़ा देते हो दूर जाकर
भला क्या खुशी मिल रही है
मुझे इस तरह आजमाकर
चलो खुश हो अगर तुम तो
तुम्हारी खुशी को हम
सर आंखों लगाते हैं
तुम पर लिखी हर शायरी
आज दरिया में बहाते हैं