संजीव जैन
"अच्छी थी, पगडंडी अपनी, सड़कों पर तो, जाम बहुत है!!
फुर्र हो गई फुर्सत, अब तो, सबके पास, काम बहुत है!!
नही बचे, कोई सम्बन्धी, अकड़,ऐंठ,अहसान बहुत है!!
सुविधाओं का ढेर लगा है यार, पर इंसान परेशान बहुत है!!\ud83d\udc9e
" गाँव "
Anupama Jain
तुम पूछते हो न.....
मेरे कौन हो तुम...???
तो सुनो......
एहसास हो तुम उस प्रेम का...
जो उपजता है पहली बार...
नाजुक हृदय में...
स्पर्श हो तुम...
उस स्नेह का...
जो महसूस होता है.
किसी अपने के सर पर हाथ रखने में...
❣️❣️