संजीव जैन
"अच्छी थी, पगडंडी अपनी, सड़कों पर तो, जाम बहुत है!!
फुर्र हो गई फुर्सत, अब तो, सबके पास, काम बहुत है!!
नही बचे, कोई सम्बन्धी, अकड़,ऐंठ,अहसान बहुत है!!
सुविधाओं का ढेर लगा है यार, पर इंसान परेशान बहुत है!!\ud83d\udc9e
" गाँव "
Anupama Jain
ज़िंदगी एक किताब है, हर पन्ने पे
एक राज़ लिखा है,
कहीं हँसी की लकीरें, तो कहीं दर्द का
साज़ लिखा है...
कभी खुशियों का मेला, तो कभी
तन्हाइयों का साया,
हर मोड़ पे कुछ नया, हर सफर में
इक अंदाज़ लिखा है....