वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि !
मंगलानां च कर्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ !!
"""" "रामायण" एक... moreवर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि !
मंगलानां च कर्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ !!
"""" "रामायण" एक धार्मिक समूह है जो लोग हिन्दू (सनातन) धर्म में आस्थावान हों तथा भारतिय संस्कृति और उसकी परंपराओं में श्रद्धा और विश्वास रखते हों केवल वही लोग इस समूह से जुड़ें!
हमारा आशय अन्य धर्मों की निंदा करना नहीं है अपितु हिन्दुओं को संगठित करके सनातन धर्म का प्रचार व प्रसार करना हमारा लक्ष्य है!!
अश्लील एवं फूहड़ , राजनीतिक , गैर हिन्दुओं से संबधित विचारधारा, व्यक्तिगत, व्यापारिक, प्रचार आदि विवादित पोस्ट न करें!!!!
जय रामजी की!!
12/07/2021. less
शशिरंजन सिंह
**कांग्रेस भारत को संविधान के माध्यम से मुस्लिम राष्ट्र बना चुकी थी;बस घोषणा नहीं कर पाई।**
●अनुच्छेद 25, 28, 30 (1950)
●एचआरसीई अधिनियम (1951)
●एचसीबी एमपीएल (1956)
●धर्मनिरपेक्षता (1975)
●अल्पसंख्यक अधिनियम (1992)
●POW अधिनियम (1991)
●वक्फ अधिनियम (1995)
●राम सेतु शपथ पत्र (2007)
●केसर (2009)
*1)* उन्होंने अनुच्छेद 25 द्वारा धर्मांतरण को वैध बनाया।
*2)* उन्होंने अनुच्छेद 28 के माध्यम से हिंदुओं से धार्मिक शिक्षा छीन ली लेकिन अनुच्छेद 30 के माध्यम से मुस्लिमों और ईसाईयों को धार्मिक शिक्षा की अनुमति दी।
*3)* उन्होंने एचआरसीई अधिनियम 1951 लागू करके सभी मंदिरों और मंदिरों का पैसा हिंदुओं से छीन लिया।
*4)* उन्होंने हिंदू कोड बिल के तहत तलाक कानून, दहेज कानून द्वारा हिंदू परिवारों को नष्ट कर दिया लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ को नहीं छुआ। उन्हें बहुविवाह की अनुमति दी ताकि वे अपनी जनसंख्या बढ़ाते रहें।
*5)* 1954 में विशेष विवाह अधिनियम लाया गया ताकि मुस्लिम लड़के आसानी से हिंदू लड़कियों से शादी कर सकें।
*6)* 1975 में उन्होंने आपातकाल लगाया, जबरदस्ती धर्मनिरपेक्षता शब्द संविधान में जोड़ा और जबरदस्ती भारत को धर्मनिरपेक्ष बना दिया।
केवल हिंदुओं की नसबंदी कर देश की डेमोग्राफी बदलने की शुरुआत की।जिसका असर अब दिखाई दे रहा है।
*7)* कांग्रेस यहीं नहीं रुकी 1991 में वे अल्पसंख्यक आयोग कानून लेकर आये और घोषणा की
एमएसएल! एम को अल्पसंख्यक माना जाता है, हालांकि धर्मनिरपेक्ष देश में बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक नहीं हो सकते।
*8)* उन्होंने सरकारी छात्रवृत्ति जैसे विशेष अधिकार दिए ताकि अल्पसंख्यक अधिनियम के तहत उन्हें लाभ मिले।
*9)* 1992 में उन्होंने हिंदुओं को उनके मंदिर कानूनी तरीके से वापस लेने से रोक दिया और पूजा स्थल अधिनियम द्वारा 40000 मंदिर हिंदुओं से छीन लिए।
*10)* कांग्रेस यहीं नहीं रुकी और 1995 में उन्होंने मुसलमानों को किसी भी जमीन पर दावा करने, वक्फ अधिनियम के जरिए किसी भी हिंदू की जमीन छीनने का अधिकार दे दिया और मुसलमानों को भारत का दूसरा सबसे बड़ा जमीन मालिक बना दिया।
*11)* 2007 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में रामसेतु हलफनामे में *श्री राम* के अस्तित्व को अस्वीकार कर दिया और हिंदू विरोधी धर्मयुद्ध में चरम बिंदु 2009 में था जब कांग्रेस ने भगवा चरमपंथ शब्द गढ़कर हिंदू धर्म को चरमपंथी धर्म घोषित किया।
*12)* और मजे की बात यह है कि इसी कांग्रेस ने अपने 136 साल के इतिहास में कभी बुर्के में, तीन तलाक में कोई अतिवाद नहीं पाया!
*13)* कांग्रेस धीरे-धीरे बड़ी चतुराई से हिंदुओं को नंगा करती रही, वे एक-एक करके हिंदू अधिकारों को छीनते रहे और अब हिंदू पूरी तरह से हर चीज से वंचित हो गए हैं और मजेदार बात यह है कि हिन्दुओं को इसके बारे में पता तक नहीं है।
*14)* उनके पास अपने मंदिर नहीं हैं, उनके पास अपनी धार्मिक शिक्षा नहीं है, उनकी ज़मीनें उनकी स्थायी संपत्ति नहीं हैं।
और वे प्रश्न भी नहीं पूछते!
क्यों मस्जिद और चर्च स्वतंत्र हैं, लेकिन मंदिर सरकार के अधीन हैं? नियंत्रण में है?
वित्त पोषित मदरसे, कॉन्वेंट स्कूल है लेकिन सरकारी वित्त पोषित गुरुकुल नहीं???
*उनका वक्फ अधिनियम तो हिंदू भूमि अधिनियम क्यों नहीं है???*
*उनका मुस्लिम पर्सनल बोर्ड, लेकिन हिंदू पर्सनल बोर्ड नहीं???*
*यदि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है तो यहां बहुसंख्यक, अल्पसंख्यक क्यों हैं??? स्कूलों में रामायण और महाभारत क्यों नहीं पढ़ाई जाती???*
*15)* औरंगजेब ने हिंदू धर्म को नष्ट करने के लिए तलवार का इस्तेमाल किया, कांग्रेस ने हिंदू धर्म को नष्ट करने के लिए संविधान, अधिनियमों, विधेयकों का इस्तेमाल किया और जहां तलवार विफल रही, वहां संविधान ने यह काम किया।
*16)* और फिर मीडिया है।
अगर कोई ये सवाल पूछने की कोशिश करता है तो उसे सांप्रदायिक, भगवा और भक्त घोषित कर दिया जाता है।
यदि कोई राजनेता इन गलतियों को सुधारने का प्रयास करता है तो उन्हें बुलाया जाता है क्योंकि वे लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं।
*17)* याद रखें शक्तिशाली रोमन धर्म के पतन में केवल 80 वर्ष लगे।
प्रत्येक हिंदू को रोमन सभ्यता के पतन के बारे में अवश्य पढ़ना चाहिए।
कोई भी बाहरी ताकत उन्हें हरा नहीं सकी, वे आंतरिक रूप से अपने ही शासक कॉन्सटेंटाइन और ईसाई धर्म से हार गए।
*18)* हिंदुओं ने 1950 से नेहरू और उनके परिवार को चुना और भारी कीमत चुकाई है और अधिकांश वर्षों तक कांग्रेस सरकारों से उन्हें नुकसान उठाना पड़ा है।
*दोष केवल कांग्रेस पर नहीं होना चाहिए... वे क्षेत्रीय दल भी दोषी हैं जो राजनीतिक कारणों से समय-समय पर कांग्रेस के साथ गठबंधन करते रहे और मूक दर्शक बने रहे... जागो ।
काँग्रेस आज भी सेकुलरिज्म के नाम पर मुसलमानो, ईसाईयों, वामपंथियों, आतंकवादियों, देशद्रोहियों के लिए समर्पित है।
Shitala Dubey
(owner)
आज हम हिंदुओं की स्थिति किसी से छुपी हुई नहीं है...!
आज हम हर एक छोटी-बड़ी चीज के लिए पश्चिमी सभ्यता का मुँह ताकते नजर आते हैं.
"मेड इन विदेश" का तो इतना क्रेज है हमारे देश में कि... हम विदेशी महिला को अपने देश की कमान तक सौंपने से नहीं हिचकिचाते हैं... "भले ही वो कोई गुप्त रोग से पीड़ित ही क्यों न हो".
मतलब कि... हमारे मन में ये गहरे बैठ गया है कि... अगर ये विदेशी (आयातित) है तो अच्छा है...!
भले ही वो समान हो, इंसान हो या फिर संस्कार ही क्यों न हो...!
हकीकत ये है कि... हम खुद को भूल चुके हैं और हम खुद नहीं जानते हैं कि... "हम क्या हैं" ???
इस संबंध में आपको एक कहानी सुनाना चाहूँगा जो हम हिंदुओं के लिए आज काफी प्रासंगिक है...!
एक बूढ़ी हर दिन... मंदिर के सामने "भीख" मांगती थी.
एक बार मंदिर से किसी साधु ने उस बुढिया को देखकर पूछा- “आप तो किसी अच्छे घर से आई हुई लगती हो और आपका बेटा भी अच्छा लड़का है...
फिर आप यहां हर दिन क्यों खड़ी होकर भीख मांगती हो...???
उस बुढ़िया ने जबाब दिया कि- “बाबा, आप तो जानते हैं कि मेरा एक ही पुत्र है.
बहुत साल पहले ही मेरे पति का स्वर्गवास हो गया था.
और, मेरा बेटा आठ महीने पहले मुझे छोड़कर नौकरी के लिए चला गया.
जाते समय वह मेरे खर्चे के लिए कुछ रुपए देकर गया था.
अब वह सब धन मेरी आवश्यकता के लिए खर्च हो गया और मैं भी बूढ़ी हो चली हूँ... इसीलिए, परिश्रम करके धन नहीं कमा सकती.
अतः, अपनी आजीविका के लिए मैं देव मंदिर के सामने भीख मांग रही हूँ.
साधु ने पूछा- “क्या तुम्हारा बेटा अब पैसे नहीं भेजता ???
बुढिया ने कहा- “मेरा बेटा हर महीने एक एक रंगबिरंगा कागज भेजता है और मैं उसको चूम कर अपने बेटे के स्मरण में उसे दीवार पर चिपका देती हूँ.
इस पर उस साधु ने उसके घर जाकर देखने को निश्चय किया.
अगले दिन वह उसके घर में दीवार को देख कर "आश्चर्यचकित" हो गया.
उस बुढ़िया ने अपने दीवार पर आठ धनादेश पत्र चिपका के रखे थे और हर एक चेक 50,000 रुपये राशि की थी.
चूंकि , वो बुढिया पढ़ी लिखी नहीं थी, इसीलिए वो नहीं जानती थी कि उसके पास कितनी संपत्ति है.
तब, उस साधु उस विषय को जानकर उस बुढ़िया को उन धनादेशों का मूल्य को समझाया...!
कहानी को पढ़कर बेशक आपको उस बुढ़िया की बुद्धि पर तरस आ रहा होगा...!
लेकिन....
क्या हम हिन्दू भी उसी बुढ़िया की तरह नहीं हैं ???
हमारे पास जो धर्म के ग्रंथ है, उसका मूल्य नहीं जानकर उसे माथे से लगाकर अपने घर में सुरक्षित रखते हैं.... उसका पाठ कर लेते हैं..
लेकिन, उसकी उपयोगिता को समझ नही पाते.
इसीलिए, पहचानें अपने आपको
और, पहचानें अपने धर्मग्रंथों को...
हमारे पूर्वजों और हमारे ऋषि-मुनियों ने हमारे लिए बेहद अनमोल धरोहर छोड़ रखे हैं.
जय महाकाल...!!!