वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि !
मंगलानां च कर्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ !!
"""" "रामायण" एक... moreवर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि !
मंगलानां च कर्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ !!
"""" "रामायण" एक धार्मिक समूह है जो लोग हिन्दू (सनातन) धर्म में आस्थावान हों तथा भारतिय संस्कृति और उसकी परंपराओं में श्रद्धा और विश्वास रखते हों केवल वही लोग इस समूह से जुड़ें!
हमारा आशय अन्य धर्मों की निंदा करना नहीं है अपितु हिन्दुओं को संगठित करके सनातन धर्म का प्रचार व प्रसार करना हमारा लक्ष्य है!!
अश्लील एवं फूहड़ , राजनीतिक , गैर हिन्दुओं से संबधित विचारधारा, व्यक्तिगत, व्यापारिक, प्रचार आदि विवादित पोस्ट न करें!!!!
जय रामजी की!!
12/07/2021. less
शशिरंजन सिंह
*आखिर क्यों मोदी को समंदर में डुबकी लगाकर द्वारका जी के दर्शन करने जाना पड़ा.?*
गुजरात हाई कोर्ट ने Bet Dwarka के 2 द्वीपों पर कब्जा जमाने के सुन्नी वक्फ बोर्ड के सपने को चकनाचूर कर दिया है।।
इस समय गुजरात का यह विषय बहुत चर्चा में है।। सोशल मीडिया के माध्यम से हम लोगों को मालूम पड़ गया वरना पता ही नहीं चलता।
@कैसे पलायन होता है @और कैसे कब्जा होता है, @ लैंड जिहाद क्या होता है वह समझने के लिए _आप बस बेट द्वारिका टापू का अध्ययन करलें तो सब प्रक्रिया समझ आ जायेगी।_
@कुछ साल पहले तक यहाँ कि लगभग पूरी आबादी हिन्दू थी।
यह ओखा नगरपालिका के अन्तर्गत आने वाला क्षेत्र है जहाँ जाने का एकमात्र रास्ता पानी से होकर जाता है।
इसलिए बेट द्वारिका से बाहर जाने के लिए लोग नाव का प्रयोग करते हैं।।
यहाँ द्वारिकाधीश का प्राचीन मंदिर स्थित है।
कहते हैं कि 5 हजार साल पहले यहाँ रुक्मिणी ने मूर्ति स्थापना करी थी।
>समुद्र से घिरा यह टापू बड़ा शांत रहता था।
>लोगो का मुख्य पेशा मछली पकड़ना था।
> _धीरे धीरे यहाँ बाहर से मछली पकड़ने वाले मुस्लिम आने लगे।_
> _दयालु हिन्दू आबादी ने इन्हें वहाँ रहकर मछली पकड़ने की अनुमति दे दी।_
>धीरे धीरे मछली पकडने के पूरे कारोबार पर मुस्लिमों का कब्जा हो गया।
>> *बाहर से फंडिंग के चलते इन्होंने बाजार में सस्ती मछली बेची जिससे सब हिन्दू मछुआरे बेरोजगार हो गये*।
>अब हिन्दू आबादी ने रोजगार के लिए टापू से बाहर जाना शुरू किया।
लेकिन यहां एक और चमत्कार / प्रयोग हुआ ।
बेट द्वारिका से ओखा तक जाने के लिए नाव में 8 रुपये किराया लगता था।
*अब क्योंकि सब नावों पर मुस्लिमों का कब्जा हो गया था तो उन्होंने किराये का नया नियम बनाया।*
_जो हिन्दू नाव से ओखा जायेगा वह किराये के 100 रुपये देगा और मुस्लिम वही 8 रुपये देगा।_
अब कोई दिहाड़ी हिन्दू केवल आवाजाही के 200 रुपये देगा तो वह बचायेगा क्या ?
@ _इसलिए रोजगार के लिए हिन्दुओ ने वहाँ से पलायन शुरू कर दिया।_
@ *अब वहाँ केवल 15 प्रतिशत हिन्दू आबादी रहती है।*
आपने पलायन का पहला कारण यहाँ पढ़ा।
>> _रोजगार के 2 मुख्य साधन मछली पकड़ने का काम और ट्रांसपोर्ट दोनो हिन्दुओ से छीन लिया गया।_
जैसे बाकी सब जगह राज मिस्त्री,कारपेंटर, इलेक्ट्रॉनिक मिस्त्री , ड्राइवर ,नाई व अन्य हाथ के काम 90% तक हिन्दुओ ने उनके हवाले कर दिये हैं।
अब बेट द्वारिका में तो 5 हजार साल पुराना मंदिर है जिसके दर्शन के लिए हिन्दू जाते थे तो इसमें वहां के जिहादियों ने नया तरीका निकाला।
@ क्योंकि *आवाजाही के साधनों पर उनका कब्जा हो चुका था* तो उन्होंने आने वाले _श्रद्धालुओं से केवल 20-30 मिनट की जल यात्रा के 4 हजार से 5 हजार रुपये मांगने शुरू कर दिये।_
@ इतना महंगा किराया आम व्यक्ति कैसे चुका पायेगा इसलिए लोगो ने वहां जाना बंद कर दिया।
>>> अब जब वहाँ पूर्ण रूप से जिहादियों की पकड़ हो गई तो उन्होंने जगह जगह मकान बनाने शुरू किये, देखते ही देखते प्राचीन मंदिर चारों तरफ से *मजारों* से घेर दिया गया।
वहाँ की बची खुची हिन्दू आबादी सरकार को अपनी बात कहते कहते हार चुकी थी, फिर कुछ हिन्दू समाजसेवियों ने इसका संज्ञान लिया और सरकार को चेताया।
सरकार ने ओखा से बेट द्वारिका तक सिग्नेचर ब्रिज बनाने का काम शुरू करवाया।
बाकी विषयो की जांच शुरू हुई तो जांच एजेंसी चौंक गई।
*गुजरात में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका स्थित बेट द्वारिका के दो टापू पर अपना दावा ठोका है।*
वक्फ बोर्ड ने अपने आवेदन
में दावा किया है कि बेट द्वारका टापू पर दो द्वीपों का स्वामित्व वक्फ बोर्ड का है।
गुजरात उच्च न्यायालय ने इस पर आश्चर्य जताते हुए पूछा कि कृष्ण नगरी पर आप कैसे दावा कर सकते हैं और इसके बाद गुजरात उच्च न्यायालय ने इस याचिका को भी खारिज कर दिया।
> बेट द्वारका में करीब आठ टापू है, जिनमें से दो पर भगवान कृष्ण के मंदिर बने हुए हैं।
प्राचीन कहानियां बताती हैं कि भगवान कृष्ण की आराधना करते हुए मीरा यहीं पर उनकी मूर्ति में समा गई थी।
*बेट द्वारका के इन दो टापू पर करीब 7000 परिवार रहते हैं, इनमें से करीब 6000 परिवार मुस्लिम हैं।*
यह द्वारका के तट पर एक छोटा सा द्वीप है और ओखा से कुछ ही दूरी पर स्थित है।
वक्फ बोर्ड इसी के आधार पर इन दो टापू पर अपना दावा जताता है।
यहां अभी इस साजिश का शुरुआती चरण ही है कि इसका खुलासा हो गया.
सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक इस चरण में कुछ लोग, ऐसी जमीनों पर कब्जा करके अवैध निर्माण बना रहे थे, जो रणनीतिक रूप से, भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता था.
अब जाकर सब अवैध कब्जे व मजारें तोड़ी जा रही हैं।
माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी की कृपा से अब सी लिंक का उद्घाटन होने वाला है, मुसलमानों के नौका/छोटे पानी के जहाज से यात्रा करवाने का धंधा भी चौपट होने जा रहा है,
जय हो,
मोदी है तो मुमकिन है।
*बेट द्वारिका में आने वाला कोई भी मुसलमान वहाँ का स्थानीय नहीं है सब बाहर के हैं।*
फिर भी उन्होंने धीरे धीरे कुछ ही वर्षों में वहां के हिन्दुओ से सब कुछ छीन लिया और भारत के गुजरात जैसे एक राज्य का टापू *सीरिया* बन गया।
*सावधान व सजग रहना अत्यंत आवश्यक है ।।*
*कम से कम पांच ग्रुप में जरूर भेजे*
*कुछ लोग नही भेजेंगे*
*लेकिन मुझे उम्मीद है आप जरूर भेजेंगे...!*
*जागो हिन्दू जागो...
दीपक कुमार गुप्ता
तुम दर्द दो हम आह भी न करें,
इतने भी नहीं है मजबूर की अपना दर्द बयां भी न करें...
दीपक ✍️
राहुल वर्मा
लफ़्ज़ों में बेरूखी
दिल में मलाल रहने दो।
हमसे मुत्तालिक वो
तल्ख़ ख्याल रहने दो।
बाक़ी जो बचे हैं वो
दिन भी गुज़र जाएंगे।
उलझे हुए सब वक्त के
हैं सवाल रहने दो।
बेतकल्लुफ़ है आज
हमसे हरेक ग़म तेरा।
अब किस बात पर
उठे नए सवाल रहने दो।
कुछ भी नहीं बदला
वक्त के निज़ाम का।
फिर तुम ही क्यों बदलो
बहरहाल रहने दो।
अब उम्र ही कितनी
कैदे हयात की।
रंजिशें गर दिल में है तो
इस साल रहने दो।
कुछ दिन इन आंखों में
समन्दर बसर पाए।
कुछ दिन इन ज़ख्मों को
खुशहाल रहने दो।
Shitala Dubey
(owner)
दुर्योधन की मृत्यु के समय श्रीकृष्ण ने किया था इस रहस्य का खुलासा, पांडव एवं उनकी सम्पूर्ण सेना सिर्फ एक दिन में ही हो सकती थी पराजित !
महाभारत के युद्ध समाप्ति के बाद जब कुरुक्षेत्र के मैदान में दुर्योधन मरणासन अवस्था में अपनी अंतिम सासे ले रहा था तब भगवान श्री कृष्ण उससे मिलने गए. हालाँकि भगवान श्री कृष्ण को देख दुर्योधन क्रोधित नहीं हुआ परन्तु उसने श्री कृष्ण को ताने जरूर मारे।
श्री कृष्ण ने दुर्योधन से उस समय कुछ न कहा परन्तु जब वह शांत हुआ तब श्री कृष्ण ने दुर्योधन को उसकी युद्ध में की गई उन गलतियों के बारे में बताया जो वह न करता तो आज महाभारत का युद्ध वह जीत चुका होता।
कुरुक्षेत्र में लड़े गए युद्ध में कौरवों के सेनापति पहले दिन से दसवें दिन तक भीष्म पितामह थे, वहीं ग्याहरवें से पंद्रहवे तक गुरु दोणाचार्य ने ये जिम्मेदारी संभाली. लेकिन द्रोणाचार्य के मृत्यु के बाद दुर्योधन ने कर्ण को सेनापति बनाया।
यही दुर्योधन के महाभारत के युद्ध में सबसे बड़ी गलती थी इस एक गलती के कारण उसे युद्ध में पराजय का मुख देखना पड़ा. क्योकि कौरवों सेना में स्वयं भगवान शिव के अवतार मौजूद थे जो समस्त सृष्टि के संहारक है।
अश्वत्थामा स्वयं महादेव शिव के रूद्र अवतार है और युद्ध के सोलहवें दिन यदि दुर्योधन कर्ण के बजाय अश्वत्थामा को सेनापति बना चुका होता तो शायद आज महाभारत के युद्ध का परिणाम कुछ और ही होता।
इसके साथ ही दुर्योधन ने अश्वथामा को पांडवो के खिलाफ भड़काना चाहिए था जिससे वह अत्यधिक क्रोधित हो जाए. परन्तु कहा जाता है की विनाश काले विपरीत बुद्धि दुर्योधन अपने मित्र प्रेम के कारण इतना अंधा हो गया था की अश्वत्थामा अमर है यह जानते हुए भी उसने कर्ण को सेनापति चुना।
कृपाचार्य अकेले ही एक समय में 60000 योद्धाओं का मुकाबला कर सकते थे लेकिन उनका भांजा ( कृपाचर्य की बहन कृपी अश्वत्थामा की बहन थी ) अश्वत्थामा में इतना समार्थ्य था की वह एक समय में 72000 योद्धाओं के छक्के छुड़ा सकता था।
अश्वत्थामा ने युद्ध कौशल की शिक्षा केवल अपने पिता से ही गृहण नहीं करी थी बल्कि उन्हें युद्ध कौशल की शिक्षा इन महापुरषो परशुराम, दुर्वासा, व्यास, भीष्म, कृपाचार्य आदि ने भी दी थी।
ऐसे में दुर्योधन ने अश्वत्थामा की जगह कर्ण को सेनापति का पद देकर महाभारत के युद्ध में सबसे बड़ी भूल करी थी।
भगवान श्री कृष्ण के समान ही अश्वत्थामा भी 64 कलाओं और 18 विद्याओं में पारंगत था।
युद्ध के अठारहवे दिन भी दुर्योधन ने रात्रि में उल्लू और कौवे की सलाह पर अश्वत्थामा को सेनापति बनाया था. उस एक रात्रि में ही ने पांडवो की बची लाखो सेनाओं और पुत्रों को मोत के घाट उतार दिया था।
अतः अगर दुर्योधन ऐसा पहले कर चुका होता था तो वह खुद भी न मरता और पांडवो पर जीत भी दर्ज कर चुका होता, हालाँकि यह काम अश्वत्थामा ने युद्ध की समाप्ति पर किया था. जब अश्वत्थामा का यह कार्य दुर्योधन को पता चला था तो उसे शकुन की मृत्यु प्राप्त हुई थी ।
जय श्रीकृष्ण !!
Mukesh Bansal
बात 2010 के आसपास की है तब शायद $1 में लगभग 43₹ आते थे तब मैंने एक पोस्ट लिखी थी कि भविष्य में अगर ₹1 में 43 डॉलर आएंगे तो आपको कैसा लगेगा।
वह पोस्ट मुंगेरीलाल के हसीन सपनों जैसी थी।
तब से अब तक $1 बढ़ते बढ़ते 88 रुपए का हो गया है लेकिन मैं आज भी यही सोचता हूं कि ऐसा समय जरूर आएगा जब ₹1 में एक से ज्यादा डालर मिलेंगे।
मतलब की डालर का 88 गुना से भी ज्यादा अवमूल्यन। देखा जाए तो यह 2010 में मेरे द्वारा देखे गए सपने से भी बड़ा मुंगेरीलाल का हसीन सपना है।
लेकिन अब वैश्विक पटल पर एक तरफ तो इस तरह के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं कि डॉलर का वर्चस्व धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा और दूसरी और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर रुपए की पकड़ मजबूत होनी भी शुरू हो गई है।
भारत का ग्रेट प्रोजेक्ट आफ अंडमान निकोबार भी शुरू होने वाला है जिससे सामरिक दृष्टि से हिंद महासागर में भारत के वर्चस्व के अलावा 12 लाख करोड रुपए की सालाना बचत होनी भी शुरू हो जाएगी। ऐसे में इस प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था पूरी तरह से आत्मनिर्भर भी हो जाएगी।
ऐसा मेरे मानने का कारण यह भी है कि विश्व के 40 से भी ज्यादा देश पहले से ही भारतीय रुपए पर अपना भरोसा जता चुके हैं तो भविष्य में रुपए का मजबूत होना भी अवश्यंभावी है।
सनद रहे कि भारत पर अमेरिका द्वारा पूर्ण दबाव बनाने के बावजूद भारत का एक्सपोर्ट पिछले सप्ताह में 35000 करोड रुपए से भी ज्यादा बड़ा है।
लोगों में यह आशंका हो सकती है कि अभी तो रुपए की कीमत धड़ाधड़ कम हो रही है।
लेकिन दोस्तों रुपए की कीमत कम होने से हमारे आत्म निर्भर बनने की स्पीड बहुत ज्यादा बढ़ जाती है रुपए की कीमत कम होने से हमारा एक्सपोर्ट सस्ता हो जाता है और विदेशों से मंगवाये जाने वाला सामान मेंहगा। क्योंकि विदेशों से मंगवाये जाने वाला सामान महंगा होता है अतः उस सामान को भारत में बनाने की इकाइयां स्थापित होनी शुरू हो जातीं हैं जिससे भारत की आत्म निर्भरता बढ़ जाती है। शायद इसीलिए हमारा नेतृत्व रुपए की कीमत बढ़ने नहीं दे रहा।
वैसे वैश्विक अर्थव्यवस्था में किस देश की कौन सी हरकत पूरी स्थिति को कब और क्यों बदल दे यह तो सिर्फ भगवान ही जानता है।