शशि यादव
कुछ लोगो का प्यार समझ से परे होता है
सोशल मीडिया पर मिलते ही सीधा ब्लॉक हो जाता है।
हरी यादव
बाद में मोमबत्ती पकड़ने से अच्छा होगा कि पहले से ही तलवार पकड़ना सीख लो..
अनिल जैन
इंदौर में इंद्रदेव का ज़बरदस्त तांडव
कल रात को लगभग 2.30 बजे इंद्रदेव ने क्या तांडव मचाया ज़बरदस्त वज्रपात ⚡️हुआ मानो स्वयं इंद्रदेव विनाश पर उतारू थे
मानो युद्धहो रहा हो …. वो बादलों की गर्जना जैसे कोई विशालकाय हाथी चिंघाड़ रहा हो , या कई हज़ार तोपें बम वर्षा कर रही हो ……..बिजली की चमक घर की खिड़की से ऐसा दृश्य उत्पन्न कर रही की रात के घनघोर अंधेरे में सुबह का उजाला सा भर दे….. घनघोर बारिश मानो बादल भी पूरे तरह से अंदर से भरे हुए इंसान की भाँति आज पूरी भड़ास निकालने आए हो …… खूब बरसे । कोई शक्स ऐसा नही होगा जिसको कल की बारिश ने रात को जगाया ना होगा हर शख़्स भयभीत और विस्मित ।।बिजली तो जैसे घर के बाहर ही गिर रही हो … बादल तो जैसे फट ही गए हो…. गिरिराजधरन का मन ही मन स्मरण किया यक़ीन मानो कुछदेर में शोर थम सा गया बादल बिजली सब थक के विश्राम करने लग गए ….. और सुबह इतनी शांत सौम्य जैसे बच्चे मस्ती करने के बाद छुप जाते हे की हमने कुछ किया ही नही ……
धन्य हो प्रभु आप आपकी लीला.
गिरिराज धरण की जय
मोहन सिंह
साथियों मनोरंजन बहुत हो चुका है अब नचनिया का नाच वाकी है
आपका इनबुक
द्रौपदी मुर्मू जी होंगी अगली राष्ट्रपति!
उम्मीदवार
नारी शक्ति को नमन
Deoratna Goel
वाल्मीकि रामायण और तुलसी कृत रामायण में बेसिक फर्क ये है कि वाल्मीकि रामायण कंठस्थ करने के लिए लिखी गई थी जबकि तुलसी रामायण मंच पर परफॉर्मेंस करने के लिए लिखी गई।
अभी हम रामलीला, टीवी सीरियल्स या फिल्मों में जो रामायण देखते हैं, उसमे दावा जरूर किया जाता है, 'वाल्मिकी रामायण पर आधारित' लेकिन वास्तव में वह आधारित रामचरित मानस पर ही होती है।
वाल्मीकि रामायण को मंच पर परफ़ॉर्म ही नहीं किया जा सकता। यही वजह है कि रामायण से जुड़े कई प्रसंग हमारी आस्था, हमारी कहानियों का हिस्सा है जो वाल्मीकि रामायण में घटित ही नहीं हुए।
करोड़ो कंठो में विराजमान वाल्मीकि रामायण को तुलसी दास जी मानस रूप में लिखकर करोड़ो हृदयों में आत्मा के रूप में स्थापित कर दिया है।
मानस हिंदुत्व और हिन्दुओं की आत्मा है और आत्मा को न जलाया जा सकता है, न मिटाया जा सकता है।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥
साभार जोया मंसूरी जी ।