संजीव जैन
"अच्छी थी, पगडंडी अपनी, सड़कों पर तो, जाम बहुत है!!
फुर्र हो गई फुर्सत, अब तो, सबके पास, काम बहुत है!!
नही बचे, कोई सम्बन्धी, अकड़,ऐंठ,अहसान बहुत है!!
सुविधाओं का ढेर लगा है यार, पर इंसान परेशान बहुत है!!\ud83d\udc9e
" गाँव "
Anupama Jain
मुझे तुम्हारे ख़्वाबों में हिस्सेदारी नहीं चाहिए..
ना ही कोई दावेदारी कि तुम मेरे हो..
ना तुम्हारी मिल्कियत..
ना तुम्हारी शोहरत..
ना तुम्हारा नाम..
ना तुम्हारा ध्यान..
कभी सोच कर देखो फ़िर वो क्या है जो मुझे तुमसे जोड़ता है..
सुरजा एस
दो लोग जबरदस्ती
व्हीलचेयर पर लदे हैं
दीदी हार के डर से और मुख्तार मार के डर से