Rajeev Chikara
गठबंधन का नाम इंडिया और लड़ाई लड़ेंगे इंडियन स्टेट्स से। लगता है तपस्या से मन स्थिर हुआ नहीं हुआ या फिर अभी तपस्या का ताप दिमाग में है और यहां जबरिया बुला लिए गए तपस्या अधूरी छोड़कर ।
Amrit Pal
डॉलर 87 के पार हो चुका है संभव है 90 भी छू ले जबकि ट्रम्प ने भारत को तो टारगेट करना शुरू भी नहीं किया।
अमेरिका की सेना से मत डरो मगर उसकी इस सॉफ्ट पॉवर का हमेशा सम्मान करो। जिस दिन निर्मला ताई ने बजट पेश किया उसी दिन ट्रम्प चाचा ने कनाडा, मेक्सिको और चीन पर टैरिफ़ लगा दिए।
दुनिया को मैसेज साफ गया कि अमेरिका सुपरपॉवर वाली नेता गिरी दिखा रहा है, ये नया अमेरिका है जो अपनी अर्थव्यवस्था के लिये सबकुछ करेगा। डॉलर इसी अर्थव्यवस्था का हिस्सा है इसलिए डॉलर मे निवेशकों का भरोसा जाग गया और नतीजा आपके सामने है।
डॉलर ने हर मुद्रा की धुलाई कर दी, डॉलर की तुलना मे आज लगभग सभी मुद्राओ ने खुद को सबसे अधिक कमजोर पाया। भारत मे भी आप ये समझ लीजिये कि यदि ट्रम्प चाचा की नजर पड़ गयी तो एक अडानी को छोड़कर बाकि सारे उद्योगपति रिस्क पर बैठे है।
दरसल अमेरिका ज़ब भारत से कुछ खरीदता है तो उस पर टैक्स नहीं लगाता है जबकि भारत अमेरिकी कम्पनियो पर जबरदस्त टैक्स लगाता है।
अपने उद्योग को आत्म निर्भर बनाने के बजाय हम उन्हें टेरिफ़ की ढाल से बचाते है। बुश, ओबामा और बाइडन तक तो अमेरिका ने झेल लिया मगर अब ट्रम्प चाचा आक्रमक मोड मे बैठे है। इसलिए भारत को झुकना पड़ेगा, नहीं झुके तो अमेरिका हमारी कम्पनियो पर टेरिफ़ लगा देगा।
यदि ऐसा हुआ तो डॉलर 100 पार भी हो सकता है, इससे बचने के लिये यदि हमने अमेरिकी कम्पनियो का टेरिफ़ घटाया तो वो भारत मे आसानी से घुस आएगी और मुकेश अंबानी समेत ना जाने कितने बिजनेस हॉउस बर्बाद कर देगी। एक तरफ कुआ है दूसरी तरफ खाई।
खेर जैसे जैसे ट्रम्प अन्य देशो पर टेरिफ़ लगाएंगे रुपया इसी तरह गिरता जाएगा। इसमें हम कुछ नहीं कर सकते, वैसे तो कर सकते है हम यदि रिसर्च पर पैसा खर्च करें तो बात बन सकती है मगर फिर मनरेगा और लाड़ली बहन जैसी बकवास योजनाये बंद करनी होंगी।
जनता मे वित्तीय समझ उतनी नहीं है, यदि ये योजनाये बंद हुई तो जनता उन लोगो को चुनकर भेजेगी जो इन योजनाओं को पुनः जीवित करेंगे। कुल मिलाकर भारतीय अर्थव्यवस्था को भारतीयों से भी लड़ना है।
दूसरी सबसे बड़ी बात, अमेरिका के एक रिसर्च पेपर ने एक बार लीबिया के तानाशाह गद्दाफी के खिलाफ कई पेपर्स छापे। अमेरिकी सोशल मीडिया, एजेंसी और सेलिब्रिटीज का प्रयोग हुआ और एक दिन क्रांति हुई, जनता ने गद्दाफी को मार डाला।
गद्दाफी से सहानुभूति तो नहीं है मगर ये मानना पड़ेगा कि अमेरिका के पास ये भी सॉफ्ट पॉवर है कि वो जिस देश मे चाहे दंगे फसाद करा दे। जब राहुल गाँधी ने अमेरिका मे सिखो का मुद्दा उठाया था, जिसे बेसिक समझ भी हो उसे एक पल के लिये डर जरूर लगा होगा।
क्योंकि उस समय ऐसी कोई घटना नहीं हुई थी जो राहुल गाँधी ने कही थी, राहुल गाँधी के माध्यम से डीप स्टेट ने एक दांव खेला कि भारत मे हलचल होती है या नहीं? फिर मार्क जुकरबर्ग ने बोल दिया कि बीजेपी 2024 का चुनाव हार गयी थी, बाद मे अपना बयान वापस ले लिया।
लेकिन इन दोनों ही घटनाओ मे समानता ये है कि इनकी बदौलत देश मे दंगे भड़क सकते थे, अमेरिका की फोर्ब्स मैगजीन ने इस साल भारत को शक्तिशाली देशो की सूची मे चौथे की जगह बारहवे स्थान पर रखा है।
एक जिम्मेदार नागरिक इस रिपोर्ट को रिजेक्ट करता है मगर मन से सफ़ेद चमड़ी का गुलाम हो चुका भारतीय अपने ही देश पर शक करता है। ये सारे एक साइन है कि हमारा समाज अंदर से खोखला है, हमें हमारे ही विरुद्ध जब चाहे तब इस्तेमाल किया जा सकता है और हम ख़ुशी ख़ुशी हो भी जाएंगे।
ऐसे मे उपाय हमारे शास्त्रों मे है, ज्यादा से ज्यादा ज्ञान प्राप्त कीजिये। अपनी सोच का दायरा बढाइये, यदि कोई विदेशी एजेंसी भारत को लेकर रिपोर्ट दे रही है तो बजाय उसे मन मे उतारने के, पहले उसकी नियत का आंकलन कीजिये।
एक बार नेता चुनिए और चुनने के बाद फिर उस पर भरोसा कीजिये क्योंकि राष्ट्रवादी नेताओं के निर्णय गलत हो सकते है नियत नहीं। उत्तेजना मे राय नहीं भी बनाएंगे तो भी आप देश को एक बड़ी विपदा से बचा सकते हैं।
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