Rajeev Chikara
गठबंधन का नाम इंडिया और लड़ाई लड़ेंगे इंडियन स्टेट्स से। लगता है तपस्या से मन स्थिर हुआ नहीं हुआ या फिर अभी तपस्या का ताप दिमाग में है और यहां जबरिया बुला लिए गए तपस्या अधूरी छोड़कर ।
Amrit Pal
डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा धमकी के अंदाज़ में दिए बयान के बाद भारत की प्रतिक्रिया इस समय चर्चा में है। दरअसल ट्रंप की इच्छा थी कि इस धमकी के बाद सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें फ़ोन करेंगे लेकिन सिवाय राहुल गांधी के कांग्रेस पार्टी तक ने ट्रम्प के बयान को गंभीरता से नहीं लिया। यहाँ तक विदेश मंत्री अथवा कॉमर्स मंत्री ने भी कुछ नहीं बोला। बल्कि हद तब हो गई जब कॉमर्स मिनिस्ट्री ने एक पत्र जारी किया, जिसमें नीचे किसी का हस्ताक्षर भी नहीं था और यह भी नहीं लिखा था कि यह पत्र आखिर किसको संबोधित कर रहा है। पत्र को इस तरह से डिज़ाइन किया गया था जैसे कि मंत्रालय के किसी छोटे स्तर के बाबू के इसे तैयार किया हो। यहाँ तक USA की जगह US लिखा गया, अमेरिकी राष्ट्रपति के नाम को भी नहीं लिया गया और स्पष्ट रूप से लिखा गया कि भारत सरकार वह करेगी जो उसके किसानों और मध्यम और छोटे व्यापारियों के हित में होगा।
स्पष्ट है कि 1991 में डंकेल प्रस्ताव की असफलता के बाद अमेरिका फिर से भारत की खेती को अपने शर्तों पर कराना चाहता है। इसलिए लगातार अमेरिका कृषि क्षेत्र को लेकर भारत पर अपना दबदबा बनाने के प्रयास में है। उस समय कांग्रेस की सरकार ने इस प्रस्ताव को न केवल स्वीकार कर लिया था बल्कि इसके दुष्प्रभाव भी कुछ स्थानों पर दिखाई देने शुरू हो गए थे, यह बात अलग है जगह जगह शुरू हुए किसान आंदोलनों ने सरकार को चार साल के भीतर ही डंकेल प्रस्ताव वापिस लेने पर मजबूर कर दिया था।
जो प्रस्ताव कांग्रेस सरकार भारत पर लागू नहीं करा सकी, उसके भाजपा सरकार में लागू कराने का सपना अमेरिका द्वारा देखना एक दिवास्वप्न से ज़्यादा कुछ नहीं है। हाँ, यह बता महत्वपूर्ण है कि गांधी परिवार तब भी डंकल प्रस्ताव के साथ था और आज़ भी है। इनके देशद्रोह में कोई कमी नहीं हुआ है। अच्छी बात यह है कि तमाम कांग्रेस के नेताओं में स्वयं को राहुल गांधी की लाइन से अलग रखा है।