संजीव जैन
गुजरात के वडोदरा में नाव पलटने से कई बच्चों के असामयिक निधन का समाचार अत्यंत दु:खद एवं पीड़ादायक है।
ईश्वर दिवंगत आत्माओं को अपने श्रीचरणों में स्थान प्रदान करे व परिजनों को यह दु:ख सहन करने की शक्ति दे।
ॐ शांति:!
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क्या CJI चंद्रचूड़ डरपोक हैं
या Judicial Fraternity में
जंगल राज चल रहा है -
एक खबर दब गई चुनाव के माहौल में - परसों 26 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार पुनीत सहगल ने एडवोकेट मैथूस नेदमपरा की कॉलेजियम को ख़त्म करने और NJAC को बहाल करने की याचिका को accept करने से मना करते हुए कहा कि -
“कॉलेजियम को पहले ही Upheld किया जा चुका है और NJAC को, जिसमे जजों की नियुक्ति के मामले में सरकार को बराबर के अधिकार दिए गए थे, संविधान पीठ ने October, 2015 में ख़ारिज कर दिया था - review petition भी 2018 में ख़ारिज हो गई थी - इसलिए Repeat litigation न्यायपालिका के समय और energy की बर्बादी करना है”
पुनीत सहगल ने 2013 के सुप्रीम कोर्ट के Rules का सहारा लेते हुए कहा कि -
“I hold that the registration of the present case was not proper and by virtue of order XV Rule 5 of the Supreme Court Rules, 2013 I hereby decline to receive the same”
2013 के rule के अनुसार रजिस्ट्रार याचिका को Receive करने से मना कर सकता है अगर याचिकाकर्ता ने कोई reasonable cause नहीं बताया या यह याचिका तुच्छ है या इसमें scandalous matter है -
याचिका Receive करने से मना करने का क्या मतलब हो सकता है जब यह याचिका नवंबर, 2022 से सुप्रीम कोर्ट में पड़ी है - एडवोकेट नेदमपरा ने 17 नवंबर, 2022 को याचिका दायर की थी और CJI चंद्रचूड़ ने याचिका को उचित समय पर list करना स्वीकार किया था (The Hindu की 17 नवंबर, 2022 की रिपोर्ट कोई भी देख सकता है) -
उसके बाद 23 अप्रैल 2023 को CJI चंद्रचूड़ ने नेदुमपरा द्वारा याचिका mention करने पर कहा था कि कॉलेजियम को 9 जजों के बेंच ने बनाया था, इसे क्या एक Writ Petition से Challenge कर सकते हैं -
जब याचिका CJI चंद्रचूड़ ने ही Admit कर ली थी तो रजिस्ट्रार उसे receive करने से मना कैसे कर सकता है - रजिस्ट्रार का काम किसी याचिका को ख़ारिज करने का नहीं होता, उसका काम याचिका में खामी देखने का होता है और यदि कुछ कमी है तो याचिकाकर्ता से सुधार करवा का चीफ जस्टिस के सामने प्रस्तुत करना होता है जिससे उचित तारीख पर लिस्ट किया जाए - ये Repeat Litigation है तो EVM पर 40 याचिकाएं कैसे स्वीकार हुईं -
यह Judicial Fraternity का झोल है - ऐसा प्रतीत होता है कि चंद्रचूड़ याचिका सुनने से बचना चाहते थे क्योंकि यदि सुनवाई होती तो बहुत कुछ छुपी हुई बातें सामने आ सकती थी जिससे यह पूरी Judicial Fraternity बेनकाब हो सकती थी कि उसमे कैसा जंगल राज चल रहा है - याचिका पर सुनवाई से बचने के लिए यह रास्ता निकाला गया कि रजिस्ट्रार से मामले को दबा दिया जाए - एक collegium गैर-संवैधानिक / गैर-कानूनी और अब याचिका को भी ख़ारिज करने का तरीका ऐसा अपनाया गया जो किसी को भी स्वीकारनीय नहीं हो सकता -
रजिस्ट्रार पुनीत सहगल ने यह कैसे कह दिया कि NJAC में जजों की नियुक्ति के लिए “बराबर” के अधिकार दिए गए थे जबकि सच यह है कि NJAC में प्रस्तावित 6 सदस्यों की नियुक्ति समिति में सरकार की तरफ से केवल एक कानून मंत्री था और बाकी 5 सदस्यों के चयन में चीफ जस्टिस का ही रोल था -
समिति में CJI, सुप्रीम कोर्ट के 2 अन्य जज, कानून मंत्री और 2 प्रतिष्ठित व्यक्ति थे (जिनका चयन एक समिति ने करना था जिसमें प्रधानमंत्री, CJI और विपक्ष के नेता थे) ऐसे में सब कुछ न्यायपालिका के हाथ में था लेकिन एक कानून मंत्री से समस्या हो गई थी और 2015 में संविधान पीठ ने NJAC को “न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला” बता कर ख़ारिज कर दिया जबकि जजों को वह अधिकार नहीं था क्योंकि वो स्वयं stakeholder और interested party थे, जो अपने ही खिलाफ सुनवाई नहीं कर सकते थे -
नेदुमपुरा ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट के NJAC पर फैसले को void ab initio और कॉलेजियम को “nepotism and favouritism” का पर्यायवाची कहा था जिसमें कुछ गलत नहीं था -
CJI चंद्रचूड़ को दखल देकर रजिस्ट्रार के आर्डर को स्वतः ही ख़ारिज कर देना चाहिए और 13 लोगों की पीठ का गठन करना चाहिए जिसमें 6 जज हों और 7 Eminent Personalities हों क्योंकि एक बार फिर से जजों के हाथ से फैसला नहीं होना चाहिए -
(सुभाष चन्द्र - मोदी का परिवार)
“मैं वंशज श्री राम का”
28/04/2024
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