संजीव जैन
"अच्छी थी, पगडंडी अपनी, सड़कों पर तो, जाम बहुत है!!
फुर्र हो गई फुर्सत, अब तो, सबके पास, काम बहुत है!!
नही बचे, कोई सम्बन्धी, अकड़,ऐंठ,अहसान बहुत है!!
सुविधाओं का ढेर लगा है यार, पर इंसान परेशान बहुत है!!\ud83d\udc9e
" गाँव "
Sanjay khambete
(owner)
महाकुंभ में मुसलमानों की एंट्री बैन
न ही कोई मुस्लिम दुकान लगायेगा।
8 अखाड़ों का फैसला- 'कुंभ में आईडी हो जरूरी'
#mahakumbh2025
शशिरंजन सिंह
1991 वामपन्थ ने देश को बर्बाद कर दिया।
1990 रूस टूट चुका था।
अचानक एक ग्रेट इकोनॉमिस्ट वैश्वीकरण की तरफ भारत को ले जाता है।
आखिर इतनी मेहनत लगी थी भारत को अपना सोना गिरवी रखवाने के साथ ही IMF के आगे कटोरा लेकर खड़ा करवाने में।
तय होता है कि IMF पैसा देगा बदले में अपना बाजार खोलो।
5 साल फिर भी नॉन खानदान के प्रधानमंत्री की सरकार चलती है।
Antonia अभी राजनीति से दूर रहने का दिखावा कर रही है।
पुराने सारे हर्डल निकाल दिए गए हैं।
1996-1998 के बीच सत्ता की लड़ाई।
फिर अटल दौर।
इस बीच सोनिया का मुस्लिम लीग पर कब्जा।
1999 में sorrows की एंट्री।
इसी दौर में प्राइवेट चैनल आने शुरू।
मीडिया में एक से एक दल्ले बनने का दौर।
5 साल के अटल के काम को लोगों के दिमाग से हटाने और अटल को किसी ताबूत घोटाले, तहलका आदि में फंसा सत्ता से दूर।
अब सो-रोस और एंटो-निया का मिलन।
सो+निया का राजनीति में जन्म।
मनमोहन दरबारी का प्रधानमंत्री बनना।(क्लब ऑफ रोम)
सो+निया का NAC बना वहां sorrows के लोग बिठाना।
इसी दौर में चीन का बड़ा बनना शुरू।
Sorrows का चीन की तारीफ करना।
ओबामा का चीन को कहना कि हम दोनों G2 हैं जो दुनिया पर राज करेंगे।
सेम जैसा रुजल्वेल्ट ने स्टालिन को द्वितीय महायुद्ध के बाद कहा था कि हम दोनों दुनिया पर राज करेंगे।(भारत स्टालिन को गिफ्ट किया रुजल्वेल्ट ने)
इस तरह चीन का भी भारत मे दखल।
2008 में MoU साइन हुआ मुस्लिम लीग और कम्युनिस्ट पार्टी चीन के बीच।
फिर वो 2004 से 2014 का काल।
लेकिन फिर कुछ बदला।
चीन में जिनपिंग आ गया जिसने खुद को माओ द्वितीय घोषित कर दिया।
इधर मोदी आ गया।
अमरीका चिढ़ गया।
अब दोनों का हटाना है।
पुतिन पहले से ही दुश्मन था क्योंकि वो तो आधुनिक जार जो है।
लेकिन अब sorrows बुड्ढा हो गया है। मरने वाला है।
एंटोनिया भी बूढ़ी हो चुकी।
तो उधर sorrows का लौंडा एलेक्स अब बाप की विरासत चला रहा।
इधर एंटोनिया का लौंडा raul विरासत सम्भाल रहा।
दोनों नए नवेले हैं इसलिए जल्दी एक्सपोज हो रहे।
पुराने घाघ थे तो हमेशा "त्याग की देवी" और "दानवीर देवता(फिलॉन्ट्रोफिस्ट)" की तरह दुनिया मे प्रोजेक्ट होते रहे।
और जितना ये लोग एक्सपोज हो रहे उतना बौखला भी रहे हैं।
अब इकोसिस्टिम पर प्रहार होना शुरू हो चुका।
उधर ट्रम्प खुलकर खेल रहा और इधर मोदी।
पिछले कार्यकालों में दोनों को लगा कि ये पर्दे के पीछे से काम करते हैं तो हम भी पर्दे के पीछे लड़ लेंगे इनसे।
लेकिन इन्होंने दोनों को डैमेज दिया।
ट्रम्प चुनाव हार गया और मोदी 240 पर आ गए।(हमारी वाली सोनिया को न भूलना जिसकी भी भूमिका रही)
तो इसलिए अब खुलकर बैटिंग हो रही है।
अनिल जैन
जो अत्याचार अफगानिस्तान,पाकिस्तान,कश्मीर मे हो चुका है..
और बंग्लादेश मे हो रहा वो पुरे भारतवर्ष मे कितने सालों के बाद हो सकता है ??
Priyadarshi Tiwari
जिंदगी का अंतिम सत्य यही है
इंसान की तमन्ना अधूरी रह जाती है