Bhawesh Chahande
We were all humans until, religion separated us, politics divided us, wealth classified us and race disconnected us. Since the universe is an organic whole, governed by cosmic order, all human being must be treated as fellows. Secondly, as human nature all over the ....visit... http://www.lifometry.com/2019/06/well-being-of-all.html
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डाईबटीज के रुग्णो में कॉम्प्लिकेशन (#diabetescomplications) निर्माण होने के कुछ विशिष्ठ कारण नज़र में आए हैं, आपके साथ भी साझा कर रहे हैं-
१) डाईबटीज का रुग्ण अगर दही, अत्यधिक पानी पीना, रोज़ स्नान ना करना, मांसाहार का अति सेवन, दिन में सोना इत्यादि कारणो का सेवन करता है तो उसे - #nephropathy (डाईबटीज के कारण हुई किड्नी की बीमारी/किड्नी फेल) होने की सम्भावना ज़्यादा मिल रही है।
२) डाईबटीज का रुग्ण अगर नमक, मिर्च, खट्टा इत्यादि का अधिक सेवन करे, क्रोध अथवा चिंता अधिक करे, अथवा नेत्र से जुड़े व्यवसाय जिसमें स्क्रीन टाइम ज़्यादा हो ऐसे अवस्था में उसे - #retinopathy (डाईबटीज के कारण हुई आँखों की बीमारी/अंधापन) होने की सम्भावना ज़्यादा मिल रही है।
३) डाईबटीज का रुग्ण अगर नीम, करेले का जूस, या अत्यधिक रूक्ष आहार जैसे गेहूं बंद कर चने आदि की रोटी खाता है, खाना कम कर अनुचित तरीक़े से भूखा रहने की कोशिश करता है, शक्ति से अधिक व्यायाम करता है, या फिर आहार में घी-दूध त्याग कर कम चिकनाई वाले रेफ़ायंड तेल ला सेवन करता है तो उसे - #neuropathy (डाईबटीज के कारण हुई नसों की बीमारी/डाईबटीक अल्सर/झनझनाहट) होने की सम्भावना ज़्यादा मिल रही है।
वैद्य राहुल गुप्ता
Deoratna Goel
यदि किसी के यहां कुल पुरोहित/गुरु नहीं है तो वह किसी अन्य सुपात्र को अपना गुरु बना सकता है। गुरु ऐसा होना चाहिए जो आपके दुःख सुख के बारे में जानता हो, आपसे उसका प्रत्यक्ष संवाद हो। अपने कुल पुरोहित, कुल गुरु के होते उन्हें छोड़कर दूसरों से दीक्षा लेना वैसे ही है जैसे पिता के रहते दूसरे को पिता मानना। प्रत्येक आध्यात्मिक पुरुष का सम्मान है, प्रत्येक गुरु का सम्मान है ठीक वैसे जैसे प्रत्येक माता का सम्मान है लेकिन निज जननी तो निज जननी ही है।
बड़े कथावाचकों, पीठाधीशों, महामण्डलेश्वरों से विनम्र अनुरोध है कि आप जहां जाएं वहां के लोगों को सीधे दीक्षा देने की बजाय स्थानीय कुल पुरोहितों, कुल गुरुओं की खोज करें, लोगों का संवाद उनसे कराकर उनके माध्यम से दीक्षा कार्यक्रम करें। यदि कुल पुरोहित नहीं मिलते तो पिंड प्रवर में इसकी पुनः स्थापना करें।
दीक्षा देने लेने वालों का आपस में प्राथमिक परिचय होना बहुत आवश्यक है। ऐसा नहीं होना चाहिए कि हजार की भीड़ है और माइक से मंत्र फूंक कर सबको चेला बना लिया गया। गुरु बनना अत्यंत कठिन कार्य होता है। शिष्यों के कार्यों की जिम्मेदारी गुरु पर ही आती है। शिष्यों का पुण्य गुरु को एक चौथाई मिलता है तो शिष्यों के पाप गुरु को दस गुना मिलते हैं।
हर जाति, समुदाय का अपना गुरु होता है। महामण्डलेश्वरों को चाहिए कि उन स्थानीय गुरुओं का मान करें, उनसे सहमति और उनके माध्यम से कर्मकाण्ड संपन्न करवाएं।
स्मरण रखें, दीक्षा देना फैन फॉलोइंग बनाना नहीं है। बहुत सावधानी बरतें, लालच और अहंकार से मुक्त होकर ही यह कार्य करें।
Pawan Vijay