Bhawesh Chahande
We were all humans until, religion separated us, politics divided us, wealth classified us and race disconnected us. Since the universe is an organic whole, governed by cosmic order, all human being must be treated as fellows. Secondly, as human nature all over the ....visit... http://www.lifometry.com/2019/06/well-being-of-all.html
IN6204703573
(owner)
डाईबटीज के रुग्णो में कॉम्प्लिकेशन (#diabetescomplications) निर्माण होने के कुछ विशिष्ठ कारण नज़र में आए हैं, आपके साथ भी साझा कर रहे हैं-
१) डाईबटीज का रुग्ण अगर दही, अत्यधिक पानी पीना, रोज़ स्नान ना करना, मांसाहार का अति सेवन, दिन में सोना इत्यादि कारणो का सेवन करता है तो उसे - #nephropathy (डाईबटीज के कारण हुई किड्नी की बीमारी/किड्नी फेल) होने की सम्भावना ज़्यादा मिल रही है।
२) डाईबटीज का रुग्ण अगर नमक, मिर्च, खट्टा इत्यादि का अधिक सेवन करे, क्रोध अथवा चिंता अधिक करे, अथवा नेत्र से जुड़े व्यवसाय जिसमें स्क्रीन टाइम ज़्यादा हो ऐसे अवस्था में उसे - #retinopathy (डाईबटीज के कारण हुई आँखों की बीमारी/अंधापन) होने की सम्भावना ज़्यादा मिल रही है।
३) डाईबटीज का रुग्ण अगर नीम, करेले का जूस, या अत्यधिक रूक्ष आहार जैसे गेहूं बंद कर चने आदि की रोटी खाता है, खाना कम कर अनुचित तरीक़े से भूखा रहने की कोशिश करता है, शक्ति से अधिक व्यायाम करता है, या फिर आहार में घी-दूध त्याग कर कम चिकनाई वाले रेफ़ायंड तेल ला सेवन करता है तो उसे - #neuropathy (डाईबटीज के कारण हुई नसों की बीमारी/डाईबटीक अल्सर/झनझनाहट) होने की सम्भावना ज़्यादा मिल रही है।
वैद्य राहुल गुप्ता
Deoratna Goel
बहुत कम लोग जानते होंगे कि 1948 मे एक फिलिस्तीन कम्युनिस्ट पार्टी हुआ करती थी, आश्चर्य यह है कि ये यहूदियो की पार्टी थी जो इजरायल के खिलाफ थी और फिलिस्तीन के समर्थन मे थी। आज इसकी एक शाखा हदाश नाम से है और सबसे बड़ी बात इजरायल की संसद मे 3 सांसद भी है।
इससे क्या सिद्ध होता है? गद्दार हर कौम मे होते है बात आती है कि राष्ट्रवादियों का क्या स्टैंड होता है। 1917 मे ज़ब रूस मे कम्युनिस्ट क्रांति हुई तो उसके बाद क्रांति के नेता व्लादिमीर लेनिन ने पूरी दुनिया को एक सन्देश दिया। कम्युनिस्ट तो देश के कांसेप्ट के खिलाफ थे और विशेषकर ब्रिटेन फ़्रांस के।
इसलिए लेनिन ने अरब देशो को दोस्त बनाया, कम्युनिस्ट और मुसलमान दो विपरीत विचार है मगर यहाँ दुश्मन का दुश्मन दोस्त था इसलिए दोनों एक हुए। उस समय की सुपरपॉवर ब्रिटेन के खिलाफ मोर्चा खुला और मिडिल ईस्ट के कई देश आजाद होने लगे, लेनिन ने तो भारत को भी इस्लामिक देश कहा था लेकिन भारत की नियती कुछ और थी।
ब्रिटेन चुप नहीं बैठा, 1923 मे लेनिन का अंत हुआ और जोसेफ़ स्टालीन सत्ता मे आया। जोसेफ़ स्टालीन की नीति विपरीत थी वह अनकहे साम्राज्यवाद पर चल पड़ा। ज़ब 1942 मे हिटलर ने सोवियत संघ पर हमला किया तब तो क्या कम्युनिस्ट और क्या साम्राज्यवाद सब एक होकर नाजीवाद से लड़ने लगे।
यही वो बिंदु था जब मुसलमानो ने देखा कि कम्युनिस्ट उनके सगे नहीं है, स्टालीन ने ये काम भी अच्छा किया कि जो कम्युनिस्ट लेनिन के विचार वाले थे उन्हें मरवा दिया इसलिए लेनिन के दर्शन मे 30 सालो का अंतर आया और ये वर्तमान मे भारत के हिसाब से तो बहुत अच्छा हुआ।
खैर दूसरा विश्वयुद्ध खत्म हुआ तो सोवियत संघ मे मौत का आंकड़ा 3 करोड़ था, सेंट पीटर्सबर्ग और वॉल्वोग्राड जैसे शहर खंडहर हो रहे थे। स्टालीन के पास इतना समय नहीं था कि वो कम्युनिस्म फैलाने के लिए लड़े, वैसे भी नाटो बन चुका था और तुर्की उसका हिस्सा था।
जिन अरब देशो मे उसे गठबंधन करना था वहाँ ब्रिटेन के रहमोंकरम पर राजशाही बैठी थी, वैसे सुपर पॉवर तो ब्रिटेन भी नहीं था मगर उसका हैंडओवर अमेरिका ले चुका था। उस समय का अमेरिका कमाल था, ब्रिटेन जहाँ अरब देशो को लुटेरों की तरह लूटता था वही अमेरिका ने क्लासिक ढंग अपनाया।
इन देशो मे अमेरिका ने लोकतंत्र के प्रयास नहीं किये क्योंकि जानते थे कि राजतंत्र बना रहा तो सिर्फ राजा को मुट्ठी मे रखो राष्ट्र स्वतः हो जायेगा। इसे आप अमेरिकन वे ऑफ़ कॉलोनीज्म कह सकते है, अमेरिका ने अजेंडा फैलाने मे कोई कसर नहीं छोड़ी। राजाओं को बताया कैसे कम्युनिस्टो ने सत्ता पाकर रूस के राजा को परिवार समेत मारा था।
यही कारण है कि अरब देशो ने नास्तिकवाद के लिए मौत की सजा रखी हुई है ताकि कम्युनिस्टो की एंट्री ही ना हो। मोरक्को से पाकिस्तान तक हर देश मे अमेरिका के पिट्ठू बैठे थे, सिर्फ एक अफगानिस्तान शेष था। अफगानिस्तान का राजा अमेरिका समर्थक तो था मगर गुलाम नहीं, यहाँ सोवियत ने पैठ बनानी शुरू की मगर अमेरिका ने तालिबान खड़ा कर उसे रोक दिया।
1991 मे सोवियत संघ का ही पतन हो गया और कम्युनिस्ट ये करते वो करते सब धरा रह गया। भारत के लिए इसमें अच्छी बात यह हुई कि 1947 से 1989 तक भारत भी एक प्रकार की राजशाही ही रहा, नेहरू गाँधी परिवार ना सोवियत परस्त रहा ना ही अमेरिका परस्त। नियम उस हिसाब से बनाये जो सत्ता पक्ष के अनुकूल हो।
भारत मे नक्सलवाद को आज कोई न्यायोचित नहीं ठहरा सकता जबकि प्रयास पूरे होते है, यूनियनबाजी आज भी गलत है। ये सब वे तत्व है जिनके लिए वर्तमान सरकार चाहे तो पूर्व सरकारों को धन्यवाद कह सकती है। ये जो गृहयुद्ध के प्रयास असफल हो रहे है उसमे एक बड़ी अड़चन यही है कि दादी खुद पौते के लिए चक्रव्यूह तैयार करके गयी है।
ये समझने योग्य कि गद्दार तो हर समाज मे है मगर राष्ट्रवादी इतिहास के पन्ने पलटकर देखते रहे ताकि ट्रेंड समझ आये कि अति बहुत बुरी चीज है। साम्राज्यवाद से देश लड़ा मगर कम्युनिस्टो के जाल मे नहीं फसा, कम्युनिस्ट कांग्रेस से पराजित हुए मगर देश कांग्रेस के जाल मे भी नहीं फसा।
हिंदुत्व की लौ जलती रही और अंत मे देश की सत्ता उन्ही हाथों मे आयी जो हाथ देश हर सदी मे ढूंढता रहा।
✍️परख सक्सेना✍️
https://t.me/aryabhumi