Bhawesh Chahande
We were all humans until, religion separated us, politics divided us, wealth classified us and race disconnected us. Since the universe is an organic whole, governed by cosmic order, all human being must be treated as fellows. Secondly, as human nature all over the ....visit... http://www.lifometry.com/2019/06/well-being-of-all.html
IN6204703573
(owner)
डाईबटीज के रुग्णो में कॉम्प्लिकेशन (#diabetescomplications) निर्माण होने के कुछ विशिष्ठ कारण नज़र में आए हैं, आपके साथ भी साझा कर रहे हैं-
१) डाईबटीज का रुग्ण अगर दही, अत्यधिक पानी पीना, रोज़ स्नान ना करना, मांसाहार का अति सेवन, दिन में सोना इत्यादि कारणो का सेवन करता है तो उसे - #nephropathy (डाईबटीज के कारण हुई किड्नी की बीमारी/किड्नी फेल) होने की सम्भावना ज़्यादा मिल रही है।
२) डाईबटीज का रुग्ण अगर नमक, मिर्च, खट्टा इत्यादि का अधिक सेवन करे, क्रोध अथवा चिंता अधिक करे, अथवा नेत्र से जुड़े व्यवसाय जिसमें स्क्रीन टाइम ज़्यादा हो ऐसे अवस्था में उसे - #retinopathy (डाईबटीज के कारण हुई आँखों की बीमारी/अंधापन) होने की सम्भावना ज़्यादा मिल रही है।
३) डाईबटीज का रुग्ण अगर नीम, करेले का जूस, या अत्यधिक रूक्ष आहार जैसे गेहूं बंद कर चने आदि की रोटी खाता है, खाना कम कर अनुचित तरीक़े से भूखा रहने की कोशिश करता है, शक्ति से अधिक व्यायाम करता है, या फिर आहार में घी-दूध त्याग कर कम चिकनाई वाले रेफ़ायंड तेल ला सेवन करता है तो उसे - #neuropathy (डाईबटीज के कारण हुई नसों की बीमारी/डाईबटीक अल्सर/झनझनाहट) होने की सम्भावना ज़्यादा मिल रही है।
वैद्य राहुल गुप्ता
Deoratna Goel
बड़ी पुरानी कहानी है..सम्राट सोलोमन की। यहूदी कहते हैं, सोलोमन से बुद्धिमान आदमी दुनिया में कभी दूसरा नहीं हुआ। सोलोमन का नाम तो लोकलोकांतर में व्याप्त हो गया है। हिंदुस्तान में भी गांव के लोग भी, कोई अगर बहुत ज्यादा बुद्धिमानी दिखाने लगे तो कहते हैंः बड़े सुलेमान बने हो! वह सोलोमन का नाम है। उनको पता भी नहीं कि कौन सोलोमन था, कौन सुलेमान था; लेकिन वह प्रविष्ट हो गया है।
सेबा की रानी सोलोमन के प्रेम में पड़ गई। वह चाहती थी, दुनिया के सबसे ज्यादा बुद्धिमान आदमी से प्रेम करे। बुद्धुओं से तो प्रेम बहुत आसान है, लेकिन परिणाम सदा दुखकर होता है। तो सोलोमन की जब खबर सुनी हो सेबा की रानी ने, तो उसने कहा कि अगर प्रेम ही करना है तो इस बुद्धिमान से करेंगे, अन्यथा प्रेम दुख लाता है। बुद्धुओं से प्रेम करो..दुख में पड़ोगे। उसने सब प्रेम करके देख लिए थे। वह बड़ी सुंदर थी। कहते हैं, जैसे सोलोमन बुद्धिमान था, ऐसा सेबा की रानी सुंदर थी। उसने सोचा कि सौंदर्य और समझ, इनका मेल हो।
वह गई। पर इसके पहले कि वह सोलोमन को चुने, परीक्षा लेनी जरूरी हैः बुद्धिमान है भी या नहीं? तो अपने साथ एक दर्जन बच्चे ले गई। छह उनमें लड़कियां थीं और छह उनमें लड़के थे; लेकिन उनको एक से कपड़े पहनाए गए थे और सबकी उम्र चार-पांच साल की थी। पहचान बिल्कुल मुश्किल थी। उनके बाल एक से काटे गए थे, कपड़े एक से पहनाए गए थे। और वह जाकर खड़ी हो गई उन बारह, एक दर्जन बच्चों को लेकर, और उसने दूर से सोलोमन से कहा कि अब तुम देख लो। तुम इनमें बता दो, कौन लड़कियां हैं और कौन लड़के? यह तुम्हारी पहली परीक्षा है।
बड़ा मुश्किल था। दरबारी भी थोड़े घबड़ा गए कि यह परीक्षा तो बड़ी कठिन मालूम पड़ती हैः समझ में नहीं आता कि कौन लड़का है, कौन लड़की! पर सोलोमन ने परीक्षा कर ली। उसने कहाः एक दर्पण ले आओ। लड़कों के सामने दर्पण रखा गया, वे ऐसे ही खड़े देखते रहे; लड़कियों के सामने रखा गया, वे उत्सुक हो गईं। लड़की, और दर्पण सामने हो! बात ही बदल गई। उसने छह लड़कियां अलग निकाल दीं। कपड़े ऊपर से पहना दो, लेकिन भीतर की सत्ता अगर स्त्रैण है तो बहुत मुश्किल है बदलना। लड़की दर्पण में और ही ढंग से देखती हैः कोई लड़का देख ही नहीं सकता। वह असंभव ही है।
मैंने सुना है कि एक दिन नसरुद्दीन अपने घर में मक्खियां मार रहा था। उसकी पत्नी ने पूछाः कितनी मार चुके? उसने कहा कि दो स्त्रियां, मादाएं और दो पुरुष। पत्नी ने कहाः हद हो गई! यह कभी सुना नहीं। तुमने पता कैसे लगाया कि कौन मादा, कौन पुरुष?
उसने कहाः दो दर्पण पर बैठी थीं। वे मादा होनी चाहिए। दर्पण पर पुरुष क्या करेगा बैठ कर! वे घंटों से बैठी थीं, वहीं बैठी थीं।
भीतर का अस्तित्व, भीतर का ढंग…।
दूसरी बार सेबा दो फूलों के गुलदस्ते लेकर आई, दूर खड़ी हो गई। उसमें एक फूलों का गुलदस्ता नकली था, कागजी था, पर बड़े-बड़े कलाकारों ने बनाया था। दूसरा गुलदस्ता असली था। उसने कहाः बस, यह आखिरी परीक्षा। कौन सा असली है? क्योंकि सेबा ने सोचा कि लड़के-लड़कियां को तो इसने दर्पण से पहचान लिया; फूलों का क्या करेगा? और वह इतनी दूर खड़ी थी कि गंध न आ सके। दरबारी घबड़ाए। सोलोमन ने कहाः दरवाजे-खिड़कियां खोल दिए जाएं महल के। दरवाजे-खिड़कियां खोल दिए गए। दो क्षण में तय हो गया। दो मक्खियां उड़ती भीतर आ गईं। वे असली फूलों पर जाकर बैठ गईं। उसने कहाः वे असली फूल हैं।
मक्खियों को कैसे धोखा दोगे? मक्खी नकली फूल पर किसलिए जाएगी? असली फूल की गंध उसे बुला लाई।
जब तुम्हारे भीतर सत्य होता है तभी तुम्हारे बाहर…जब तुम्हारे भीतर सत्य नहीं होता तब तुम लाख उपाय करो, नकली फूल हो। दूसरों को भी धोखा दे दोगे; अपने को कैसे दोगे? हो सकता है, कुछ बुद्धू मक्खियां हों, मूढ़ हों, नशे में हों, और बैठ जाएं, तो भी क्या फर्क पड़ता है? लेकिन इससे भी तो कोई नकली फूल असली न हो जाएगा।
अगर यह सोलोमन सच में ही बुद्धिमान न होता तो मुश्किल में पड़ जाता। तुम्हें ख्याल आता दर्पण का? मुश्किल होती। तुम्हें ख्याल आता खिड़कियां खुली छोड़ देने का? अब आ सकता है क्योंकि कहानी मैंने तुमसे कह दी। कहानी कहने के बाद कोई मतलब हल नहीं होता। बात खत्म हो गई। अब दुबारा रानी सेबा सोलोमन का इन ढंगों से परीक्षण नहीं कर सकती। और जिंदगी की रानी नये-नये उपाय खोजती है और कभी कोई सुलेमान पार हो जाता है, उत्तीर्ण हो पाता है।
ओशो
*संकलन-रामजी*