संजीव जैन
"अच्छी थी, पगडंडी अपनी, सड़कों पर तो, जाम बहुत है!!
फुर्र हो गई फुर्सत, अब तो, सबके पास, काम बहुत है!!
नही बचे, कोई सम्बन्धी, अकड़,ऐंठ,अहसान बहुत है!!
सुविधाओं का ढेर लगा है यार, पर इंसान परेशान बहुत है!!\ud83d\udc9e
" गाँव "
Anupama Jain
लगाव नही है मुझे तुमसे,
ठहराव हो तुम मेरा,
जहां से में कभी गुजरना नही चाहती,
बस गई हूं,थम गई हूं,
और ठहर गई हैं मेरी सारी भावनाएं,
मेरे सारे एहसास बस तुम पर आकर,❣️
जैसे तपती सड़क पर चलते हुए,
किसी मुसाफिर को मिल जाती है,
किसी घने से पेड़ की छांव ,
और वो सुकून से बैठ जाता हैं वहां,
ऐसा लगता है मानो ..
जो सांसों का आवागमन,
रुक सा गया था मीलों चलते चलते,
वो फिर से गति पकड़ चुका है,
धड़कने फिर से थिरकने लगी हैं,
अपनी वही चाल.....
मगर मैं मुसाफिर की तरह,
उठकर चलने जाने वालों में से नही हूं,
मैंने तुम्हारी शीतलता को बसा लिया है,
अपने भीतर ही,
और मैं सदैव रहना चाहती हूं ,
तुम्हारे स्नेह की ठंडी छाया में,
बिना किसी स्वार्थ के ,
जो मुझे तुमसे मिला है,
तुम्हारा अस्तित्व क्षणिक नही है मेरे लिए,
अरे ...
तुम तो आधारशिला हो मेरी ,
मेरे एहसासों का सुंदर सा घरौंदा तुम हो,
तुम बिन कहां कुछ महसूस हो पाता है मुझे,
तुम बिन मैं कहां फिर मैं रह जाती हूं....!❤️
राजू मिश्रा
हमारी तुम्हारी क्या ही बराबरी
हम तो AK 47 के सामने मृत्यु निश्चित होने पर भी अपना धर्म हिन्दू ही बताते हैं
तुम तो दुकान चलाने के लिए नाम बदल लेते हो
सुरजा एस
दो लोग जबरदस्ती
व्हीलचेयर पर लदे हैं
दीदी हार के डर से और मुख्तार मार के डर से
jareen jj
अब भी कहोगे साथियों कि
इनबुक को फेसबुक जैसा होना चाहिए
शशि यादव
क्या आप लोग वक्फ बोर्ड को हटाने का समर्थन करते हैं