नर्मदाष्टक
.. ॥ नर्मदाष्टक ॥ मणिप्रवाल मूलपाठ॥ ..
॥नर्मदाष्टक ॥मणिप्रवाल हिंदी काव्यानुवाद॥
संजीव वर्मा "सलिल"
*
देवासुरा सुपावनी नमामि सिद्धिदायिनी,
त्रिपूरदैत्यभेदिनी विशाल तीर्थमेदिनी ।
शिवासनी शिवाकला किलोललोल चापला,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।१।।
सुर असुरों को पावन करतीं सिद्धिदायिनी,
त्रिपुर दैत्य को भेद विहँसतीं तीर्थमेदिनी।
शिवासनी शिवकला किलोलित चपल चंचला,
भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥१॥
*
विशाल पद्मलोचनी समस्त दोषमोचनी,
गजेंद्रचालगामिनी विदीप्त तेजदामिनी ।।
कृपाकरी सुखाकरी अपार पारसुंदरी,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।२।।
नवल कमल से नयन, पाप हर हर लेतीं तुम,
गज सी चाल, दीप्ति विद्युत सी, हरती भय तम।
रूप अनूप, अनिन्द्य, सुखद, नित कृपा करें माँ
भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥२॥
*
तपोनिधी तपस्विनी स्वयोगयुक्तमाचरी,
तपःकला तपोबला तपस्विनी शुभामला ।
सुरासनी सुखासनी कुताप पापमोचनी,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।३।।
सतत साधनारत तपस्विनी तपोनिधी तुम,
योगलीन तपकला शक्तियुत शुभ हर विधि तुम।
पाप ताप हर, सुख देते तट, बसें सर्वदा,
भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥३॥
*
कलौमलापहारिणी नमामि ब्रम्हचारिणी,
सुरेंद्र शेषजीवनी अनादि सिद्धिधकरिणी ।
सुहासिनी असंगिनी जरायुमृत्युभंजिनी,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।४।।
ब्रम्हचारिणी! कलियुग का मल ताप मिटातीं,
सिद्धिधारिणी! जग की सुख संपदा बढ़ातीं ।
मनहर हँसी काल का भय हर, आयु दे बढ़ा,
भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥४॥
*
मुनींद्र वृंद सेवितं स्वरूपवन्हि सन्निभं,
न तेज दाहकारकं समस्त तापहारकं ।
अनंत पुण्य पावनी, सदैव शंभु भावनी,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।५।।
अग्निरूप हे! सेवा करते ऋषि, मुनि, सज्जन,
तेज जलाता नहीं, ताप हर लेता मज्जन ।
शिव को अतिशय प्रिय हो पुण्यदायिनी मैया,
भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥५॥
*
षडंगयोग खेचरी विभूति चंद्रशेखरी,
निजात्म बोध रूपिणी, फणीन्द्रहारभूषिणी ।
जटाकिरीटमंडनी समस्त पाप खंडनी,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।६।।
षडंग योग, खेचर विभूति, शशि शेखर शोभित,
आत्मबोध, नागेंद्रमाल युत मातु विभूषित ।
जटामुकुट मण्डित देतीं तुम पाप सब मिटा,
भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥६
*
भवाब्धि कर्णधारके!, भजामि मातु तारिके!
सुखड्गभेदछेदके! दिगंतरालभेदके!
कनिष्टबुद्धिछेदिनी विशाल बुद्धिवर्धिनी,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।७।।
कर्णधार! दो तार, भजें हम माता तुमको,
दिग्दिगंत को भेद, अमित सुख दे दो हमको ।
बुद्धि संकुचित मिटा, विशाल बुद्धि दे दो माँ!,
भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥७॥
समष्टि अण्ड खण्डनी पताल सप्त भैदिनी,
चतुर्दिशा सुवासिनी, पवित्र पुण्यदायिनी ।
धरा मरा स्वधारिणी समस्त लोकतारिणी,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।८।।
भेदे हैं पाताल सात सब अण्ड खण्ड कर,
पुण्यदायिनी! चतुर्दिशा में ही सुगंधकर ।
सर्वलोक दो तार करो धारण वसुंधरा,
भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥८॥
नर्मदाष्टक
.. ॥ नर्मदाष्टक ॥ मणिप्रवाल मूलपाठ॥ ..
॥नर्मदाष्टक ॥मणिप्रवाल हिंदी काव्यानुवाद॥
संजीव वर्मा "सलिल"
*
देवासुरा सुपावनी नमामि सिद्धिदायिनी,
त्रिपूरदैत्यभेदिनी विशाल तीर्थमेदिनी ।
शिवासनी शिवाकला किलोललोल चापला,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।१।।
सुर असुरों को पावन करतीं सिद्धिदायिनी,
त्रिपुर दैत्य को भेद विहँसतीं तीर्थमेदिनी।
शिवासनी शिवकला किलोलित चपल चंचला,
भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥१॥
*
विशाल पद्मलोचनी समस्त दोषमोचनी,
गजेंद्रचालगामिनी विदीप्त तेजदामिनी ।।
कृपाकरी सुखाकरी अपार पारसुंदरी,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।२।।
नवल कमल से नयन, पाप हर हर लेतीं तुम,
गज सी चाल, दीप्ति विद्युत सी, हरती भय तम।
रूप अनूप, अनिन्द्य, सुखद, नित कृपा करें माँ
भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥२॥
*
तपोनिधी तपस्विनी स्वयोगयुक्तमाचरी,
तपःकला तपोबला तपस्विनी शुभामला ।
सुरासनी सुखासनी कुताप पापमोचनी,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।३।।
सतत साधनारत तपस्विनी तपोनिधी तुम,
योगलीन तपकला शक्तियुत शुभ हर विधि तुम।
पाप ताप हर, सुख देते तट, बसें सर्वदा,
भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥३॥
*
कलौमलापहारिणी नमामि ब्रम्हचारिणी,
सुरेंद्र शेषजीवनी अनादि सिद्धिधकरिणी ।
सुहासिनी असंगिनी जरायुमृत्युभंजिनी,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।४।।
ब्रम्हचारिणी! कलियुग का मल ताप मिटातीं,
सिद्धिधारिणी! जग की सुख संपदा बढ़ातीं ।
मनहर हँसी काल का भय हर, आयु दे बढ़ा,
भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥४॥
*
मुनींद्र वृंद सेवितं स्वरूपवन्हि सन्निभं,
न तेज दाहकारकं समस्त तापहारकं ।
अनंत पुण्य पावनी, सदैव शंभु भावनी,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।५।।
अग्निरूप हे! सेवा करते ऋषि, मुनि, सज्जन,
तेज जलाता नहीं, ताप हर लेता मज्जन ।
शिव को अतिशय प्रिय हो पुण्यदायिनी मैया,
भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥५॥
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षडंगयोग खेचरी विभूति चंद्रशेखरी,
निजात्म बोध रूपिणी, फणीन्द्रहारभूषिणी ।
जटाकिरीटमंडनी समस्त पाप खंडनी,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।६।।
षडंग योग, खेचर विभूति, शशि शेखर शोभित,
आत्मबोध, नागेंद्रमाल युत मातु विभूषित ।
जटामुकुट मण्डित देतीं तुम पाप सब मिटा,
भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥६
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भवाब्धि कर्णधारके!, भजामि मातु तारिके!
सुखड्गभेदछेदके! दिगंतरालभेदके!
कनिष्टबुद्धिछेदिनी विशाल बुद्धिवर्धिनी,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।७।।
कर्णधार! दो तार, भजें हम माता तुमको,
दिग्दिगंत को भेद, अमित सुख दे दो हमको ।
बुद्धि संकुचित मिटा, विशाल बुद्धि दे दो माँ!,
भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥७॥
समष्टि अण्ड खण्डनी पताल सप्त भैदिनी,
चतुर्दिशा सुवासिनी, पवित्र पुण्यदायिनी ।
धरा मरा स्वधारिणी समस्त लोकतारिणी,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।८।।
भेदे हैं पाताल सात सब अण्ड खण्ड कर,
पुण्यदायिनी! चतुर्दिशा में ही सुगंधकर ।
सर्वलोक दो तार करो धारण वसुंधरा,
भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥८॥