पिंकी जैन's Album: Wall Photos

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नीति कथा:- #बुरे का अंत बुरा#

किसी जंगल मे चार चोर रहते थे, चारों मिलकर चोरी करते और जो भी समान उनके हाथ लगता उसे आपस में बराबर बराबर बांट लेते थे। वैसे तो वे चारों एक दूसरे के प्रति प्रेम प्रकट करते किंतु मन ही मन एक दूसरे से ईर्ष्या करते और मौके की तलाश में रहते कि यदि किसी दिन मोटा माल मिल जाए तो अपने साथियों को मारकर सारा माल हड़प लें। चारों बहुत ही दुष्ट, स्वार्थी और मक्कार थे।
एक रात उन्होंने एक सेठ के घर में सेंध लगाई और घर के अंदर घुसकर सोना चांदी, हीरे जवाहरात, रुपया पैसा सब लूटकर ले गए लेकिन पुलिस से बचने के लिए दो दिन तक भूखे प्यासे जंगल में भटकते रहे। उधर पुलिस चोरों को पकड़ने के लिये शहर के चप्पे चप्पे पर उन्हें खोज रही थी। जंगल से निकलना चोरों के लिए खतरे से खाली नहीं था इसलिए वे जंगल में ही छुपे रहे।
धीरे धीरे चोरों के पास खाने पीने का सामान समाप्त हो गया और जब भूख बर्दाश्त करना असंभव हो गया तो उन्होंने शहर से खाना मंगवाने का निश्चय किया। दो चोर शहर चले गए ताकि स्थिति का पता लगाकर अपने साथियों के लिए भोजन भी ले आएं। शहर जाकर उन्होंने भर पेट खाना खाया, खूब शराब पी और योजना बनाई कि वे अपने साथियों को मारकर सारा माल खुद हड़प लेंगे! दोनों ने योजना को अंजाम देने के लिए खाने में जहर मिला दिया और जंगल की ओर लौटने लगे, मन में यही सोचकर कि अपने दोनों साथियों को मारकर सारा माल हड़पकर अमीर बन जाएंगे और सुख की जिंदगी जियेंगे।
उधर जंगल में उन दोनों चोरों ने भी शहर में खाना लाने गए अपने साथियों को मारने की योजना बना डाली। वे भी उन्हें मारकर सारा धन खुद हड़प लेना चाहते थे। जब दोनों चोर शहर से खाना लेकर आये तो जंगल में ठहरे हुए दोनों चोरों ने अपने साथियों पर हमला कर दिया और उन्हें मौत के घाट उतार दिया। अपने साथियों की हत्या करके दोनों चोर आराम से खाना खाने बैठ गए लेकिन खाने में पहले से ही जहर मिला होने के कारण वे दोनों भी तड़प तड़प कर मर गए। बुरे का अंत बुरा हुआ। प्रस्तुति: सुभाषचंद्र बजाज
ये प्रतिमा नागफणी पार्श्वनाथ, बिछीवाड़ा, डूंगरपुर,राजस्थान की है।