यह ग्रुप सिर्फ कानुनों के उपर बनाने का विचार आया जहा हम सभी कानुन के जानकार या
विधी प्रकोष्ठ के... moreयह ग्रुप सिर्फ कानुनों के उपर बनाने का विचार आया जहा हम सभी कानुन के जानकार या
विधी प्रकोष्ठ के बाकी बड़े भाई बहन और आदरणीय अपनी सलाह और अलग अलग कोर्ट के फैसले के उपर विचार विमर्श करें
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निश्चित ही देश के एक नया काम शुरू होगा जहां फ्री में सुझाव के साथ साथ उस सुझाव के नफे नुकसान पर भी विचार विमर्श किया जा सके।
रविंद्र रावत
#बरगद एक लगाइये, पीपल रोपें पाँच।
घर घर नीम लगाइये,यही पुरातन साँच।।
यही पुरातन साँच,- आज सब मान रहे हैं।
भाग जाय प्रदूषण सभी अब जान रहे हैं ।
विश्वताप मिट जाये होय हर जन मन गदगद।
धरती पर त्रिदेव हैं- नीम पीपल और बरगद।।
आप को लगेगा अजीब बकवास है , किन्तु यह सत्य है.. .
पिछले 68 सालों में पीपल, बरगद और नीम के पेडों को सरकारी स्तर पर लगाना बन्द किया गया है,
पीपल कार्बन डाई ऑक्साइड का 100% एबजॉर्बर है, बरगद 80% और नीम 75 %
इसके बदले लोगो ने विदेशी यूकेलिप्टस को लगाना शुरू कर दिया , जो जमीन को जल विहीन कर देता है,
आज हर जगह यूकेलिप्टस, गुलमोहर और अन्य सजावटी पेड़ो ने ले ली है,
अब जब वायुमण्डल में रिफ्रेशर ही नही रहेगा तो गर्मी तो बढ़ेगी ही,
और जब गर्मी बढ़ेगी तो जल भाप बनकर उड़ेगा ही,
हर 500 मीटर की दूरी पर एक पीपल का पेड़ लगायें,
तो आने वाले कुछ साल भर बाद प्रदूषण मुक्त हिन्दुस्तान होगा...
वैसे आपको एक और जानकारी दे दी जाए...
पीपल के पत्ते का फलक अधिक और डंठल पतला होता है
जिसकी वजह शांत मौसम में भी पत्ते हिलते रहते हैं और स्वच्छ ऑक्सीजन देते रहते हैं।
वैसे भी पीपल को वृक्षों का राजा कहते है।
इसकी वंदना में एक श्लोक देखिए-
मूलम् ब्रह्मा, त्वचा विष्णु, सखा शंकरमेवच।
पत्रे-पत्रेका सर्वदेवानाम, वृक्षराज नमस्तुते।
अब करने योग्य कार्य....
इन जीवनदायी पेड़ों को ज्यादा से ज्यादा लगाने के लिए समाज में जागरूकता बढ़ायें....
vstripathimba
(owner)
जिस भड़वे ने मुझे ब्लाक किया है उसे बंता दु मुझे सिर्फ 1घंटा लगेगा पुरे इनबुक सर्वर को हैक करने के लिए।
हर हर महादेव
मान्धाता प्रताप सिंह
एक मुस्लिम लेखिका द्वारा समस्त हिन्दू (woke) समाज पर ऐसा थप्पड़ मारा गया है कि गाल सहलाने के सिवा कोई जवाब नहीं सूझता।
मुस्लिम महिला द्वारा लिखा गया लेख :
"आपके साथ हुए दुराचार के दोषी आप स्वयं हैं, पता है क्यूं ?? मैं बताती हूं....
• आपकी विवाहित महिलाओं ने माथे पर पल्लू तो छोड़िये, साड़ी पहनना तक छोड़ दिया, पाश्चात्य देशों का पहनावा उनकी पहली पसंद बन गई है, और आपको इससे कोई आपत्ति नहीं। जबकि हमारे समाज में महिलाएं सभ्य और समाज में मान्य वस्त्र ही पहनती हैं।
• आपने घर से निकलने से पहले तिलक लगाना तो छोड़ा ही, आपकी महिलाओं ने भी आधुनिकता और फैशन के चक्कर में और फारवर्ड दिखने की होड़ में माथे पर बिंदी लगाना क्यों छोड़ दिया?
•हमारे यहां बच्चा जब चलना सीखता है तो बाप की उंगलियां पकड़ कर इबादत के लिए जाता है और जीवन भर इबादत को अपना फर्ज़ समझता है।
आप लोगों ने स्वयं ही मंदिरों की ओर देखना छोड़ दिया, जाते भी केवल तभी हो जब भगवान से कुछ मांगना हो अथवा किसी संकट से छुटकारा पाना हो।अब यदि आपके बच्चे ये सब नहीं जानते कि मंदिर में क्यों जाना है, वहाँ जाकर क्या करना है और ईश्वर की उपासना उनका कर्तव्य है....
तो क्या ये सब हमारा दोष है?
• आप के बच्चे कॉन्वेंट से पढ़ने के बाद पोयम सुनाते थे तो आपका सर ऊंचा होता है! होना तो यह चाहिये था कि वे बच्चे भगवद्गीता के चार श्लोक कंठस्थ कर सुनाते तो आपको गर्व होता!
हमारे घरों में किसी बाप का सिर तब शर्म से झुक जाता है जब उसका बच्चा रिश्तेदारों के सामने कोई दुआ नहीं सुना पाता!
•हमारे घरों में बच्चा बोलना सीखता है तो हम सिखाते हैं कि सलाम करना सीखो।
आप लोगों ने प्रणाम और नमस्कार को हैलो हाय से बदल दिया...
तो इसके दोषी क्या हम हैं?
•हमारे मजहब का लड़का कॉन्वेंट से आकर भी उर्दू अरबी सीख लेता है और हमारी धार्मिक पुस्तक पढ़ने बैठ जाता है!
और आपका बच्चा न रामायण पढ़ता है और ना ही गीता। उसे संस्कृत तो छोड़िये, शुद्ध हिंदी भी ठीक से नहीं आती...
क्या यह भी हमारी त्रुटि है ?
• आप लोग ही तो पीछा छुड़ाएं बैठे हैं अपनी जड़ों से! हम ने अपनी जड़ें ना तो कल छोड़ी थी और ना ही आज छोड़ने को राजी हैं!
•आप लोगों को तो स्वयं ही तिलक, जनेऊ, शिखा आदि से और आपकी महिलाओं को भी माथे पर बिंदी, हाथ में चूड़ी और गले में मंगलसूत्र-इन सब से लज्जा आने लगी, इन्हें धारण करना अनावश्यक लगने लगा और गर्व के साथ खुलकर अपनी पहचान प्रदर्शित करने में संकोच होने लग गया!
तथाकथित आधुनिकता के नाम पर आप लोगों ने स्वयं ही अपने रीति रिवाज, परंपराएं, संस्कार, भाषा, पहनावा सब कुछ पिछड़ापन समझकर त्याग दिया!
आज इतने वर्षों बाद आप लोगों की नींद खुली है तो आप अपने ही समाज के दूसरे लोगों को अपनी जड़ों से जुड़ने के लिये कहते फिर रहे हैं!
अपनी पहचान के संरक्षण हेतु जागृत रहने की भावना किसी भी सजीव समाज के लोगों के मन में स्वत:स्फूर्त होनी चाहिये, उसके लिये आपको अपने ही लोगों को कहना पड़ रहा है।
विचार कीजिये कि यह कितनी बड़ी विडंबना है! और क्या इस विडंबना के जिम्मेदार हम या हमारा मजहब है ?
आपकी समस्या यह है कि आप अपने समाज को तो जागा हुआ देखना चाहते हैं किंतु ऐसा चाहते समय आप स्वयं आगे बढ़कर उदाहरण प्रस्तुत करने वाला आचरण नहीं करते, जैसे बन गए हैं वैसे ही बने रहते हैं।
ठीक इसी प्रकार आपके समाज में अन्य सब लोग भी ऐसा ही आपके जैसा डबल स्टैंडर्ड वाला हाइपोक्रिटिकल व्यवहार करते हैं!
क्या यह भी हमारी त्रुटि है ??
दशकों से अपनी हिंदू पहचान को मिटा देने का कार्य आप स्वयं ही एक दूसरे से अधिक बढ़-चढ़ करते रहे, परंतु हम अपनी पहचान आज तक भी वैसे ही बनाए रखने में सफल रहे हैं। आपके स्थिति के जिम्मेदार आप स्वयं हैं ना कि हम मुसलमान।"
उनका ये लेख पढ़कर मैं तो निशब्द हो गई। जवाब देने के लिए कुछ था नहीं मेरे पास। अगर आपके पास उत्तर है, तो कमेंट में बताइएगा जरूर
नीरू हिंदू
माना कि आपको विदेशी चीजें बहुत पसंद है लेकिन स्वदेशी पर गर्व करना सीखो यह इनबुक स्वदेशी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है इसे यूज़ करना सफल बनाने में सहयोग करना हम सबका कर्तव्य बनता है ताकि आत्मनिर्भर भारत को बल मिल सके आगे आपकी मर्जी
स्वदेशी अपनाओ आत्मनिर्भर भारत बनाओ
Paras Sharma
सामान्यतः सभी धर्मों और पंथों में , मानव आचरण के दो पहलू सामने आते हैं , वे हैं अच्छाई और बुराई ...! इनके पक्ष में चलने वाले क्रमशः अच्छे और बुरे लोग माने जाते हैं। जो कुछ ३१ दिसम्बर की रात और १ जनवरी के प्रारंभ को लेकर यूरोप - अमेरिका और ईसाई समुदाय सहित अन्य लोग देख देखी करते हैं वह अच्छाई तो नहीं है !!! यथा शराब पीना, अश्लील नाचगाना , सामान्य मर्यादाओं को तिलांजली देना ! होटल , रेस्तरां और पब में जा कर मौज मजे के नाम पर जो कुछ होता है !! वह न तो सभ्यता का हिस्सा है और न ही उसे अच्छा होने का सर्टिफिकेट दिया जा सकता है। इसलिए सभ्यता अनुकूल यह नया के क्रियाकलापों को व्यवस्थित करने की प्रक्रिया में निर्मित सत्रारंभ है। इसकी तुलना कभी भी भारतीय नववर्ष से नहीं की जा सकती , क्योंकि वह ईश्वरीय है, सृष्टिजन्य है, नक्षत्रिय है इसी कारण सम्पूर्ण हिन्दू समाज में सभी धार्मिक आयोजन , कार्य शुभारंभ मुहूर्त, मानव जीवन से सम्बद्ध मांगलिक कार्यों को आज भी बड़ी निष्ठा से इन्ही आधार पर आयोजित किया जाता ।