संजीव जैन
गुजरात के वडोदरा में नाव पलटने से कई बच्चों के असामयिक निधन का समाचार अत्यंत दु:खद एवं पीड़ादायक है।
ईश्वर दिवंगत आत्माओं को अपने श्रीचरणों में स्थान प्रदान करे व परिजनों को यह दु:ख सहन करने की शक्ति दे।
ॐ शांति:!
Sanjay khambete
(owner)
श्री रामलला के विराजमान होने के 11वें दिन ही ज्ञानवापीमंदिर में पूजा आरम्भ कालचक्र पलट रहा है...
अनिल जैन
जो आदमी हार के डर से
अपनी पारम्परिक सीट छोड़कर भाग जाए
वो मुसीबत आने पर देश छोड़कर भी भाग सकता है
Priyadarshi Tiwari
*भीषण गर्मी पर बुंदेलखंड के कवि की सुंदर रचना*
⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐
*विकट दुफ़रिया है सन्नानी*
सूरज निकरो है खिसिया कें, विकट दुफ़रिया है सन्नानी।
ऊपर-नेंचें प्रान हो रये,लपटें करें खूब मनमानी।।
विकट दुफ़रिया है सन्नानी।
मौसम लयें आग के हंटर,जो मिल रव सो मार रओ है।
धूप तुनक के लाल हो गयी,पहिले भारी प्यार रओ है।
सूरज खों रंगदारी करबे,की आदत है भोत पुरानी।।
विकट दुफ़रिया है सन्नानी।
गरम हवा सब फेंक रये हैं,कूलर-पंखा फेल हो गये।
बाहर जाबे की दम नैयाँ,नजरबन्द,घर जेल हो गये।।
मूँड़ सें चुयें पसीना,अखल-बखल हो रय सब प्रानी।।
विकट दुफ़रिया है सन्नानी।
नदियाँ सबई दूबरी हो गयीं, ताल-तलैया सूख गये हैं।
जाने कहाँ गयी हरयाली,मरे मरे से रूख भये हैं।।
ढोर-बछेरू छाँव ढूंढ रय,पीबे तक कों नैयाँ पानी।।
विकट दुफ़रिया है सन्नानी।
पके कलींदे, मठा, चीमरी, सकला, सतुआ,पनो आम को।
गन्ना रस,अंगूर,संतरा,करें सामनो कठिन घाम को।।
कुल्फी और बरफ को गोला, खाके तबियत तनक जुड़ानी।।
सूरज निकरो है खिसिया कें, विकट दुफ़रिया है सन्नानी।
ऊपर -नेंचें प्रान हो रये, लपटें करतीं हैं मनमानी।।
*विकट दुफ़रिया है सन्नानी।*
आपका इनबुक
द्रौपदी मुर्मू जी होंगी अगली राष्ट्रपति!
उम्मीदवार
नारी शक्ति को नमन
Deoratna Goel
रवीना टंडन:-
कहने के लिए तो ये एक हिन्दू नारी हैं, परन्तु गटरवुड की वारांगना होने से इनमें हिंदुत्व का लेशमात्र भी अब शेष न था। मुस्लिम बॉयफ्रेंड जैसा कि यह एक कॉमन फैक्टर है कि, जिसका मित्र #म्लेच्छ हो, उसके आचरण सहज ही मलेच्छवत हो जाते हैं, उसी प्रकार इनका भी आचरण मलेच्छवत सहज ही देखा जा सकता था। इसमें कोई बुराई भी नहीं, जो गुह खायेगा, उसके आचरण की विशिष्टता कुक्कुर सम ही तो देखी जाएगी।
यही चरित्र इनका भी था। इफ़्तार रोजा से लेकर बकरीद तक हरेक मातम पर भाईजानों के पास रखैल की तरह बिछी रहने वाली
म्लेच्छों के विशिष्ट आइडियोलॉजी के पैटर्न का जब शिकार बनती हैं, तब कुछ लोग इनके प्रति सिम्पैथी दर्शा रहे। और कुछ लोग खुशी अभिव्यक्त कर रहे कि, देखो तुम्हरे यार अरबाज सहित खान तिकड़ी ही नहीं किसी गटरवुड द्वारा कोई सपोर्ट का एक शब्द भी न सुना गया।
परन्तु मुझे हर बार की तरह ही इस बार भी इस बात पर आश्चर्य हो रहा कि,
हमारे विचारक क्या सत्य ही अफगानी अफीम खा के सोने में व्यस्त हैं क्या?
जो ऐसे न जाने कितने मौकों को अपने लक्ष्यार्थ प्रयोग करने के बजाय घटिया ट्रोलर बनकर सारी ऊर्जा को नष्ट कर दे रहे?
यह एक सुनहरा मौका था, जब हमारे विचारक "म्लेच्छों की विशिष्ट आइडियोलॉजी को सरेआम कर सकते थे"
परन्तु इसके उलट ही उनके वक्तव्य सत्य ही आश्चर्य में डाल रहे।
"यहाँ समझना यह होगा कि, रवीना टाइप वारांगनाएँ हिन्दू लड़कियों की आईडल बनकर म्लेच्छों के प्रति एक सॉफ्ट कॉर्नर का विकास करती हैं, जिसके माध्यम से हिन्दू लड़कियाँ भाईजानों के छद्म में आसानी से फंस जाती हैं। अब तो सामने से ही 60% हिन्दू लड़कियों का प्रपोजल भाईजानों को मिलता सहज देखा जा रहा।
ऐसी स्थिति में,
म्लेच्छों द्वारा रवीना टाइप रोल मॉडल को शिकार बनाने का दो कारण बनता है,
प्रथम कारण- साफ्ट कॉर्नर रखने वाली लड़कियों के भीतर एक मनोवैज्ञानिक भय का संचार किया जा सके कि, अगर उनके मज़हब के प्रति लगातार आस्था को बलवती न करती गयी तो रवीना की तरह ही अगला नम्बर उनका हो सकता है।
वही दूसरा- म्लेच्छ बुद्धिजीवियों और साथियों का मौन रहना, उनके ईमान की न्यायप्रियता को दर्शाता है। कि देखो, हमारी कौम कितनी न्यायप्रिय है कि, अपने ही संगी साथी के गलती पर किस प्रकार से मौन रहना स्वीकार करती है, परन्तु गलत का कभी सपोर्ट नहीं करती।
और इन दोनों बातों का प्रभाव जिस कॉमन फैक्ट पर पड़ता है वह यह है कि,
कौम वह कालीघाटी की गुफा है जहाँ आने के मार्ग हजारों हैं परन्तु जाने का एकमात्र मार्ग अर्थात #मृत्यु।
इसलिए एक बार जो हिन्दू लड़की कौम के प्रति साफ्ट कॉर्नर रखी, वह भविष्य में उसी दलदल में फँसती चली ही जाने वाली है। वह अपनी मृत्यु के पश्चात ही बाहर आ सकती है, अन्य कोई मार्ग नहीं।
विद्वजनों!
घटनाओं का विश्लेषण सांस्कृतिक परिपटल पर करना आरम्भ कर दें, क्योंकि संस्कृति से ही आपका अस्तित्व है, जब संस्कृति ही न रहेगी, तो आपके अस्तित्व का क्या आशयः होगा?
जिंदा तो रहेंगे, परन्तु म्लेच्छ बनकर।
कु नमिता आलोक भारद्वाज जी ।.
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