प्रदीप हिन्दू योगी सेवक's Album: Wall Photos

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#आखिर_हमारी_लड़ाई_लडता_कौन_है

ये जो तस्वीर दिखाई दे रही है हिंदू समाज के कई लोग इस तस्वीर को पहचानते भी नहीं होंगे। कौन है यह जानते भी नहीं होंगे और अगर तस्वीर को जानते भी होंगे तो उनका आदि और अंत क्या है इस संबंध में नही जानते होंगे ।

यह तस्वीर है आदि शंकराचार्य जी की।
लेकिन इस हिंदू समाज के अधिसंख्य लोगों को उनकी जन्म जयंती के बारे में जानकारी नहीं होगी शंकराचार्य जी ने इस देश की राष्ट्रीयता को बचाने के लिए जो योगदान दिया और उसके लिए हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए जो कार्य किया उन्हीं के कारण से आज हम और आप हिंदू होने मैं गर्व महसूस करते हैं ।

उन्होंने कहा कि बिना सांस्कृतिक एकता के, बिना विचारों के एकछत्र साम्राज्य की राजनीतिक एकता टिकाऊ नहीं होती,राजनैतिक एकता के मूल में सांस्कृतिक एकता होनी चाहिए,सांस्कृतिक एकता हुई तो फिर राजनीतिक एकता के लिए प्रयत्न करने वाले वीर जन्म ले सकते हैं ।

ऐसे विचार के साथ शंकराचार्य जी नेहिंदू समाज को गौरव दिलाने के लिए और बौद्धों के दुराचार से इस भारत राष्ट्र को बचाने के लिए अपना सर्वस्व बलिदान दिया

शंकराचार्य ने सनातन धर्म को व्यवस्थित करने का भरपूर प्रयास किया। उन्होंने हिंदुओं की सभी जातियों को इकट्ठा करके 'दसनामी संप्रदाय' बनाया और साधु समाज की अनादिकाल से चली आ रही धारा को पुनर्जीवित कर चार धाम की चार पीठ का गठन किया जिस पर चार शंकराचार्यों की परम्परा की शुरुआत हुई।

शंकराचार्य का जन्म केरल के मालाबार क्षेत्र के कालड़ी नामक स्थान पर नम्बूद्री ब्राह्मण के यहां हुआ। मात्र ३२ वर्ष की उम्र में वे निर्वाण प्राप्त कर ब्रह्मलोक चले गए।

इस छोटी-सी उम्र में ही उन्होंने भारतभर का भ्रमण कर हिंदू समाज को एक सूत्र में पिरोने के लिए चार मठों ही स्थापना की। ४ मठ के शंकराचार्य ही हिंदुओं के केंद्रिय आचार्य माने जाते हैं, इन्हीं के अधिन अन्य कई मठ हैं।

चार प्रमुख मठ निम्न हैं:-

१. वेदान्त ज्ञानमठ, श्रृंगेरी (दक्षिण भारत)।
२. गोवर्धन मठ, जगन्नाथपुरी (पूर्वी भारत)
३. शारदा (कालिका) मठ, द्वारका (पश्चिम भारत)
४. ज्योतिर्पीठ, बद्रिकाश्रम (उत्तर भारत)

शंकराचार्य का दर्शन : शंकराचार्य के दर्शन को अद्वैत वेदांत का दर्शन कहा जाता है।
शकराचार्य का स्थान विश्व के महान दार्शनिकों में सर्वोच्च माना जाता है। उन्होंने ही इस ब्रह्म वाक्य को प्रचारित किया था कि 'ब्रह्म ही सत्य है और जगत माया।' आत्मा की गति मोक्ष में है।

अद्वैत वेदांत अर्थात उपनिषदों के ही प्रमुख सूत्रों के आधार पर स्वयं भगवान बुद्ध ने उपदेश दिए थे। उन्हीं का विस्तार आगे चलकर माध्यमिका एवं विज्ञानवाद में हुआ। इस औपनिषद अद्वैत दर्शन को गौडपादाचार्य ने अपने तरीके से व्यवस्थित रूप दिया जिसका विस्तार शंकराचार्य ने किया।

वेद और वेदों के अंतिम भाग अर्थात वेदांत या उपनिषद में वह सभी कुछ है जिससे दुनिया के तमाम तरह का धर्म, विज्ञान और दर्शन निकलता है।

शंकराचार्य के चार शिष्य : १. पद्मपाद (सनन्दन), २. हस्तामलक ३. मंडन मिश्र ४. तोटक (तोटकाचार्य)।

ग्रंथ : शंकराचार्य ने सुप्रसिद्ध ब्रह्मसूत्र भाष्य के अतिरिक्त ग्यारह उपनिषदों पर तथा गीता पर भाष्यों की रचनाएं की एवं अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथों स्तोत्र-साहित्य का निर्माण कर वैदिक धर्म एवं दर्शन को पुन: प्रतिष्ठित करने के लिए अनेक श्रमण, बौद्ध तथा हिंदू विद्वानों से शास्त्रार्थ कर उन्हें पराजित किया।

दसनामी सम्प्रदाय : शंकराचार्य से सन्यासियों के दसनामी सम्प्रदाय का प्रचलन हुआ। इनके चार प्रमुख शिष्य थे और उन चारों के कुल मिलाकर दस शिष्य हए। इन दसों के नाम से सन्यासियों की दस पद्धतियां विकसित हुई। शंकराचार्य ने चार मठ स्थापित किए थे।

दसनामी सम्प्रदाय के साधु प्रायः भगवा वस्त्र पहनते, एक भुजवाली लाठी रखते और गले में चौवन रुद्राक्षों की माला पहनते। कठिन योग साधना और धर्मप्रचार में ही उनका सारा जीवन बितता है।

यह दस संप्रदाय निम्न हैं : १.गिरि, २.पर्वत और ३.सागर। इनके ऋषि हैं भ्रगु। ४.पुरी, ५.भारती और ६.सरस्वती। इनके ऋषि हैं शांडिल्य। ७.वन और ८.अरण्य के ऋषि हैं काश्यप। ९.तीर्थ और १०. आश्रम के ऋषि अवगत हैं।


लेकिन समाज के लिए काम करने वाले समाज के लिए लड़ने वाले और समाज के लिए सर्वस्व समर्पित करने वाले लोगों पर जब संकट आता है तो हम उनको उस लड़ाई में अकेला छोड़ जाते हैं उनके बारे में जानना भी नहीं चाहते उनके बारे में सोचना भी नहीं चाहते ।
आज आदि शंकराचार्य जी की जयंती है सोचा आपको याद दिला दू
शंकराचार्य जी का जीवन चरित्र बहुत बड़ा है किसी एक पोस्ट या कई पोस्ट में भी लिखना संभव नहीं होगा ।
शंकराचार्य जी जीवन चरित्र पर कुछ लिख कर उनको श्रद्धा सुमन अर्पित कर सकूं ।