प्यार .... मन का एक ऐसा अनोखा भाव है जो वही समझता है जिसे किसीसे प्यार होता है। प्यार में ऊँच-नीच, जाति-बिरादरी, भाषा-प्रांत के मायने खत्म हो जाते हैं। सिर्फ दिल से दिल का बंधन प्यार को इतने चरमोत्कर्ष पर पहुँचा देता है जहाँ सारे रिश्ते-नाते तोड़कर, अपने प्यार के लिये सब कुछ कुर्बान कर देने का तीव्र भाव जागृत हो जाता है, भले ही वो जान ही क्यों न हो।
#एक_दूजे_के_लिए (1981)
प्यार के इस भाव की तीव्रता को के. बालाचंदर द्वारा निर्देशित 5 जून 1981 प्रदर्शित फिल्म "एक दूजे के लिये" में बहुत गहराई से देखा जा सकता है। इसमे दक्षिण भारत के उस दौर के सुपर स्टार कमल हासन और रति अग्निहोत्री ने अभिनय किया था। यह इन दोनों की ही पहली फ़िल्म थी। यह बालाचंदर की ही तेलुगु फिल्म 'मारो चरित्र' (1978) की रीमेक थी। "एक दूजे के लिये" फिल्म को 1981 में बॉक्स ऑफिस पर 'ब्लॉकबस्टर' करार दिया गया था।
फिल्म एक तमिल युवक वासु और उत्तर भारतीय युवती सपना के बीच के प्यार पर आधारित है, जो गोवा में पड़ोसी हैं। वे पूरी तरह से अलग पृष्ठभूमि से आते हैं और एक दूसरे की भाषा न बोल सकते हैं न समझ सकते हैं। जब वासु और सपना अपने प्यार को स्वीकार करते हैं, तो उनके घरों में भाषा और प्रांत की विभिन्नता की वजह से स्वीकार नही किया जाता। वे अपने प्यार की अप्रत्याशित और कठिन परीक्षा का भी सामना करते हैं।
फिल्म की शुरुआत गोवा के खूबसूरत समुद्र तट के पास एक पुरानी, खंडहर हो चुकी इमारत से होती है। इमारत की जीर्ण शीर्ण दीवारों पर दो नाम नज़र आते हैं ....'वासु और सपना'
वासु एक लापरवाह, मस्तमौला युवक है जो तमिल परिवार से है। ऑफिस में बॉस से कहासुनी होने पर नौकरी छोड़कर अपने घर गोवा आ जाता है। पड़ौसी उत्तर भारतीय हैं जिनके घर मे हिन्दी बोली जाती है, इनकी एक आधुनिक पढ़ीलिखी बेटी है.. सपना। दोनो परिवार एक दूसरे की तरफ देखते भी नही हैं।
एक दिन सपना सूनी सड़क पर एक लड़के द्वारा पीछा किये जाने पर वहाँ से गुजरते वासु से इस तरह बातें करती है कि वो आवारा लड़का वहाँ से चला जाता है। वासु को सपना की भाषा समझ नही आती पर अब सपना से दोस्ती करना चाहता है। धीरे-धीरे बिना बोले ही उनमे प्यार होने लगता है।
अपने परिवारों के बीच झगड़े के बावजूद, वासु और सपना एक दूसरे के प्यार में पागल हो जाते हैं। अंततः दोनों के परिवार मिलते हैं और वासु और सपना स्पष्ट रूप से एक दूसरे के लिए अपने प्यार की पुष्टि करते हैं। उनके परिवार उन्हें एक शर्त पर शादी करने के लिए सहमत होते हैं - कि वे एक साल के लिए एक दूसरे से किसी भी तरह के संपर्क के बिना अलग हो जाएं। इस तरह की अवधि के बाद, अगर वे अभी भी एक साथ रहना चाहते हैं, तो वे शादी कर सकते हैं। वर्ष के दौरान उन दोनों के बीच कोई संपर्क नहीं होना चाहिए। वासु और सपना बहुत ही अनिच्छापूर्वक इस बात से सहमत होते हैं । उन्हें एक ही बात अच्छी लगती है कि वे एक साल बाद शादी कर सकते हैं।
इस एक साल की अवधि में वो कैसी वेदनाएं झेलते हैं, कितने ही कष्ट उठाते हैं पर 'एक दूजे के लिये' तड़पते हुए भी मिलते नही हैं, न ही कोई सम्पर्क रखते हैं। फ़िल्म के इस भाग में दोनों का समर्पण, त्याग और एक दूजे के लिये प्यार देखते ही बनता है।
उनके खिलाफ बाधाओं के बावजूद, क्या दो प्रेमी कभी एकजुट होंगे ? क्या वे मिल पाते हैं यही अंत फ़िल्म की जान है जो दर्शकों को झिंझोड़ देता है।
प्रसाद प्रोडक्शन और एल. वी. प्रसाद की इस फ़िल्म के लेखक और निर्देशक के.बालाचंदर की इस फ़िल्म के गीतकार आनंद बक्षी और संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल थे। इस फ़िल्म का संगीत सुपर हिट था और इसके हर गीत ने धूम मचाई थी।
1. "हम तुम दोनों जब मिल जाएंगे" लता मंगेश्कर, एसपी बालसुब्रमण्यम
2. "सोलह बरस की बाली उमर"
लता मंगेश्कर, अनूप जलोटा
3. "मेरे जीवन साथी प्यार किये जा" एसपी बालसुब्रमण्यम, अनुराधा पौडवाल
4. "तेरे मेरे बीच में कैसा है ये बंधन अनजाना"
लता मंगेश्कर, एसपी बालसुब्रमण्यम
6. "हम बने तुम बने एक दूजे के लिये"
लता मंगेश्कर, एसपी बालसुब्रमण्यम
सर्वश्रेष्ठ गीतकार - "सोलह बरस की बाली उमर" गीत के लिए आनंद बक्षी और बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर - "तेरे मेरे बीच" गाने के लिए एसपी बालासुब्रमण्यम का फ़िल्म फेयर पुरस्कार मिला था।
"सोलह बरस की बाली उमर को सलाम..." गीत उस दौर में बिनाका गीत माला का सरताज गीत बना था।
इस गोल्डन जुबिली हिट फिल्म को दर्शकों ने बार बार देखा और आज भी यह फ़िल्म प्यार की इंटेंसिटी को दर्शाती है और मुझे बहुत पसंद है। कम से कम पांच बार तो मैं ही इस फ़िल्म को देख चुका हूं।