लक्ष्य की पहचान पहला कदम है और लक्ष्य की हृदय से स्वीकार्यता दूसरा कदम।
जब एक बार लक्ष्य साफ हो जाये तो उसके बाद सारा ध्यान लक्ष्य के पोषण में लग जाना चाहिए।
लक्ष्य का पोषण कैसे हो? बार बार लक्ष्य का चिंतन और लक्ष्य प्राप्ति की प्रक्रिया के बारे में चिंतन, मंथन करना चाहिए।
लक्ष्य प्राप्ति की प्रक्रिया की ओर धीरे धीरे कदम बढ़ाते जाना चाहिए। मध्य मध्य में लक्ष्य की स्वीकार्यता के बारे में सोचना चाहिये, इससे लक्ष्य के विषय में आपकी प्राथमिकता दृढ़ होती जाएगी।
अक्सर हम संकल्पपूर्वक लक्ष्य तय कर लेते हैं लेकिन जैसे जैसे समय बीतता है लक्ष्य भी बासी होता जाता है, लक्ष्य पूर्ति की प्रक्रिया भी ढीली पड़ती जाती है।
जितना महत्त्वपूर्ण है लक्ष्य का निर्धारण उससे भी महत्त्वपूर्ण है लक्ष्य का पोषण करना।
लक्ष्य के पोषण के लिए आवश्यक है लक्ष्य के प्रति सतत आदर, सम्मान, सतत दृढ़ निश्चय। ये तत्त्व बार बार हमारे चिंतन में होने चाहिए।
अणुव्रतों के अभ्यास से भी लक्ष्य को भेदने में सहायता मिलती है। वस्तुतः अणुव्रत ही हमें सिखाते हैं कि हम लक्ष्यों को कैसे प्राप्त करें।
बात वहीं आ जाती है कि संकल्प पूर्ति कैसे सिद्ध हो!
संकल्प पूर्ति की एक निश्चित प्रक्रिया
1. लक्ष्य का निर्धारण।
2. लक्ष्य की प्रक्रिया पर कार्य करना प्रांरम्भ कर देना।
3. लक्ष्य का सतत पोषण
4. लक्ष्य की प्राणपन से स्वीकार्यता