जो ये ब्राह्मणों को कृष्ण के मंदिरों से मार भगा कर उन पर अपना कब्जा करने की बात कर रहे हैं, क्या इनको पता नहीं कि स्वयं श्रीकृष्ण ब्राह्मणों का कितना आदर करते थे । श्रीकृष्ण और सुदामा ब्राह्मण की कहानी तो जग प्रसिद्ध है ।
श्रीकृष्ण ने सुदामा को दो लोक का एश्वर्य भेंट किया था और इधर के लोग हैं जो जातिवाद की निकृष्ट मानसिकता से ग्रसित होने के साथ राक्षसी प्रवत्ति के भी हैं, जो कृष्ण मंदिरों पर कब्ज़ा पूजा-अर्चना के लिए नहीं बल्कि उन मंदिरों की संपदा लूटने के लिए करना चाहते हैं ।
असलियत में ऐसी निम्न मानसिकता के ये लोग श्रीकृष्ण के अनुयायी ही नहीं हैं और न ऐसी दूषित मानसिकता वाले यादव ही श्रीकृष्ण के वंशज । ये लोग तो राक्षस कंस के अनुयायी और वंशज हैं जो शुरू से ही श्रीकृष्ण की शिक्षाओं का विरोध करते आए हैं ।
इन्हीं कंस के अनुयायियों और उसके वंशजों के पुरखों ने स्वयं श्रीकृष्ण के जीवन काल में ही उन्हें विपत्ति में डाल कर द्वारका का सर्वनाश कर दिया था ।
हुआ यह था कि जब श्रीकृष्ण मथुरा में राज कर रहे थे तो ये लोग उनकी बात नहीं मानते थे । मदिरापान करना, जुआ खेलना, लड़ाई-झगड़ा करना, लूट करना, आम जनता को तंग करना इनका रोज का काम था । (ये भी क्या करें, कंस के अनुयायी और वंशज होने के कारण यह इनके खून में ही है, और आज भी है । इसलिए जब भी सत्ता में आते हैं तो यही करते हैं । ब्राह्मणों का विरोध और मंदिरों की संपदा लूटने का यह विचार भी इनके इसी DNA की वजह से है ।)
श्रीकृष्ण इन्हें समझाते थे, दण्डित भी करते थे परन्तु सत्ता के मद में चूर ये लोग उनकी कोई बात नहीं मानते थे । इसलिए श्रीकृष्ण मथुरा छोड़ कर द्वारका चले गए ।
मगर उनके पीछे पीछे ये लोग भी द्वारका पहुंच गए । वहाँ भी इनके उत्पात जारी रहे । श्रीकृष्ण के समझाने का इन पर कोई असर नहीं होता था ।
फिर एक दिन दुर्वासा ऋषि द्वारका आए । इन राक्षसी प्रवत्ति के लोगों ने ब्राह्मण दुर्वासा का मजाक उड़ाने के लिए एक यादव को स्त्री के कपड़े पहना कर उसके पेट पर लोहे का मूसल लगा कर गर्भवती स्त्री की तरह दुर्वासा के सामने ला कर उनका अपमान करते हुए कहा कि बड़े ज्ञानी बने फिरते हो, अगर असल में ज्ञानी हो तो बताओ कि इसके क्या पैदा होगा ?
दुर्वासा जी ने अपनी दिव्य दृष्टि से सब जान लिया और श्राप देते हुए बोले कि इसके जो पैदा होगा वह तुम्हारे कुल का नाश करेगा । ऐसा कह कर दुर्वासा चले गए ।
ये लोग भयभीत होकर श्रीकृष्ण के पास गए और पूरी बात बताई । श्रीकृष्ण ने कहा कि मैं पहले से ही समझाता रहा हूँ कि सभ्य मानव की तरह रहो, गुरुजनों, ब्राह्मणों और ऋषियों का सम्मान करो पर तुम लोग मानते ही नहीं हो । इसी वजह से आज हमारे ऊपर हमारे कुल के नाश होने का संकट आ गया है ।
फिर उन्होंने कहा कि एक उपाय है, आप लोग समुद्र के किनारे जा कर इस मूसल को पत्थर की शिला पर घिस कर समुद्र के पानी में बहा दो ।
ये लोग समुद्र के किनारे चले गए और मूसल को घिस कर समुद्र में बहाने लगे । देर लग रही थी मगर ठंडी हवा चल रही थी, मौसम सुहावना था । तभी कोई मदिरा के बहुत सारे पात्र ले आया और फिर इन लोगों ने जम कर पी ! हंसी-मजाक, धक्का-मुक्की, धौल-धप्पड़, नाच-गाना होने लगा ।
इसी बीच मूसल भिनपूरी तरह घिस गया था बस आखिरी का छोटा सा टुकड़ा रह गया था कि उसको घिसने वाले यादव ने मज़ाक-मज़ाक में वह टुकड़ा वहीं खड़े एक दूसरे यादव को मार दिया । बस फिर क्या था ! दो गुट बन गए और आपस में लड़ने लगे और इस लड़ाई में सारे यादव और दूसरी जातियों के कंस के अनुयायी आपस में लड़ कर मर गए । इस तरह ऋषि दुर्वासा का श्राप सच हो गया ।
मगर कहानी यहीं खत्म नहीं हुई । मूसल का जो टुकड़ा बचा था वह एक निषाद के हाथ लग गया और उसने उससे तीर का नुकीला फल बना कर तीर पर लगा लिया ।
कुल के विनाश से दुखी श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बुला कर विधवा हुई गोपियों को उनके संरक्षण में मथुरा के लिए रवाना कर दिया और स्वयं दुखी होकर जंगल में जाकर एक वट वृक्ष के नीचे लेट गए । उसी समय वही बहेलिया जिसने मूसल के बचे हुए टुकड़े को अपने तीर पर लगा लिया था, जंगल में शिकार करने पहुंचा । भगवान श्रीकृष्ण के तलवे में एक मणि थी जो अंधेरे में चमक रही थी, उस बहेलिए ने उसे नागमणि समझा और उस पर निशाना लगा कर वही तीर चला दिया ।
उस मणि में भगवान श्रीकृष्ण के प्राण बसे थे, तीर लगते ही उन्होंने अवतार के लिए धरी मानव देह त्याग दी और वैकुंठ लोक चले गए । इस तरह यादवों के कुल का नाश हो गया ।
उधर अर्जुन जब गोपियों को जंगल से ले जा रहे थे, तब भीलों ने हमला कर गोपियों को लूट लिया । अर्जुन के धनुष बाण कुछ काम नहीं आये । श्रीकृष्ण के बल पर महाभारत जीती थी, वे ही नहीं रहे तो अर्जुन का रणकौशल भी जाता रहा ।
तभी तो कहा है:
मनुज बड़ो नहीं होत है,
समय होत बलवान ।
भीलन लूटीं गोपियाँ,
वही अर्जुन वही बान ।
इस तरह इन कंस के वंशजों और उसके अनुयायियों ने श्रीकृष्ण के जीवन काल में ही यादव वंश का सर्वनाश कर दिया ।
भीलों से गोपियों की जो सन्तानें हुईं वे कहाँ गईं, किन प्रदेशों में आज रह रही हैं, यह शोध का विषय है ।
वैसे इस लेख को पढ़ कर आपको कुछ तो आईडिया हो गया होगा कि आज अपने आपको यादव कहने वाले और दूसरी कुशवाहा जैसी जातियों के लोग क्यों इतना ब्राह्मणों का विरोध करते हैं, क्यों विधर्मियों के साथ गठबंधन बनाते हैं ।
ये लोग अपने पूर्वज कंस के पद चिन्हों पर चल रहे हैं, जैसे वह ब्राह्मण विरोधी था और पूतना, बकासुर जैसे भयानक राक्षसों का घनिष्ट मित्र था, वैसे ही ये लोग भी ब्राह्मण विरोधी और विधर्मियों के मित्र हैं ।
श्रीकृष्ण के मंदिरों से ब्राह्मणों को मार भगा कर उन मंदिरों पर कब्ज़ा कर उनकी संपदा को लूटना ऐसे ही कृष्ण के शत्रु लोग सोच सकते हैं ।