एकदम सही फैसला है । एस-एसटी एक्ट तभी लगाना जायज है जब आरोपी यह जानता हो कि पीड़ित एससी-एसटी वर्ग का है और वह घटना जातीय विद्वेष के कारण की गई हो ।
मान लीजिए रेल में अनजान यात्रियों के बीच सीट को लेकर झगड़ा होता है और मारपीट में एक यात्री मर जाता है । इस मामले में यदि मरने वाला यात्री अनुसूचित जाति का हो तो इस केस में हत्या के साथ साथ एससी-एसटी एक्ट लगाना गलत है ।
अखबारी दरिंदे जो इस तरह की घटना की खबर को चटपटा बनाने के लिए उसे दलितों पर अत्याचार की खबर बना कर पेश करते हैं, उन दरिंदों को अपनी नीच हरकत करने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि क्या आरोपी यह जानता था कि पीड़ित अनुसूचित वर्ग का है और वह अपराध उसने जाति विद्वेष के कारण किया था ।