एक अंग्रेज पत्रकार ने ओशो से प्रश्न किया था आप सन्यासी हैं तब आप भगवा वस्त्र क्यों नहीं पहनते ?
तब ओशो ने बहुत साफगोई से कहा था --
भगवा वस्त्र पहनने से ही कोई सन्यासी नहीं हो जाता भगवा वस्त्र पहनने के बाद उस भगवा वस्त्र की क्या अहमियत होती है उसकी क्या परंपरा होती है उसकी क्या महिमा होती है?
मैं वह नहीं निभा सकता और मैं नहीं चाहता कि मैं भगवा वस्त्र को अपमानित करूं ।
हालांकि मैं ओशो को नहीं मानता लेकिन मुझे उनकी साफगोई पसंद है कम से कम उसने दो चेहरे लगा कर हिंदुओं को बरगलाया तो नहीं