एक बार की बात है, तुलसीदास जी नंददास से मिलने बृंदावन पहुंचे। नंददास उन्हें भगवान कृष्ण के मंदिर में ले गए। तुलसीदास जी अपने आराध्य प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त थे। तुलसीदास जी जानते थे राम ही कृष्ण है और कृष्ण ही राम है। लेकिन तुलसीदास जी भगवान के राम रूप पर मोहित थे।
तुलसीदास जी कहते है...
कहा कहौं छवि आज की, भले बने हो नाथ ।
तुलसी मस्तक तब नवै, जब धनुष बान लो हाथ ।।
एक तुलसीदास जी थे जिन्होंने बिना शस्त्र भगवान राम (कृष्ण जी) की मूर्ति के आगे शीष नहीं नवाया और कहा की ये मस्तक तभी नवेगा जब मुझे आप हाथ में धनुष बान लिए दर्शन देंगे!
और आज आजाद भारत के कालखंड में एक पाखंडी बाबा है जो व्यासपीठ पर बैठकर भगवान राम की जगह "अली मौला" का गुणगान करते है! बापू खुद को भगवान समझ बैठे है और शास्त्रों में संशोधन करना चाहते है! इन्होंने शमशान में विवाह करवा के विवाह संस्कार की मर्यादा भी भंग की है। इतना ही नहीं इन्होंने अली मौला के आगे नतमस्तक होकर "मजहब ए मोहब्बत" नाम की पुस्तक भी लिखी है। लेकिन ये यहीं पर नहीं रुके इन्होंने भगवान राम लक्ष्मण माता सीता और हनुमान जी की बिना तीर धनुष और गदा (शस्त्रों) की प्रतिमा तक बनवाई है। ( छायाचित्र कमेंट में है )
लाखो हिन्दू इनके फॉलोअर है! ये क्या हिन्दुओं को क्या शिक्षा दे रहे है? व्यासपीठ पर बैठकर एकतरफा सेकुलरिज्म का पाखंड कर रहे है! हिन्दुओं की आस्था को विकृत कर रहे है! हिन्दुओं को पथ भ्रमित कर रहे है जिसके कारण विधर्मी मिशनरी धर्मांतरण के उद्देश्य में सफल हो रहे है!