छत्तीसगढ़ में "लाख की खेती" को मिलेगा कृषि का दर्जा :-
- छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लाख की खेती को कृषि का दर्जा देने देने वाले प्रस्ताव को अपनी सहमति दे दी है।
- छत्तीसगढ़ में लाख की खेती की अपार संभावनाएं है
- विस्तार से :-
1. क्या होता है "लाख" या "लाक" :-
- लाख एक बहुपयोगी राल है, जो एक सूक्ष्म कीट का दैहिक स्राव है .
- लाख "केरिना लाका" नामक कीट से उत्पादित होने वाली प्राकृतिक राल है।
- लाख के कीड़े "पलास", "कुसुम" तथा "बेर" के पेड़ों पर पाले जाते हैं, जिनकी शाखाओं से रस चूसकर भोजन प्राप्त करते हैं। जिसमे से पलास के पेड़ वाली लाख को रंगीन लाख और कुसुम के पेड़ से निकलने वाली लाख को कुसुमी लाख कहते है।
- वैज्ञानिक भाषा में लाख को 'लेसिफर लाखा' कहा जाता है।
- अपनी सुरक्षा के लिए राल का स्राव कर कवच बना लेते हैं , यही लाख होता है, जिसे काटी गई टहनियों से खुरच कर निकाला जाता है।
- लाख का इस्तेमाल मुख्यत: श्रृंगार की वस्तुओं, सील, चपड़ा, विद्युत कुचालक, वार्निश, फलों व दवा पर कोटिंग, पॉलिश व सजावट की वस्तुएं तैयार करने में किया जाता है। इस तरह यह बहुउपयोगी है, जिससे किसानों को अच्छी कीमत मिलती है।
- एक पेड़ से सालाना 500 रुपए का लाख मिलता है .वर्ष 2012-13 में इसका रेट 500 रुपए किलो तक पहुंच गया था।
2. कैसे की जाती है लाख की खेती :-
- दरअसल पेड़ की टहनियों पे लाख के कीड़े लगे होते है , इन टहनियों को एक पेड़ से काट के अलग अलग कुसुम ,पलाश इत्यादि के पेड़ों से बांध देते है और फिर यह कीड़े बढ़ते है और राल या रस का स्रावन करते है ।
3. भारत मे लाख उत्पादन :-
- भारत मे सबसे ज्यादा लाख की खेती झारखंड में होती है लगभग देश का 60% ,इसके बादमे छत्तीसगढ़ में सालाना 4000 मैट्रिक टन उत्पादन होता है ,पश्चिम बंगाल इत्यादी में भी होती है ।
- यह खेती आदिवासियों द्वारा की जाती है , लेकिन अभी तक इस खेती का वाणिज्यकरन नही हुआ है , इसलिए बड़े पैमाने पे उत्पादन के लिए इसे कृषि का दर्जा दिया गया है छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा ।
- साल में दो बार लाख की खेती की जा सकती है ,एक बार नवंबर में और दूसरी बार मानसून में ।
4. कृषि म दर्जा देने से क्या फायदा होगा :-
- अभी तक लाक की खेती असंगठित तरीके से होती है , इसका वनिजियकरन तो हुआ है लेकिन आदिवासियों को इसका पूरा लाभ नही मिल रहा है , इसलिए अब बड़े पैमाने पे इसका उत्पादन होगा और सरकार पूरी निगरानी रखेगी इसपे ।
- छत्तीसगढ़ की को-ऑपरेटिव सोसाइटी इसकी खेती के लिए ऋण भी प्रदान करेगी ।
- आदिवासियों को इससे रोजगार का सुनहरा मौका भी मिलेगा ।