सभ्यताओं की जन्म देने वाली गंगा , अनवरत ही सदियों से सनातनी प्रवाह को लेकर चली आ रही है।
गंगा के बिना न कोई धार्मिक संस्कार पुरा होता है न कोई कर्म कांड।
अपने विभिन्न धाराओं से भारतीय संस्कृति को सिंचित करने वाली गंगा , स्वयं में संपूर्ण संस्कृति और संपूर्ण तीर्थ है ।
वह मां है, देवी है, प्रेरणा है, शक्ति है, महाशक्ति है, परम शक्ति है, सर्वव्यापी है, उत्सवों की वाहक है।
पृथ्वी , स्वर्ग , आकाश के तीन करोड़ तीर्थ को स्वयं में समाहित कर , इन्हें पुण्य उपलब्ध करवाती है गंगा।
कोई भी यज्ञ, तप, जप, नियम, यम, दान, योग आदि गंगा से बड़ा नहीं है।गंगा का दर्शन मात्र ही समस्त पापों का विनाश है।
शिव के कांवड़ यात्रा को आत्मसंकल्प देती गंगा , सदियों से योग और तपस्याओं को आश्रय देती गंगा ।
निःस्वार्थ बहती गंगा, धर्म, जाति, पंथ या सम्प्रदाय में कोई भेद नहीं करती। सभी पर समान रूप से अपना स्नेह अपना वात्सल्य लुटाती है।
अपनी पावन धाराओं से चलते रहो, रुको नहीं, थको नहीं का संदेश देकर जीवन से निराशा का भाव अपने साथ बहा ले जाती है । अनवरत बहती गंगा आशा का यह संदेश युगों-युगों से प्रवाहित-प्रसारित करती चली आ रही है।
धरती और संपूर्ण मानव जाति का उद्धार करने वाली मां गंगा को प्रणाम।।