सरेंडरों का एक जीवित इतिहास बना चुकी कांग्रेस , आज भारत के प्रधानमंत्री पर चीन के समक्ष सरेंडर का आरोप लगाकर , सीधे सेना पर आरोप लगा रही है।यह बात बर्दाश्त योग्य नहीं है।
स्वयं को सत्ताधीश बनाने के लिए भारत के दो टुकड़े करना क्या वह सरेंडर नहीं था , उसी समय कई लाख लोगों के नरसंहार पर चुप्पी साधे रहना क्या वह सरेंडर नहीं था।
भारत की स्वतंत्रता के उपरांत स्वयं को पाकिस्तानी सेना के सामने असमर्थवान बनाकर आधा कश्मीर सौंप देना क्या वह सरेंडर नहीं था।
तिब्बत में जब चीन ने उत्पात मचाया उस पर चुप्पी साधे रहना , क्या वह सरेंडर नहीं था ।ध्यान रहे भारत चीन सीमा विवाद की जड़ , तिब्बत के स्वतंत्र न होने के कारण ही है , अन्यथा भारत से चीन की सीमाएं ही नहीं लगती।
चीन से युद्ध में हार हुई या नहीं हुई , मगर युद्ध में स्वयं को हारा हुआ बताकर चीन को एक बड़ा भारतीय भूभाग सौंप देना क्या वह सरेंडर नहीं था।
सत्ता हाथ से छीनते देख , पुरे देश में इमरजेंसी के नाम पर अत्याचार करना क्या वह सरेंडर नहीं था।
शांतिप्रिय कट्टरवादियों के आगे भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश को पलट देना क्या वह सरेंडर नहीं था।
चीन से सटे सीमावर्ती इलाकों पर देश को अंडर डेवलप्ड रखना क्या वह सरेंडर नहीं था ।
यह सब क्या था सरेंडर ही तो था , और कांग्रेस को ऐसे कई और सरेंडर करने का मौका गांधी परिवार का नेतृत्व देता ही रहेगा जो आजकल चीन से निजी रिश्तों को लेकर सरेंडर किए बैठे हैं।