युद्ध ही नियति है तो हम युद्ध करेंगे
ताकि जीवन ले सके निर्भय आकार
वेद की ऋचाएं,
उपनिषदीय परम्पराएं
हमारी पुरातनता का विजयी ध्वज
दिग्दिगन्त में लहरा सकें
लड़ना ही पड़ा तो हम लड़ेंगे
ताकि मंदिरों की घंटियां
गुनगुनाती रहें प्रार्थनाएं
बैलों के गले बंधा हल
खेतों में उकेरते रहे मंत्र
नदियाँ आप्लावित करते रहें प्राण
झरनों से गूंजता रहे गान
पुराण अनावृत्त करते रहें
ईश्वरीय लीला अवतार विधान
यदि शत्रु ने सजा ही दिया रणक्षेत्र
साथी! तब हमें गाण्डीव उठाना ही होगा
तब अरिमर्दन कर रणभूमि का शृंगार करना होगा
ताकि पूर्वजों की अमिट वीरगाथा अक्षुण रहे,
ताकि वैदिक सनातन संस्कृति निर्बाध रहे
ताकि माताओं की कोख गौरवान्वित रहे
वीर भोग्या वसुंधरा का उदघोष होता रहे
अनीति, अन्याय, अधर्म जब सीमाएं लांघ चुका
तब हमें शस्त्र संधान करना ही होगा
साथी! तब हमें लड़ना होगा
ताकि मौसम ऋचाएं गुनगुना सकें
खेतों में लहलहाती रहें फसलें
ऋषि गाता रहे उपनिषदीय गीत
पुराणों से अवतरित होता रहे परम्
नदियों से आप्लावित होता रहे प्राण
झरनों से झरता रहे शाकुन्तल प्रेम
माँएं खिलखिलाती रहें नौनिहालों संग
इन सबके लिए लड़ना ही पड़ा...
तो साथी! हम लड़ेंगे।।
Naman Krishna Bhagwat Kinker