‘राम जी’ का राज्याभिषेक हो चुका था और रामराज्य में प्रजा सुखी जीवन गुज़ार रही थी। प्रजा के सुख के लिए राम जी के द्वारा अपने राज्य में जगह-जगह अन्न क्षेत्र चलाये जा रहे थे, ऐसा ही एक अन्न क्षेत्र सरयू और गंगा के संगम पर भी चलाया जा रहा था।
एक दिन भ्रमण करते हुए वहां ‘अगस्त्य मुनि’ पहुँच गए और अन्नक्षेत्र देखकर वहां एक पंक्ति में भोजन करने बैठ गए। पहला निवाला अंदर रखने से पहले उन्होंने अन्न क्षेत्र से अधिकारियों से पूछा कि ये अन्नक्षेत्र कौन चलवा रहा है? बताया गया, यह अन्न-क्षेत्र राजा राम की आज्ञा से चलाये जा रहे हैं।
ये सुनते ही मुनिवर अपने स्थान से यह कहते हुए उठ गये कि “जिस राम ने ब्राहमण पुत्र दशानन का वध करने के पश्चात् ब्रह्महत्या के पाप के प्रायश्चित के लिए न तो तीर्थयात्रा की है और न ही कोई यज्ञ किया है, उस राम का अन्न मैं नहीं खाऊंगा।“ अतएव आप सब जाकर राजा राम से यह बात कह दें।
राम जी तक जब यह बात पहुँची तो उन्होंने तुरंत पुष्पक विमान को आने की आज्ञा दी और अपने परिवार वालों और सुहृदों को लेकर जम्बूद्वीप स्थित समस्त तीर्थों की यात्रा शुरू कर दी और चारों दिशाओं में स्थित तीर्थों की यात्रा पूरी की और लौटकर आये तो यज्ञ भी किया।
‘राम’ तो ‘श्रीहरि’ के अवतार थे, उन्हें भला किसी की हत्या का पाप कैसे लग सकता था? तो वास्तव में मुनिवर अगस्त्य ‘श्रीराम’ को ऐसा कहके लोक-मर्यादा की स्थापना करवाना चाहते थे ताकि तीर्थाटन के जरिये जुड़ा रहा अखंड भारत उसी परंपरा को राम का अनुगमन करके आगे भी आत्मसात कर ले।
प्रभु की इन तीर्थ-यात्राओं से ये हुआ कि राम और उनकी कथाओं का व्याप पूरी दुनिया और विशेषकर दक्षिण-पूर्व के देशों में हो गया और राम आज भी वहां के जन-जन में और मन-मन में विराजित हैं भले ही वहां के लोग मतान्तरित हो गए।
एक उदाहरण इण्डोनेशिया है; जो दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में स्थित एक देश है और करीब सत्रह हज़ार द्वीपों का समूह है। इस देश में आज दुनिया की सबसे अधिक मुस्लिम आबादी निवास करती है। यह देश तकरीबन साढ़े तीन सौ साल से अधिक समय तक डचों के अधीन थी, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इसे डचों से आजादी मिली।
डचों से आजादी के लिये इण्डोनेशियाई लोगों के संघर्ष के दौरान एक बड़ी रोचक घटना हुई। इंडोनेशिया के कई द्वीपों को आजादी मिल गई थी पर एक द्वीप पर डच अपना कब्जा छोड़ने को तैयार नहीं थे। डचों का कहना था कि इंडोनेशिया इस बात का कोई प्रमाण नहीं दे पाया है कि यह द्वीप कभी उसका हिस्सा रहा है, इसलिये हम उसे छोड़ नहीं सकते। जब डचों के तरफ से ये बात उठी तो इंडोनेशिया यह मामला लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ चला गया। ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ ने भी इंडोनेशिया को सबूत पेश करने को कहा तो इंडो लोग अपने यहाँ की प्रचलित रामकथा के दस्तावेज लेकर वहां पहुँच गये और कहा कि जब सीता माता की खोज करने के लिये वानरराज सुग्रीव ने हर दिशा में अपने दूत भेजे थे तो उनके कुछ दूत माता की खोज करते-करते हमारे इस द्वीप तक भी पहुंचे थे; पर चूँकि वानरराज का आदेश था कि माता का खोज न कर सकने वाले वापस लौट कर नहीं आ सकते तो जो दूत यहाँ इस द्वीप पर आये थे वो यहीं बस गए और उनकी ही संताने इन द्वीपों पर आज आबाद है और हम उनके वंशज है। बाद में उन्हीं दस्तावेजों को मान्यता देते हुए ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ ने वो द्वीप इंडोनेशिया को सौंप दिया।
इसका अर्थ ये है कि हिन्दू संस्कृति के चिन्ह विश्व के हर भूभाग में मिलते हैं और इन चिन्हों में साम्यता ये है कि श्रीराम इसमें हर जगह हैं। भारत के सुदुर पूर्व में बसे जावा, सुमात्रा, मलेशिया, थाईलैंड और इंडोनेशिया हो या दक्षिण में बसा श्रीलंका या फिर चीन, मंगोलिया , #ताईवान या फिर मध्य-पूर्व के देशों के साथ-साथ अरब-प्रायद्वीप के देश, राम नाम और रामकथा का व्याप किसी न किसी रूप में हर जगह है। अमेरिका और योरोप की माया, इंका या आयर सभ्यताओं में भी राम हैं तो मिश्री लोककथायें भी राम और रामकथा से भरी पड़ी हैं। इटली, तुर्की, साइप्रस और न जिनके कितने देश हैं जहाँ राम-कथा आज भी किसी न किसी रूप में सुनी और सुनाई जाती है।
भारतीय संस्कृति के विश्व-संचार का सबसे बड़ा कारण राम हैं। राम विष्णु के ऐसे प्रथम अवतार थे जिनके जीवन-वृत को कलम-बद्ध किया गया ताकि दुनिया उनके इस धराधाम को छोड़ने के बाद भी उनके द्वारा स्थापित आदर्शों से विरत न हो और मानव-जीवन, समाज-जीवन और राष्ट्र-जीवन के हरेक पहलू पर दिशा-दर्शन देने वाला ग्रन्थ मानव-जाति के पास उपलब्ध रहे। इसलिये हरेक ने अपने समाज को राम से जोड़े रखा।
आज दुनिया के देशों में भारत को बुद्ध का देश तो कहा जाता है पर राम का देश कहने से लोग बचते हैं। दलील है कि बुद्ध दुनिया के देशों को भारत से जोड़ने का माध्यम हैं पर सच ये है कि दुनिया में बुद्ध से अधिक व्याप राम का और रामकथा का है। भगवान बुद्ध तो बहुत बाद के कालखंड में अवतरित हुए पर उनसे काफी पहले से दुनिया को श्रीराम का नाम और उनकी पावन रामकथा ने परस्पर जोड़े रखा था और चूँकि भारत-भूमि को श्रीराम अवतरण का सौभाग्य प्राप्त था इसलिये भारत उनके लिये पुण्य-भूमि थी। राम भारत भूमि को उत्तर से दक्षिण तक एक करने के कारण राष्ट्र-नायक भी हैं।
"भारत को दुनिया में जितना सम्मान राम और रामकथा ने दिलवाया है, इतिहास में उनके सिवा और कोई दूसरा नहीं है जो इस गौरव का शतांश हासिल करने योग्य भी है।"
संभवत लंबे अरसे बाद ये पहला अवसर आया है जब दुनिया पुनः उसी भारत को पहचान रही है जो राम की है और चाह रही है कि राम का वंशज ये देश पुनः राम की तरह ही दुनिया से तमाम आसुरी शक्तियों का खात्मा करे। आज ही ताईवान के एक अखबार में एक लेख छपा है जिसका शीर्षक है, Photo of the Day: India's Rama takes on China's dragon, इस ख़बर के साथ एक तस्वीर लगी है जिसमें प्रभु राम आक्रामक मुद्रा में तीर-धनुष दिये एक ड्रैगन पर आक्रामक हैं। यानि इस अखबार ने राम जी के रूप में भारत को और ड्रैगन के रूप में असुर “चीन” को दर्शाया है।
और जाहिर है दुनिया आज भारत को राम यानि देवत्व के प्रतीक रूप में देखकर यही उम्मीद कर रही है कि राम के वंशजों के इस देश का वर्तमान नेतृत्वकर्ता यानि #नरेंद्र_मोदी भी उसी राम की तरह “निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह” कहते हुए उठे और विस्तारवादी और मानवता के शत्रु चीन नाम के असुर का संहार कर दे।
जब राजा राम का असुरों के साथ युद्ध होता था तो समस्त देवगण, यक्ष, किन्नर सब खड़े देखते थे कि प्रभु के हाथों कब इस नीच अधर्मी का वध होगा और आज भी उसी तरह ताईवान समेत विश्व का हरेक देश मोदी की ओर देख रहा है और कह रहा है कि इस चीन नाम के असुर देश का वध कर यश और कीर्ति के भागी बनिये।
अखबार में लगी राम जी वाले तस्वीर के साथ लिखा है :-