5 दिसंबर, 1982 की रात मोटर साइकिल पर सवार दो लोग भिंड के पास बीहड़ों की तरफ़ बढ़ रहे थे. हवा इतनी तेज़ थी कि भिंड के पुलिस अधीक्षक राजेंद्र चतुर्वेदी की कंपकपी छूट रही थी.
उन्होंने जींस के ऊपर एक जैकेट पहनी हुई थी, लेकिन वो सोच रहे थे कि उन्हें उसके ऊपर शॉल लपेट कर आना चाहिए था.
मोटर साइकिल पर उनके पीछे बैठे शख़्स का भी ठंड से बुरा हाल था. अचानक उसने उनके कंधे पर हाथ रख कर कहा, 'बाएं मुड़िए.' थोड़ी देर चलने पर उन्हें हाथ में लालटेन हिलाता एक शख़्स दिखाई दिया.
वो उन्हें लालटेन से गाइड करता हुआ एक झोपड़ी के पास ले गया. जब वो अपनी मोटरसाइकिल खड़ी कर झोपड़ी में घुसे तो अंदर बात कर रहे लोग चुप हो गए.
साफ़ था कि उन लोगों ने चतुर्वेदी को पहले कभी देखा नहीं था. लेकिन उन्होंने उन्हें दाल, चपाती और भुने हुए भुट्टे खाने को दिए. उनके साथी ने कहा कि उन्हें यहां एक घंटे तक इंतज़ार करना होगा.
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Image caption फूलन देवी 1980 के दशक के शुरुआत में चंबल के बीहड़ों में सबसे ख़तरनाक डाकू मानी जाती थीं.
वो सफ़र
थोड़ी देर बाद आगे का सफ़र शुरू हुआ. मोटर साइकिल पर उनके पीछे बैठे शख़्स ने कहा, 'कंबल ले लियो महाराज.' कंबल ओढ़कर जब ये दोनों चंबल नदी की ओर जाने के लिए कच्चे रास्ते पर बढ़े तो चतुर्वेदी के लिए मोटर साइकिल पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो रहा था रास्ते में इतने गड्ढे थे कि मोटर साइकिल की गति 15 किलोमीटर प्रति घंटे से आगे नहीं बढ़ पा रही थी.