अशोक "प्रवृद्ध"'s Album: Wall Photos

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यद्वा प्रवृद्ध सत्पते


ॐ नमस्ते




यद्वा प्रवृद्ध सत्पते न मरा इति मन्यसे ।
उतो तत्सत्यमित्तव ।।
-ऋग्वेद 8- 93-5


अर्थात - परमात्मा जीवात्मा से कह रहे हैं कि हे ज्ञान के दृष्टिकोण से वृद्धि को प्राप्त हुए उत्तम कर्मों के रक्षक जीव ! जब निश्चय से मैं मरता नहीं, मैं अमर हूँ, इस प्रकार तू मानता है तो निश्चय से वह तेरा अपने अको अमर जानना सत्य ही है। अपने अमरत्व को पहचानने पर ही तुम वास्तविक सत्य को पाने वाला होता है।


भावार्थ- हम अपने अमरत्व को पहचानकर शरीर आदि में मैं की वृद्धि से उपर उठें। यही ज्ञान हमें प्राकृतिक भोगों की तुच्छता को स्पष्ट करता हुआ उनके बंधन में पड़ने से बचाएगा ।