Ghanshyam Prasad's Album: Wall Photos

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आखिर सत्ता का ऐसा रक्त-रंजित इतिहास कंही ओर देखने को नही मिलेगा...!!!
भाग : ४

तैमूर हिंदुस्तान में क़त्ल-ए-आम करके वापस लौट चुका था। दोनो भगौड़े सुल्तान वापस आ चुके थे। इस वक्त दिल्ली सल्तनत आज के एनसीआर तक सिमट चुकी थी। सुल्तान भी एक दिन चल बसा। एक साल तक उसके वजीर ने गद्दी सम्भाली। फिर एक दिन उसे क़ैद कर लिया गया। तैमूर के ही एक जोड़ीदार ख़िज़्र खान ने इस वारदात को अंजाम दिया। इसे वैसे भी तैमूर के साथ मिलकर हिंदुस्तान को लूटने और तहस नहस करने का अच्छा अनुभव था। अब इसने "सैय्यद-वंश" की नींव डाली और "तुगलक-वंश" की बादशाही समाप्त हो गई।

मुसलमानों में अपनी भक्ति पैदा करने के लिए इसने ख़ुद को पैग़म्बर मुहम्मद का वंशज प्रसिद्ध किया। इतना सब करने पर भी एक छोटे से ज़मीन के टुकड़े से बाहर इसकी सल्तनत न पनप सकी। इसके बाद इसकी सल्तनत मुबारक शाह ने संभाली, जो जल्द ही कत्ल कर दिया गया। फिर मुहम्मद शाह गद्दी पर बैठा। दस साल तक राज करने के बाद अपने ही सेनापति बहलोल लोदी के हाथों कत्ल कर दिया गया। बहलोल लोदी के मरते ही उसके भाई और बेटे पागल कुत्तों की तरह एक दूसरे पर टूट पड़े। आख़िर में तीसरे बेटे निजाम खान ने बाकी सब पर फतह पाई और अगला सुल्तान बना। यही आगे चलकर सिकंदर लोदी की पदवी से नवाजा गया। गले के कैंसर की वजह से एक दिन वह चल बसा और इब्राहिम लोदी तख्त पर बैठा। इब्राहिम के लिए सफर इतना आसान न था। इसे अपने भाई जलाल खान, चाचा आजम खान और चचेरे भाई फतह खान को भी हराना था। जलाल मार डाला गया और बाकी दो गुलाम बना लिए गए।

आजम के दूसरे बेटे इस्लाम खान ने विद्रोह किया। एक खूंखार लड़ाई के बाद बाप-बेटे कत्ल कर दिए गए। पर हर बार की तरह, शिकारी को भी एक दिन शिकार बनना था। लोदी के रिश्तेदारों के न्योते पर बाबर लोदी की गर्दन उतारने हिंदुस्तान आया और अपने काम को अंजाम दिया। और इस तरह बाबर के साथ "मुगल-वंश" की शुरुआत हुई। भारत के महानतम शासक वंश के नाम से मशहूर मुगल वंश की स्थापना बाबर ने की। पिता की तरफ से तैमूर का खून, माँ की तरफ से चंगेज खान का खून, फिर महानता में क्या संदेह हो सकता था..?? अपने जीवन में हज़ारों हिंदू मुसलमानों के सिरों को काटकर उनसे मीनारें बनाकर शहरों में घुमाने वाला यह महान आज के हिंदुस्तान के कुछ जिहादी और धर्मनिरपेक्ष (सेक्युलर) जमात का पैग़म्बर बना हुआ है।

बाबर के पड़दादे के पड़दादे तैमूर ने ख़िज़्र खान को सल्तनत सौंपी थी, इस बात ने उसकी खुशफहमी को और हवा दी। दूसरी तरफ, फरगना में खुद के चचाओं और मामाओं के हाथों पिटकर, समरकंद की लड़ाई में उज्बेग सुल्तान शैबानी खां को अपनी जान के बदले अपनी बहन को गिरवी रखकर बाबर किसी बिलबिलाए कुत्ते की तरह दुम दबाकर भागा था। हिंदुस्तान पर हमलावर होने पर अपने परिवार के प्यार का बदला उसने हिंदुस्तान के खून से लिया। अपने रिश्तेदार मेहंदी ख्वाजा को सल्तनत सौंप कर बाबर अल्लाह को प्यारा हुआ। मरने के पहले अपनी सल्तनत को चार हिस्सों में बाँट कर बेटों कामरान, अस्करी, हिंदाल और हुमायूँ के नाम किया। पर हर बार की तरह इस बार भी बाप का लिहाज न किया गया। उसके मरते ही उसकी कब्र पर चारों भाई तिलचट्टों की भांति लड़ बैठे। हुमायूँ ने बाजी मार ली और दिल्ली का अगला सुल्तान बन बैठा। कन्नौज की लड़ाई में लुटने पिटने के बाद हुमायूँ भागकर लाहौर पहुँचा जहाँ उसके सौतेले भाईयों कामरान और अस्करी की हुकूमत थी।

जिन भाईयों को धोखा देकर सुल्तान बना था, आज उन्हीं भाईयों को एक बाप की दुहाई दी। पर भाईयों ने भी कच्ची गोलियां नही खेली थीं। आख़िर वे भी उसी बाप की संतान थे। घायल भाई को बचाना तो एक तरफ रहा, उसके दुश्मन शेरशाह सूरी के साथ मिलकर हमले का मंसूबा बाँध लिया। भाईयों से धोखा खाकर हुमायूँ ईरान की तरफ भाग निकला। इधर भाई कामरान ने ईरान के शाह के नाम संदेश भेजा। हुमायूँ दो और काबुल लो। इस तरह बाप की गद्दी के लिए फिर से भाईयों में एक खूँरेज जंग हुई। आखिर में जीत हुमायूँ की हुई। इस्लाम शाह ने कामरान को हुमायूँ के हवाले किया। प्यारे भाई हुमायूँ ने कामरान की आँखों को अपने हाथों से फोड़ा। खंजर घोंप कर आँखें बाहर निकालीं। फिर फूटी हुई आँखों के रिसते हुए जख्मो में नमक भर दिया गया। मजहबी रिवायत में कोई कमी न रहे, इसलिए अंधे कामरान को पाक हज के लिए रवाना कर दिया गया जहाँ उसे गुमनामी की मौत मरने के लिए अकेला छोड़ दिया गया।

अब बारी बाबर के दूसरे बेटे अस्करी की थी। इसको कैद कर लिया गया और फिर बाद में कत्ल। अपने इसी भाई की बेटी के साथ अपने बेटे जलाल का निकाह करवाकर भाई बहन के रिश्ते को एक नया नाम दिया। हुमायूँ को हराकर शेरशाह सूरी ने अगले ५ साल के लिए हिंदुस्तान में जिहादी कत्ल-ए-आम की बागडोर संभाली थी। फिर एक दिन अपनी ही बंदूक/तोप फट जाने की वजह से वह अल्लाह को प्यारा हुआ और उसका दूसरा बेटा इस्लाम शाह सूरी तख्त पर बैठा। बड़े भाई आदिल खान ने भी गद्दी हथियाने की कोशिश की लेकिन भाई इस्लाम शाह के हाथों वह कत्ल कर दिया गया। इस्लाम शाह किसी मूत्र रोग के चलते दुनिया से रुखसत हुआ और १२ साल का फिरोज शाह गद्दी पर बैठा। पर यह बालक सुल्तान अपने ही चचा मुहम्मद आदिल शाह के हाथों मौत के घाट उतार दिया गया।

सुल्तान मुहम्मद की लड़ाई अपने ही रिश्तेदारों इब्राहिम खान और अहमद खान से छिड़ गयी। देखते ही देखते उसके दिलेर सेनापति हेमचंद्र विक्रमादित्य (हेमू) ने मौके का फायदा उठाया और एक लड़ाई में इन सब को हराकर दिल्ली पर कब्जा कर किया। सूरियों की आपसी फूट का फायदा उठाकर हुमायूँ ने एक बार फिर दिल्ली पर हमला बोला। पर यह साल उसके लिए नेक साबित ना हुआ। शराब के नशे में धुत होकर एक दिन ग़जवा-ए-हिंद का सपना देखते देखते वह सीढ़ियों से गिरा और अल्लाह को प्यारा हुआ। उसके बाद उसके १३ साल के बेटे अकबर ने हुमायूँ के वफादार बैरम खान की देखरेख में गद्दी सम्भाली। एक नामुमकिन लड़ाई में ताक़तवर राजा हेमू को पकड़ लिया गया। बेहोशी की हालत में उसे अकबर के सामने पेश किया गया। अपनी महानता के लिए मशहूर सुल्तान अकबर ने फौरन अपनी तलवार निकाल कर हेमू का सर कलम करने की नाकाम कोशिश की। कई बार की कोशिश के बावजूद हेमू का फौलादी सर सुल्तान अकबर के नरम हाथों की तलवार से न कट सका। सुल्तान ग़ुस्से से लाल पीला हुआ जाता था। फिर आख़िर में उस्ताद बैरम खान ने सुल्तान के कली समान मसले हुए दिल की लाज रखी। उसने बेहोश पड़े हेमू का सर काटकर अकबर महान को गाजी के रुतबे से नवाजा।

लेकिन तक़दीर को कुछ और ही मंज़ूर था। कुछ ही वक्त बाद सुल्तान अकबर ने उस्ताद बैरम को मक्का भागने पर मजबूर कर दिया और रास्ते में ही उसे कत्ल करवा दिया गया। उस्ताद बैरम को कत्ल करके माँ समान उसकी बीवी के साथ अकबर महान ने निकाह रचाया। जिससे आज तक माँ का प्यार मिला था और आज के बाद बीवी का प्यार भी मिला। अकबर सुल्तान को महान यूँ ही नहीं कहा जाता। इस्लामी सल्तनत की रिवायत को कायम रखते हुए अकबर महान ने अपने चचेरे भाइयों को यातनायें देकर कत्ल करवा किया। वक्त बदला मगर इस्लामी इतिहास नही। अकबर दक्कन में अपने जंगी अभियान पर था, तभी उसके खिलाफ एक बगावत हुई। बगावत करने वाला कोई और नही, उसका प्यारा बेटा जहांगीर निकला। बाप की गैर-हाज़िरी का फायदा उठा कर जहांगीर खुद को सुल्तान घोषित करने के मंसूबे लेकर आगरा की तरफ बढ़ा। बाप अकबर को पता चला तो दक्कन का मोर्चा बीच में छोड़ कर आगरा भाग आया और अनहोनी को टाला।

क्रमशः

#सल्तनत_काल

Sachin Tyagi