भारत के छोटे किसान जिनके पास औसतन १ या दो एकड़ जमीन है, उनके जीवन और १ या २ लाख रूपये मासिक आमदनी वाले शहरी पेशेवर के जीवन के मध्य बढ़ती खायी को पाटने का किसी वैज्ञानिक मस्तिष्क के पास कोई सुझाव है ?
बिना गौ वंस संवर्धन की मदद के तुम्हारे पास कोई वैज्ञानिक आधार हो तो जरूर बताना।
गौ पूजकों ने तो ऐसी भारत में ऋषि कृषि से १ एकड़ भूमि में औसतन ६५० किलो प्रतिदिन का अनाज सब्जी फल उगाना शुरू कर दिया है।
विदर्भ जैसी भूमि पे २८ लाख सालाना आय देती है १ अकड़ भूमि वो भी बिना तुम्हारे तथाकथित वैज्ञानिक आधुनिक उपकरणों के।
बहरहाल , क्यूंकि मैं तुम्हें चूतिया घोषित करने से पहले एक मौका देना चाहता हूँ तो बताओ अगर कोई "Sustainable Model " तुम्हारे पास हो तो ?
और अगर नहीं तो ये दांत चियार के अपने चूतिया होने का ढिंढोरा कहीं और पीटना।
नोट - आज़ाद भारत में आर्थिक क्षेत्र में तीन महत्वपूर्ण घटनाएं हुई।
१. हरित क्रांति - इसने मृदा (Soil) का जीवन ही छीन लिया।
२. श्वेत क्रांति - गौ वंश के साथ इससे बड़ा धोखा कुछ नहीं हो सकता।
३. GPL - Globalisation Privatisation Liberalisation - इसके लाभ हानि पे आज भी जनता अगर इतने बड़े टुकड़ों में बंटी है तो इसकी सफलताओं पे भी एक बड़ा प्रश्न चिह्न लगा हुआ है।
खैर मुद्दे पे आ जाओ --
तोता रटंत विदेशी कत्लखानों के धन से गढ़े वैज्ञानिक तर्कों को पढ़ खुद को बुद्धिजीवी समझनेवालों !!!