Ghanshyam Prasad's Album: Wall Photos

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(“कोरोनिल और एलोपैथी” शीर्षक वाले मेरे पोस्ट को गलत दवा का प्रचार के आरोप में फेसबुक ने हटा दिया था और मेरे द्वारा कुछ भी लिखने पर एक दिन का प्रतिबन्ध लगा दिया था । मैंने प्रतिवाद भेजा कि फेसबुक के किसी भी मानक का मेरे पोस्ट में उल्लङ्घन नहीं था और मैंने किसी दवा के पक्ष या विपक्ष में नहीं लिखा,बल्कि आयुष मन्त्रालय के विरोध में लिखा जिसने कोरोनिल की पूरी जाँच किये बिना उसे कोरोना का “मैनेजमेण्ट” करने वाली दवा बताया । जबतक दवा की पूरी जाँच नहीं होती तबतक उसके पक्ष या विपक्ष में लिखना सम्भव ही नहीं है । जैसा कि पहले भी हो चुका है,मेरे प्रतिवाद की अनदेखी की गयी । एलोपैथी पर कमेण्ट को हटाकर इस पोस्ट को डाल रहा हूँ । रामदेव की दवा “कोरोनिल” कोविड−१९ की दवा है ऐसा न तो मैं कहता हूँ और न ही किसी दूसरे को ऐसा कहना चाहिये । रामदेव के दावों की पूरी जाँच आयुष मन्त्रालय को करानी चाहिये ।)

जबतक कोविड−१९ के रोगियों पर बड़ी संख्या में कोरोनिल का प्रयोग स्वतन्त्र अन्वेषकों के निदेशन मे न हो तबतक कोरोनिल को कोरोना की दवा कहना अनुचित है ।

“एक्वायर्ड” प्रतिरोध प्रणाली बनाने में कोरोनिल यदि सहायक नहीं है तो इसे वैक्सीन अथवा उसका विकल्प नहीं माना जा सकता । परन्तु आयुष मन्त्रालय के मन्दारिनों की यह बात मेरी समझ में नहीं आ रही है कि कोरोनिल कोरोना का ट्रीटमेण्ट के बदले मैनेजमेण्ट करती है!यदि बाबा रामदेव का दावा सही है कि रोगियों का रोग कोरोनिल ने दूर किया तो ट्रीटमेण्ट कैसे नहीं हुआ?और यदि बाबा का दावा झूठा है तो मैनेजमेण्ट कैसे किया?

कोरोनिल में जो जड़ी−बूटियाँ हैं वे प्रतिरोध प्रणाली को प्रबल बनाने में पहले से ही ख्यातिप्राप्त हैं । तब कोरोनिल में कौन सी नयी बात है?प्रतिरोध प्रणाली को कोरोनिल ने प्रबल बनाया यह भी आयुष मन्त्रालय ने माना ।

कोरोनिल ने कोरोना का ट्रीटमेण्ट या तो किया या नहीं किया । किन्तु ट्रीटमेण्ट नहीं किया पर मैनेजमेण्ट कर दिया इसका क्या अर्थ है?आयुष मन्त्रालय को कोरोना का नाम लिये बिना केवल इतना कहना चाहिये कि कोरोनिल से प्रतिरोध प्रणाली प्रबल होती है जिसका लाभ सभी रोगियों को मिलता है । और तब कोरोनिल के बारे में रामदेव के दावों की सम्पूर्ण जाँच करानी चाहिये ।

जबतक रोगियों के शरीर से कोविड−१९ को नष्ट करने वाली नवीन एण्टीबॉडी को विशेषज्ञ देख नहीं लेंगे तबतक ट्रीटमेण्ट नहीं माना जा सकता । यही मान्य पद्धति है ।

बाबा रामदेव के तथाकथित योग और सनातन−विरोध से मैं सहमत नहीं हूँ,किन्तु सरलीकृत योग तथा आयुर्वेद को जनसुलभ बनाने में उनकी महती भूमिका रही है जिसके लिये वे भारत रत्न के अधिकारी हैं । किन्तु कोरोनिल को कोविड−१९ की दवा कहने में वे हड़बड़ा गये थे,पूरी प्रक्रिया का पालन उनको करना चाहिये था । पूरी प्रक्रिया का अर्थ यह है कि आयुर्वेद को किनारे रखकर उनको कोविड−१९ को दूर करने वाली नवीन एण्टीबॉडी का निर्माण करने वाली दवा बनानी चाहिये । इस बात की तो जाँच भी नहीं हो सकती कि उनकी दवा से रोग दूर होता है या नहीं?

संक्रमण द्वारा फैलने वाली महामारियों का सर्वाधिक प्रभावी उपचार आजकल वैक्सीन को माना जाता है । एलोपैथी में वैक्सीन की अवधारणा तथा सम्पूर्ण होमियोपैथी ऋग्वेद के उपवेद माने जाने वाले आयुर्वेद के केवल एक सूत्र पर आधारित है — “विषस्य विषमौषधम्” (महाकवि कालिदास ने श्रुति को उद्धृत करते हुए ऐसा लिखा था) ।

एलोपैथी में वैक्सीन का अर्थ है विषाणु के निर्बल प्रतिरूप अथवा अंश को नियन्त्रित मात्रा में शरीर में इस प्रकार डालना ताकि शरीर की नैसर्गिक प्रतिरोध प्रणाली (इम्यून सिस्टम) उस विषाणु के प्रतिकार हेतु स्वयं को ढाल ले,तब इस परिवर्धित प्रतिरोध प्रणाली को “एक्वायर्ड” प्रतिरोध प्रणाली कहा जाता है । प्रतिरोध प्रणाली किस प्रकार स्वयं को संवर्धित करती है इसका रहस्य कोई नहीं जानता,किन्तु विष के प्रतिकार में प्रतिरोध प्रणाली स्वयं को संवर्धित करके उस किस्म के समस्त अन्य विषों की औषधि स्वयं बनाने की क्षमता अर्जित कर लेती है यह सत्य है ।

बाबा रामदेव ने जिन लोगों पर कोरोनिल का ट्रायल लिया क्या उनकी जाँच आयुष मन्त्रालय ने करायी?यदि नहीं करायी तो कोरोनिल को प्रतिरोध प्रणाली के संवर्धक अथवा कोरोना के “मैनेजमेण्ट” में सहायक के तौर पर भी मान्यता देने का अधिकार आयुष मन्त्रालय को नहीं है और बिना जाँच के अनुमति देने के कारण आयुष मन्त्रालय के अधिकारियों पर मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिये ।

आयुष मन्त्रालय ने यदि जाँच करायी और ७ दिनों में १००% कोरोना रोगियों के रोगमुक्त होने के दावे को सत्य पाया तो इस सच्चाई को छुपाकर लाखों रोगियों को सही दवा से दूर करने के षडयन्त्र के आरोप में आयुष मन्त्रालय के अधिकारियों पर मुकदमा दर्ज करना चाहिये ।

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आयुर्वेद को ऋग्वेद का उपवेद क्यों माना जाता है यह रामदेव या बालकृष्ण नहीं जानते । ऋग्वेद उन स्तुतियों का संकलन है जिनका प्रयोग यज्ञादि कर्मों में देवता को प्रसन्न करने के लिये किया जाता है । सनातनी परम्परा में ग्रहशान्ति के मन्त्र भी वेद से ही लिये जाते हैं । आयुर्वेद की औषधियों के संग्रह,परिष्कार तथा प्रयोग इन तीनों चरणों में उनके विशिष्ट मन्त्रों का प्रयोग ज्योतिषीय गणनानुसार किया जाता है जिसका ज्ञान रामदेव या बालकृष्ण को नहीं है और इस ज्ञान के वे अधिकारी भी नहीं बन सकते क्योंकि वेद के अङ्ग ज्योतिष से उनको घृणा है जिसके अनुसार ग्रहशान्ति के वेदमन्त्रों का जप किये बिना सभी रोगों का पूर्ण उपचार किसी भी दवा द्वारा सम्भव नहीं । ऐसी कोई दवा नहीं जिससे उसके सारे रोगी ठीक हो जायें,क्योंकि बिना ग्रहशान्ति के कर्म का फल तो भोगना ही पड़ता है । कई बार तो ऐसा भी होता है कि गलत उपचार से भी रोगी ठीक हो जाते हैं क्योंकि उसके पीछे लाखों रूपये नष्ट करने के “दण्ड” से ग्रहशान्ति हो जाती है!

विनय झा