जब मैं स्कूल में पढ़ता था तो स्कूल में लड़कों के ग्रुप्स हुआ करते थे...!
मतलब कि.... रोहन का ग्रुप, सुनील का ग्रुप, मनोज का ग्रुप आदि आदि.
अगर आप किसी एक ग्रुप के लड़के से लड़ाई करते तो उसके ग्रुप के नेता अपने दो-चार टंडेल (चेला-चपाटी) लेकर लड़ने आ जाता था..!
तो, इससे निपटने के लिए हमलोगों ने एक स्ट्रेटर्जी बना रखी थी कि हमलोग टंडेल (चेला-चपाटी) को ज्यादा कुछ नहीं बोलते थे...
बल्कि, उसके नेता को ही पकड़ कर दम भर कूट देते थे.
जैसे ही... सामने वाले ग्रुप का नेता कुटाने लगता था तो उसके चेले ऐसे गायब हो जाते थे मानो कि गधे के सिर से सींग.
अब उस उम्र में हमलोग ये तो नहीं जानते थे कि ऐसा क्यों होता है लेकिन ये जरूर जानते थे कि... अगर ग्रुप ने नेता को कूट दोगे तो फिर कोई लड़ने नहीं आएगा..!
बाद में पता लगा कि... "मनोविज्ञान" नाम की भी कोई चीज होती है दुनिया में...
और, ग्रुप के नेता के कुटाने के बाद... ग्रुप के बाकी सदस्य मनोवैज्ञानिक रूप से डिमोरलाइज हो जाते थे... इसीलिए, वे लड़ने नहीं आते थे.