Ghanshyam Prasad's Album: Wall Photos

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यह तस्वीर है पेशवा बालाजी बाजीराव की

मराठा साम्राज्य की ओर से ये पहले व्यक्ति रहे जिन्हें भारत को मुगलो से आजाद करके एकसूत्र में बांधने का श्रेय जाता है। बालाजीराव को नाना साहेब भी कहते है संजयलीला भंसाली ने बाजीराव मस्तानी में इन्हें गलत ढंग से दिखाया था।

सन 1740 में महान पेशवा बाजीराव की मृत्यु हुई और छत्रपति शाहू जी ने बाजीराव के बड़े पुत्र 19 वर्षीय बालाजीराव को पेशवा बना दिया। इसके अतिरिक्त छत्रपति ने अपनी पुत्री पार्वती बाई का विवाह पेशवा के चचेरे भाई सदाशिव राव भाऊ से करवा दिया।

1749 में छत्रपति शाहूजी की मृत्यु हो गयी और उनके दत्तक पुत्र राजाराम द्वितीय को राजा बनाया गया। राजाराम द्वितीय को शाहूजी की चाची ताराबाई ने अपना पोता कहकर गोद दिलवाया था जो कि झूठ था। ताराबाई ने राजाराम को आदेश दिया कि वो पेशवा को अपने पद से हटा दे, मगर राजाराम पलट गया तो ताराबाई ने मराठा साम्राज्य की राजधानी सतारा पर कब्जा कर लिया और राजाराम को जेल में डाल दिया।

पेशवा बालाजीराव उस समय बाहर थे उन्होंने कमाल की कूटनीति बनाई और सतारा के किले को घेर लिया। मराठा सरदार होल्कर और सिंधिया पेशवा के समर्थन में उतर आए, दोनो ने सतारा किले को घेरकर गोलीबारी शुरू कर दी। अधिकांश मराठा सरदार ताराबाई से क्रोधित थे।

ताराबाई किले में अकेली पड़ गयी और उनकी पराजय हुई, पेशवा ने उन्हें जाने दिया और राजाराम आजाद हो गया। मगर मराठा सरदार अब उसे छत्रपति मानने को तैयार नही थे क्योकि वो वीर शिवाजी का खून नही था अतः सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि अब से मराठा साम्राज्य में पेशवा ही राजा होगा और छत्रपति नाममात्र का पद रह गया।

मराठा साम्राज्य की राजधानी सतारा से हटाकर पुणे कर दी गयी। पेशवा बालाजीराव ने राजपाठ मिलने के बाद भी अपने नाम की मुद्रा नही चलाई और शिवाजी महाराज की मुद्रा से ही काम करवाया, ये उनकी महानता थी। सिंधिया और होल्कर ग्वालियर तथा इंदौर के सूबेदार मात्र थे मगर पेशवा ने उन्हें राजा घोषित कर दिया तथा पुणे दरबार मे बड़ी बड़ी रेंक दे दी।

पेशवा बालाजीराव ने 1753 में हैदराबाद के निजाम को धो डाला और हैदराबाद पूरी तरह से मराठा साम्राज्य के अधीन हो गया। गुजरात के कुछ इलाकों पर अब भी मुगल थे, इसलिए पेशवा ने बड़ौदा के मराठा राजा दामाजी गायकवाड़ को उन्हें खदेड़ने का आदेश दिया साथ ही अपने भाई रघुनाथ राव को भी भेजा। पेशवा और गायकवाड़ की संयुक्त सेना ने गुजरात मे भयंकर नरसंहार किया अकेले अहमदाबाद में 10 हजार मुगल मारे गए तथा 23 मस्जिदे तोड़ी गयी।

अब समय था उत्तर भारत का, 1753 में जयपुर और जोधपुर के आपसी मतभेद ने मराठाओ की उत्तर भारत मे एंट्री करवा दी। सिंधिया और होल्कर एक एक करके सभी राजपूत रियासतों में हस्तक्षेप करने लगे तथा राजपूताने से चौथ वसूलने लगे।

1757 में पेशवा ने अपने छोटे भाई रघुनाथ राव और शमशेर बहादुर को उत्तर में भेजा, रघुनाथ राव ने 11 अगस्त 1757 को मुगलो को हराया और दिल्ली के लाल किले पर भगवा फहरा दिया। अब मुगल सल्तनत भी मराठा साम्राज्य का अंग बन चुकी थी, रघुनाथ राव ने अटक किले तक भारत को एकसूत्र में बांध दिया। वर्षो बाद मातृभूमि विदेशी जंजीरों से आजाद हुई।

अटक जीतने के बाद भी निजाम का एक किला उदगिरी मराठाओ के अधीन नही था जिसे पेशवा बालाजीराव के चचेरे भाई सदाशिव राव भाऊ ने जीत लिया। भाऊ ने मराठा साम्राज्य की अर्थव्यवस्था भी मजबूत की और वे पुणे में एक बड़ा नाम बन गए।

1759 में जब अफगानी लुटेरा अहमदशाह अब्दाली पाँचवी बार भारत आया तो पेशवा ने भाऊ को ही सेनापति बनाया गया, अब्दाली से भाऊ की लड़ाई पानीपत में हुई जिसमे मराठो की पराजय हुई।

पानीपत में 1 लाख मराठे वीरगति को प्राप्त हुए साथ ही पेशवा के पुत्र विश्वास राव, चचेरे भाई सदाशिव राव भाऊ और सौतेले भाई शमशेर बहादुर भी नही रहे। इस हार से पेशवा बालाजीराव को झटका लगा और वे बीमार पड़ गए तथा आज ही के दिन 23 जून 1761 को उनका निधन हो गया।

पेशवा बालाजीराव भले ही ज्यादा पराक्रमी नही थे ना ही उन्हें प्रजा वत्सल के रूप में देखा जाता है मगर आज हमारी काशी, मथुरा उन्ही के कारण सुरक्षित है। आज हम गर्व से कह सकते है कि अंग्रेज मुगलो को नही मराठाओ को हटाकर भारत पर राज कर सके।

भारत सम्राट पेशवा बालाजीराव को पुण्यतिथि पर शत शत नमन।

परख सक्सेना