जब मुगलो ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया था तब हमने दिल्ली का त्याग नही किया बल्कि उसे आजाद किया। यही बात बॉलीवुड पर लागू होती है, आज यदि उस पर मुगलो का कब्जा है तो उसका त्याग ना करे उसे सुधारे क्योकि वो आपके ही पैसों से चलता है।
यदि 2019 की बात करे तो बॉलीवुड ने 18 हजार करोड़ रुपये का मुनाफा कमाकर दिया है।
बॉलीवुड के ब्रांड एंबेसडर दादा साहेब फाल्के है ना कि सलमान खान। इसका बहिष्कार करके उन महान विभूतियों का तिरस्कार मत कीजिये जिन्होंने बॉलीवुड को खून पसीने से खड़ा किया है।
बॉलीवुड में समस्या क्या है पंकज त्रिपाठी, मनोज वाजपेयी जैसे टैलेंट को आप कभी धर्मा और यशराज के बैनर में नही देखेंगे क्योकि ये लोग सफलता के बाद शराब शवाब नही परोसते।
हमें यह ट्रेंड बदलना होगा, हम परिवारवाद की इन फसलों को अपने सिरों पर नही लाद सकते। बॉलीवुड का आरंभ अयोध्या के महान सूर्यवंशी राजा हरिश्चंद्र के नाम से हुआ था आज उसी बॉलीवुड के कुछ अभिनेता यदि हिन्दू संस्कृति के लिए खतरा है तो बॉलीवुड को बहिष्कार की नही फिल्टर की आवश्यकता है।
बिहार के एक छोटे से गाँव से आया लड़का इंडस्ट्री पर छाया और फिर उसकी ऐसी दुर्गति की गई कि उसे हाथ जोड़कर निवेदन करना पड़ा कि मेरी मूवी थियेटर में देखो वरना ये लोग मुझे बॉलीवुड से निकाल देंगे। क्या यह करुण पुकार इशारा नही करती की हमे दादा साहेब फाल्के की विरासत बचाना चाहिए ना कि खुद ही उसे तबाह कर देना चाहिए।
फराह खान ने अपनी फिल्म हैप्पी न्यू ईयर में नसीरुद्दीन शाह के लड़के को लॉन्च किया। वह लड़का एक्टिंग में कमजोर था यह वो गर्व से कपिल के शो पर बता रही है तो ऐसी क्या आवश्यकता आ पड़ी जो आपको प्रोडक्शन हाउस के बाहर खड़ी टैलेंट की भीड़ त्याग कर एक नौसिखिया लेना पड़ा।
आप स्वयं सोचे किसी समय चिरंजीवी, नागार्जुन और रजनीकांत जैसे दक्षिणी दिग्गज हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री में काम करते थे मगर अब महेश बाबू, प्रभास, विजय जैसे बड़े एक्टर क्यो बॉलीवुड की फिल्में नही करते??? जहाँ तक हिन्दी ना आने का सवाल है तो वो तो हमेशा से दक्षिण के कलाकारों के लिए डब होती रही है।
बुद्धिजीवी ध्यान रखे मैं नेपोटिज्म के पूरा खिलाफ नही हु। सनी देओल, अनिल कपूर और ऋतिक रोशन भी नेपोटिज्म की उपज है मगर वे योग्य है। वही दूसरी ओर वरुण धवन, ईशा देओल और सैफ अली खान जैसे भी है जो समय के साथ समाप्त हो गए या हो रहे है।
नेपोटिज्म पूरी तरह ना तो सफल होता है ना ही हमेशा बुरा होता है मगर जब आप मणिकर्णिका की कंगना रनौत को छोड़कर अनन्या पांडे को पुरस्कार देते है तो फिर यह कहना पड़ेगा कि अब बहुत हुआ।
बहरहाल आज के बाद हर राष्ट्रवादी आने वाली फिल्मों का आंकलन स्वयं करे यदि आप देखते है कि फ़िल्म की कास्टिंग वंशवादी है तो उसका सारा काम बिगाड़ दीजिये। IMDB पर उसकी रेटिंग एक दे और कमेंट सिर्फ इतना होना चाहिए "Nepotism does not produce talent" इसके अतिरिक्त ज्यादा फिलोसॉफी में घुसकर अधिक कमेंट ना करे वरना लोगो को मुद्दा मिलेगा इंटोलेरेंट शब्द उठाने का।
यदि दो साल तक वरुण धवन, आलिया भट्ट और करण जौहर की हर मूवी पर ऊपर वर्णित कमेंट चलता रहा तो यकीन मानिए 2022 तक बॉलीवुड फिर से देवानंद और राजेश खन्ना जैसे हीरे निकालने लगेगा। पिछले 5 वर्षों में हमने शाहरुख खान की फ़िल्म छोड़िए एक गाना भी नही चलने दिया यह गवाह है कि हम जीत रहे है अंत समय मे बॉयकॉट बॉलीवुड करके बेड़ागर्क ना करे।
यह तस्वीर में दिया मीम नेपोटिज्म पर जोक है ध्यान रहे सुहाना खान की कोई फ़िल्म हिट ना हो।