Ghanshyam Prasad's Album: Wall Photos

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क्या आपको पता है, 1967 में भारत ने चीन के 300 सैनिक मार दिए थे?

और मक्कार कांग्रेसी इस सफलता का श्रेय क्यों नहीं लेते??

तो सुनिए हुआ क्या था.

वास्तव में 1967 में हमारे जांबाज सैनिकों ने चीनियों के दांत खट्टे कर दिए थे पर इसमें कांग्रेस सरकार का कोई रोल नहीं था।

हुआ ये था कि 1965 की लड़ाई में पाकिस्तान पस्त हो रहा था..... अयूब खान भागा-भागा चीन गया........... चीन से आग्रह किया कि वह भी एक मोर्चा खोल दे, ताकि भारत परास्त हो जाय।

चीन ने पाकिस्तान की मदद करने के लिए भारत को साफ़ तौर पर चेतावनी दी कि... भारतीय सेना अपनी दो पोस्ट खाली कर दे. एक चौकी था जेलेप और दूसरा था प्रसिद्ध नाथू ला.

भीगी बिल्ली कांग्रेस ने सीधे तौर पर इस आदेश को मानना स्वीकार किया... और सेना को आदेश दिया कि भारत दोनों चौकी खाली कर दे.

यह वह समय था जब धरती के लाल,लाल बहादुर शास्त्री का रहस्यमय निधन ताशकंद में हो गया था और इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री बन चुकी थी.

तो एक चौकी को आदेशानुसार खाली कर दिया गया और उस पर बाकायदा चीनियों ने कब्ज़ा भी कर लिया बिना एक बूँद रक्त बहाए.

दुसरे नाथुला पर तैनात थे जनरल सगत सिंह. उन्हें कोर मुख्यालय प्रमुख जनरल बेवूर ने आदेश दिया नाथू ला खाली करने का.

पर जनरल सगत सिंह ने उस आदेश को मानने से साफ़ तौर पर इनकार कर दिया.

आगे की कहानी आपको खून के आसूं रुला देगी.

जनरल सगत सिंह अपनी टुकड़ी के साथ आदेश न होने के बावजूद डटे रहे.
भयंकर झड़प हुई.
भारत के करीब 65 सैनिक शहीद हो गए. हमारे जवान अपने हौसलों के साथ खुले में खड़े थे जबकि चीन अपेक्षाकृत बेहतर हालात में हमारे जवानों को मार रहे थे.

जानते हैं, ऐसा क्यों था? यह इसलिए था क्योंकि भारतीय सेना के पास वहां तोप थी लेकिन उसे चलाने का आदेश देने का हक़ भारतीय सेनाध्यक्ष को भी नहीं था.

फिर पढ़ लीजिये. तोप चलाने का आदेश सेनाध्यक्ष भी नहीं दे सकते थे चाहे आपके कितने भी जवान मारे जाएं.

यह अधिकार सीधे प्रधानमंत्री के पास था. उनके आदेश से ही तोप चलाया जा सकता था. यहां सैनिक वीर गति को प्राप्त हो रहे थे और पीएम मैडम किसी भी तरह इसे इस्तेमाल करने के मूड में नहीं थी.

फिर.... किसी भी बात की परवाह किये बिना जनरल सगत सिंह ने सीधे अपने सैनिकों को तोप इस्तेमाल करने को कहा.

उसके बाद तो भारतीय सेना ने चीनियों पर ऐसा कहर बरपायया कि देखते ही देखते चीन के 300 चीनी जवान वहां इकतरफा ख़त्म कर दिए गए थे.

मामला ख़त्म होते ही जनरल सगत को सज़ा मिलनी ही थी. उन्हें वहां से तबादला कर कहीं और भेज दिया गया लेकिन नाथु ला दर्रा उसी महापुरुष के कारण सुरक्षित रहा.

कल्पना कीजिये. भारत की यह शौर्य गाथा जिसे पाठ्यक्रम का हिस्सा होना था, यह देश के नौनिहालों को बताना था.... पर नहीं बताया गया क्योंकि अगर यह बताया जाता तो भारत की यह शौर्यगाथा कांग्रेस की शर्म गाथा बन कर सामने आती.

इसलिए इतनी बड़ी जीत को देश से लगभग छिपा लिया गया.

एक धमकी पर दो चौकी खाली कर देने का आदेश देने वाले, तोप चलाने की इजाज़त किसी कीमत पर भी नहीं देने वाले ये वही कांग्रेस के लोग हैं जिन्होंने बाद में सामान्य गोली चलाने तक का अधिकार भी समझौता कर भारतीय सेना से वहां छीन लिया. और आज उसी कांग्रेस का गूंगा सरदार कहता है कि खाली हाथ क्यों भेजा सेना को वहां.
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