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समसामयिक विश्लेषण - 12

किसने किसके कितने सैनिक मारे यह मैटर नही करता मगर भारत चीन केस में इसके मायने है क्योकि भारत के सैनिक तैयार नही थे जबकि चीन के सैनिक हथियारों के साथ थे फिर भी दोगुनी तादाद में मारे गए। इसका सीधा सीधा फायदा पहले जापान ने उठाया और फिर अमेरिका ने।

चीन में यदि कुछ करने की कूबत होती तो अब तक वह बहुत कुछ कर चुका होता मगर वह भी हमारी तरह बस टेबल पर चर्चा कर रहा है। दूसरी ओर अमेरिका ने अपने दो युद्धपोत दक्षिणी चीनी सागर में भेज दिए है ताकि वे जापान, वियतनाम और सिंगापुर के हितों की रक्षा कर सके।

अमेरिका ने यूएसएस निमिज और यूएसएस रोनाल्ड रीगन नामक दो एयरक्राफ्ट भेजे जो परमाणु बम से लैस है और क्यूबा मिसाइल संकट के बाद ऐसा गुस्सा अमेरिका ने पहली बार दिखाया है।

काफी हद तक परिस्थितियां द्वितीय विश्वयुद्ध जैसी हो चुकी है, इस बार चीन जर्मनी की भूमिका में है और खुद ही अपने जाल में फंस रहा है। सबसे मुख्य भूमिका जापान की होगी क्योकि यह जापान का अमेरिका से रक्षा समझौता है जापान चीन को हमले के लिये उकसाएगा और अमेरिका युद्ध मे कूदेगा।

इतिहास गवाह है जब जब अमेरिका युद्ध मे आता है उस पक्ष की पराजय की कोई संभावना नही होती।

अमेरिका के बाद अगला झटका विश्व स्वास्थ्य संगठन का है जिसने अब जाकर साफ साफ कहा कि कोरोना की खबर उसे चीनी सरकार से नही बल्कि चीन में स्थित अपने ही एक कार्यालय से मिली थी। इससे एक बात साफ हो जाती है कि भारत और यूरोपियन यूनियन को विश्व स्वास्थ्य संगठन पर चीन के विरुद्ध अब दबाव बनाना चाहिए साथ ही उसे संयुक्त राष्ट्र में घसीटना चाहिए।

इन दोनों के अतिरिक्त अगला झटका कनाडा का है, वर्तमान में कनाडा के 3 लाख लोग हांगकांग में रह रहे है। हांगकांग चीन का विशेष राज्य है जिसका अपना अलग कानून है, मगर अब चीन ने हांगकांग में प्रेस की स्वतंत्रता खत्म करने का विचार किया है, हांगकांग में बड़े स्तर पर सरकार के आलोचकों को गिरफ्तार किया गया है। जिसके चलते कनाडा ने हांगकांग के साथ अपनी प्रत्यर्पण संधि रद्द कर दी है। अब कनाडा चीन के बीच टैक्स फ्री व्यापार नही हो सकेगा।

इसलिए एक प्रकार से चीन खाना खाने की बजाए मुँह में ठूस रहा है जिससे उसी का मुँह जलेगा, चीन स्वतः ही अपने अंत की ओर अग्रसर है हो सकता है आगामी 2-3 महीने में आपको और अधिक ऐसे एन्टी चाइना मूवमेंट देखने को मिलते रहे।

इसके अतिरिक्त भारत सरकार ने एक कमाल का निर्णय लिया, आत्मनिर्भर भारत के तहत सरकार ने विदेशी ई कॉमर्स कंपनियों पर 2% की अतिरिक्त ड्यूटी बढ़ा दी। ये ड्यूटी ऑनलाइन ट्रांसेक्शन पर लगेगी, ऐसा भारत की ई कॉमर्स कंपनियों को बढ़ावा देने के लिए हो रहा है। अब देखते जाइये कुछ दिनों में लोग दो प्रकार की बाते करेंगे पहली "विदेशी कंपनियां महंगे प्रोडक्ट बेचकर देश को लूट रही है और मोदीजी कुछ नही कर रहे है" दूसरा "विदेशी ई कॉमर्स कंपनियां भारत मे निवेश करने को तैयार नही है"

कुल मिलाकर कुछ भी कीजिये भैस तो गोबर ही करेगी और मूर्खो को पूरा मौका मिलेगा अपनी सरकार को क्रिटिसाइज करने का।

परख सक्सेना