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समसामयिक विश्लेषण - 9

चीन के विदेश और रक्षा मंत्रालय ने चीनी सैनिकों की मौत का आंकड़ा बताने से मना कर दिया है क्योकि उनका मानना है की आंकड़े बताने से लोग भारत चीन की तुलना करेंगे। भारतीय सेना ने अवश्य आंकड़े बताए है की भारत के 20 और चीन के 43 सैनिक मारे गए। बहरहाल ऐसे समय मे हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी सरकार और सेना का समर्थन करे तथा उन्ही के आंकड़ों पर ट्रस्ट करे।

1967 में जब नाथूला में भारत चीन का युद्ध हुआ था तब खुद श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने आकाशवाणी पर आकर विजय संदेश सुनाया था, उस समय भी चीन यही कह रहा था कि वो हारा नही है। मगर अंततः 1975 में जब सिक्किम का भारत मे विलय हो गया इसके बाद उसकी हिम्मत टूट गई और 1992 में उसने हार स्वीकार की तथा 2004 में सिक्किम पर भारत के आधिपत्य को मान लिया। उस समय चीन के 350 सैनिक मारे गए थे।

भारतीय जनरल सैम मानिक शॉ और जनरल राफेल जैकब ने भी बयान दिया था कि हमने चीन के 500 से अधिक सैनिक मारे है। बहरहाल जो भी हो 1967 का युद्ध हो या 2020 की हाथापाई एक बात तो तय है कि भारत शांत नही बैठेगा, 1962 में हमने चीन पर विश्वास किया और उसने विश्वासघात से युद्ध जीता। मगर अब भारत चीन पर विश्वास नही करता, दूसरी बात इस समय चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पर भी खतरा मंडरा रहा है।

बीजिंग में अचानक कोरोना के केस मिलने से हड़कंप मचा हुआ है और अब कम्युनिस्ट पार्टी के कुछ नेता मन बनाने लगे है बीजिंग के तख्तापलट का। बहरहाल जो भी हो चीन को यह सबक अवश्य मिल गया है कि भारत से टकराने का अंजाम 1962 वाला नही 1967 वाला होगा।

कुछ सरकार विरोधी तत्व अफवाह फैला रहे है कि मोदी सरकार एक बड़ा टेंडर चीनी कंपनी को दे रही है। मुझे हैरानी होती है जब हिंदूवादी भी इन अफवाहों में आकर दिल्ली पर उंगली उठा देते है। सबसे पहली बात तो यह कि देश मे एक इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट है जिस पर सबसे कम खर्चे की बोली चीनी कंपनी ने लगाई है। इस पर RSS ने मोदी जी को विशेष संज्ञान लेने के लिए कहा है। अब यहाँ दो स्थिति बनती है यदि हम चीनी कंपनी को नकार देते है तो हम वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन की संधि का उल्लंघन करेंगे और वह कम्पनी हमे अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में घेर लेगी। दूसरा उपाय यह है कि इस प्रकार की आपदा से निपटने के लिए हर देश एक चीटिंग अवश्य करता है कदाचित भारत भी वही करे।

होगा यह कि सरकार प्रोजेक्ट को कुछ दिनों के लिये टाल देगी और इसी बीच एक जापानी कंपनी अचानक से इससे भी सस्ती बोली लगाएगी, जापानी कंपनी के साथ साठगांठ करके यह प्रोजेक्ट उसे मिल जाएगा। हर देश शत्रु का पत्ता काटने के लिए यही उपाय प्रयोग करता है और शत प्रतिशत भारत भी यही करेगा। इसलिए आँख बंद करके फायरिंग ना करे, आश्चर्य है जिस टेंडर को अभी अफसरों ने देखा भी नही है उस टेंडर को चीन को देने की अफवाह तक फैला दी गयी।

और एक बात लश्कर ए कांग्रेस के कुछ आतंकी भारत बनाम चीन को मोदी बनाम चीन का रूप दे रहे है। मेरा आग्रह है उन्हें जो बोलना है बोलने दे क्योकि मोदी भक्त भी जब 1962 का मुद्दा उठाते है तो पंडित नेहरू पर ऐसे कीचड़ उछालते है मानो प्रधानमंत्री पद की कोई गरिमा ना रही हो। भक्तों और गुलामो की इस नीच राजनीति को उन्ही तक रहने दे ज्ञानीजन अपने हाथ ना गंदे करे। मोदी देश के अच्छे और सुदृढ प्रधानमंत्री है इसलिए हम उनके साथ है।

भीष्म पितामह ने कहा था कि वो राजा अपने देश के लिए कभी शुभ नही होता जो देश की वर्तमान परिस्थितियों के लिए अपने अतीत को उत्तरदायी ठहराकर संतुष्ट हो जाये। आगे आप सभी समझदार है, भक्त ध्यान रखे कि पितामह के इस कथन में नेहरू अतीत है और गुलाम यह ध्यान रखे कि जिस मोदी को आप आज कोस रहे है वह भी कभी अतीत अवश्य बनेंगे। इसलिए कीचड़ उछालने से अच्छा है पार्टीवाद की जगह राष्ट्रवाद को स्थान दे।

मोदीजी और बीजेपी का कट्टरता से समर्थन मैं भी करता हु, मगर ये कोई महानता नही होती कि हर दूसरी पोस्ट में पूर्व प्रधानमंत्रियों को कोसकर खुद को शाबाशी देते रहो। संकट सीमा पर है, एक दूसरे से बाद में निपट लेंगे अभी राष्ट्र के लिये संगठित होने का समय है।

परख सक्सेना