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अटक का किला

यह मात्र एक किला नही है बल्कि इतिहास का एक पन्ना है जो भारत की लूट की दास्तां संभाले हुए है। इस किले के बहाने आज आप जान पाएंगे कि भारत के निर्माता सम्राट भरत कितने अधिक बुद्धिमान थे।

जब सम्राट भरत ने हमारे देश का नक्शा डिजाइन किया तब उन्होंने छोटी से छोटी चीज का ध्यान रखा। जैसे भारत की रक्षा, दक्षिण और पूर्व में समुद्र था तो उत्तर में हिमालय, मगर पश्चिम में सहायता के लिए कुछ नही था। इसलिए भारत देश का विस्तार किया गया, आज के अफगानिस्तान तक मानवों को बसाया गया।

अफगानिस्तान के आगे ईरान का रेगिस्तान था जहाँ रेतीले तूफानों के कारण किसी के लिये भी भारत तक पहुँचना संभव नही था।

भरत के बाद सम्राट रघु, प्रभु श्री राम, सम्राट कुरु और धर्मराज युधिष्ठिर ने इस पूरे भूभाग को बार बार एकसूत्र में बांध कर उस पर शासन किया। मगर ईरान में फिर भी बसावट नही की गई।

इसके बाद जब मौर्य वंश की सत्ता स्थापित हुई तब सम्राट अशोक ने एक ऐसी गलती की जिसका फल देश आजतक भुगत रहा है।

दरसल भरत चाहते थे कि वे इस रेगिस्तान में कभी कोई बस्ती ना बसाए और इसे खुला मैदान रहने दे ताकि यदि कोई भारत पर आक्रमण करने आये तो वह या तो रेगिस्तान में फंस जाए या फिर खुले मैदान में होने के कारण पराजय का सामना करे।

अशोक ने इसके उलट ईरान में बसावट की, इसका नतीजा यह हुआ कि अब भारत का सीधा सम्पर्क अन्य देशों से जुड़ गया। अरब में इस्लाम की स्थापना के बाद जेहादियो ने बड़ी आसानी से ईरान पर कब्जा कर लिया और फिर अफगानिस्तान को भी भारत से तोड़ दिया।

इसके बाद शक, हूण, तुर्क, अफगान और मुगल कोई पीछे ना रहा सब आते रहे और भारत की अखण्ड संपदा लूटते रहे।

विदेशियों को रोकने का बीड़ा एक अन्य विदेशी कौम के मुगल बादशाह अकबर ने उठाया। अकबर ने 1579 में काबुल में घुसकर अफगानों का नरसंहार किया और अकबर ने यह भाँप लिया था कि काबुल से संकट हमेशा दिल्ली की ओर आता रहेगा इसलिए उसने वर्तमान अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा पर एक किला बनवाया अटक।

1581 में बनवाया अटक किला वह प्राचीर था जिसने सदियों तक भारत को बचा लिया। 1739 में नादिरशाह ने धोखे से अटक किले में प्रवेश किया और उसे जीत लिया और इस तरह दोबारा एक अध्याय आरंभ हुआ भारत की लूट का।

1739 से 1757 तक नादिरशाह और उसका गुलाम अहमद शाह अब्दाली भारत को लूटते रहे मगर इसी दौर में मराठे एक महाशक्ति बनकर उभरे। मराठाओ ने उत्तर भारत मे प्रवेश किया। अजमेर, आगरा और दिल्ली को जीतते हुए मराठे पंजाब में घुस गए।

पेशवा के भाई और मराठा सेनापति राघोबा दादा ने अटक पर कब्जा कर लिया इस तरह अब वर्षो बाद पूरा भारत भगवा ध्वज के नीचे आ गया। अटक के बाद राघोबा ने अफगानिस्तान में लूटपाट की और अफगानों को दौड़ा दौड़ा कर मारा। विट्ठल जी गायकवाड़ को अटक का किलेदार बनाकर लौट आए।

अब्दाली ने धोखे से गायकवाड़ का कत्ल करवा दिया और पाँचवी बार भारत मे घुस आया। इस बार पेशवा ने अपने चचेरे भाई सदाशिव भाऊ को अब्दाली को खदेड़ने के उद्देश्य से भेजा। भाऊ ने अब्दाली से लड़ने के लिये यमुना के दोआब क्षेत्र को चुना था मगर विधाता ने ऐसी स्थिति बना दी कि यह युद्ध दिल्ली और आगरा में ना होकर पानीपत में हुआ।

मराठे पराजित हुए और अटक का किला स्थायी रूप से फिर से अफगानों के हाथ लग गया, 1767 में सिखों ने इस पर कब्जा कर लिया जिसके एवज में अब्दाली फिर भारत आया तथा लाहौर में हिन्दुओ और सिखो का जमकर नरसंहार किया।

अब्दाली ने पंजाब से हिन्दू धर्म का नामोनिशान मिटा दिया तथा वाराणसी से ज्यादा मंदिर वाले शहर लाहौर को बर्बाद कर दिया। 1805 में महान सिख सम्राट रणजीत सिंह ने अटक को दोबारा आजाद किया।

महाराज ने अटक किले से अफगानों को सदा के लिए उखाड़ फेंका तथा लाहौर में अफगानों द्वारा तोड़े गए मंदिरों और गुरुद्वारों की पुनः स्थापना की। महाराज रणजीत सिंह एक आदर्श राजा थे उनके कारण कश्मीर और पंजाब में स्वराज्य की स्थापना हुई।

मगर उनके बाद जब सिख साम्राज्य का पतन हुआ तो यह किला अंग्रेजो की सिख रेजिमेंट का गढ़ बन गया।

अटक के किले ने वर्षो तक दोबारा भारत को बचाये रखा और 1947 में स्वयं इस्लामिक आतंकवाद की भेंट चढ़ गया। अटक अब पाकिस्तान का अंग था, पाकिस्तानी सेना ने अटक को एक छावनी में बदल दिया तथा सिखों द्वारा किले के दरवाजे पर स्थापित की हुई भगवान गणेश की प्रतिमा खंडित की और कुछ गायों की कुर्बानी दी।

आज भी यह किला पाकिस्तान की सेना का शिविर बना हुआ है सदियों तक भारत की रक्षा करने वाला यह किला आज भारत के विरुद्ध षडयंत्रो का गढ़ बन गया है। पाकिस्तानी सेना अफगानिस्तान से तालिबानियों और आतंकवादियों को घुसाती रहती है और ये आतंकवादी कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देते है।

महात्मा गांधी को मारने के बाद नाथूराम गोडसे ने बयान दिया था कि जब तक अटक पर भगवा नही फहराता और सिंधु नदी तिरंगे के नीचे नही बहती तब तक मेरी अस्थियां विसर्जित ना की जाए।

गोडसे जी की इस एक बात से आप अंदाज लगा सकते है कि यह किला 1581 से लेकर 2020 तक हर समय हमारे लिए आवश्यक है। किला दिखने में सामान्य हो मगर सदैव आतंकवादियों के लिये भारत का गेटवे रहा है।

परख सक्सेना