जो लोग शाहीन बाग से डर गए.... शाहीन बाग ने पूरे देश को जूते की नोक पर रक्खा ! दिल्ली नरसंहार की सुगबुगाहट पहले से थी... रोकने में असफल रहे ! जामिया,JNU और AMU .... भारत माँ को कहाँ गालियां नहीं पड़ी ? AMU में तो हमारी कब्रें खुदती रहीं.... जामिया वाले बसें जलाकर तापते रहे ! पुलिस वालों की कैमरे के सामने हत्याएं हुईं... देश के प्रधानमंत्री,गृहमंत्री को बच्चों के मुँह से जान से मारने की धमकियां दिलवाई गईं ! मगर कोई रोक टोक नहीं लगाई गई ! दंगों की रचयिता सफूरा जरगर को छुड़वाने के लिए मोमिन बुद्धिजीवी एक सत्ता में बैठे शक्तिमान से मिले... तो सरकारी वकील खुद सफूरा की जमानत की अर्जी के पक्ष में जा खड़ा हुआ !
दर्जन भर फिल्में आईं,जिसमे हमे और हमारे आदर्शों,भगवानों को गालियां दी गईं,हम रोते, बिलखते,चिल्लाते रहे.... सुप्रीम कोर्ट में नाक रगड़ते रहे.... मगर सत्ताधीश ने हमारी एक न सुनी... बैन तो दूर ... एक फ्रेम,एक डायलाग नहीं हटाया गया... अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर !.. OTT प्लेटफार्म पर पाताललोक चलता रहा... हम अपने बाल नोचते रहे... मगर कहा गया कि OTT प्लेटफार्म पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है....
फिर अब पूरी दुनिया मे OTT पर ही रिलीज़ होने जा रही 'मोहम्मद द मैसेंजर ऑफ़ गॉड' भारत मे क्यों प्रतिबंधित हो गई ? आप और उन 'तुष्टिकारकों में क्या फर्क रह गया, जिन्होंने 'सैटेनिक वर्सज़' और लज्जा पर रोक लगाई थी ? आपने हर 'कथित अल्पसंख्यक' की डिमांड के अनुसार फिल्मों पर रोक लगाई... मगर हम सनातनियो के भगवानों,परंपराओं का मज़ाक- उपहास करने वाली एक फ़िल्म,किताब,सीरियल पर रोक नहीं लगा सके.... क्योकि हम उद्दंड और लफंगे नहीं हैं,इसलिए...
आप किसी से अलग नहीं.... आप भी वही निकले... बिल्कुल वही !!