Ghanshyam Prasad's Album: Wall Photos

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राफेल सौदे के आफ-सेट क्लाज की वजह से देश का ध्यान अंबानी की रिलायंस डिफेंस लिमिटेड की ओर गया ..और एक से एक बेवकूफी भरे प्रश्न उठाये जाने लगे कि..अनिल अंबानी को विमान बनाने का अनुभव कहां हैं ?? ( जबकि मूर्खता त्याग कर थोड़ी सी बुद्धि लगाते तो ..समझ में आ जाता कि 60 की उम्र में सरकारी कम्पनियो या सरकारी संस्थानों से रिटायर्ड होने का प्रावधान है ..और कोई भी कानून प्राईवेट कम्पनियो को सरकारी कम्पनियो से रिटायर्ड, अनुभवी लोगो की सेवाएं तक लेने से नहीं रोकती हैं )
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खैर 2014 के बाद ...कुछ देश की इंडस्ट्रियल रूढ़िवादी माहौल में परिवर्तन हुआ... कुछ अन्य कम्पनियो जो पूर्व में किसी दूसरे व्यापार/कारबार मे लगी हुई थी..रक्षा से संबंधित उपकरणों में उतरी ! जैसे पुंज लायड कम्पनी , लार्सन एंड टुब्रो , और महिंद्रा डिफेंस लिमिटेड !
#पुज लायड कम्पनी ने इजराइल की कम्पनी से भागीदारी करके मध्य प्रदेश के ग्वालियर में छोटे हथियारों जैसे रायफल , मशीन गन आदि बनाने की फैक्ट्री खोल लिया ..और दो साल से उत्पादन भी कर रही हैं।

#लार्सन व टुब्रो वैसे तो हिंदुस्तान एरोनाटिक्स लिमिटेड द्वारा निर्मित तेजस लड़ाकू विमान के कुछ महत्वपूर्ण पुर्जे बनाती ही हैं ...उसके अतिरिक्त दक्षिणी कोरिया की कम्पनी से साझेदारी करके K-9 टैंक ..बना रही है ..भारतीय सेना के लिये !
भारत ने K9 का जो सौदा किया था..उसमे से 10 टैंक तो बने बनाये आने थे ! शेष 100 टैंको का निर्माण भारत मे ही होने थे ! लार्सन एंड टुब्रो द्वारा ।

#भारत सरकार ने अमेरिकी कम्पनी से M777 ultralight Artillery towed Gun का सौद किया था ..25 तो बने बनाये आने थे ..और 120 को बनाने का काम महिंद्रा डिफेंस लिमिटेड व अमेरिकी कम्पनी के साझेदारी से होना है। महिंद्रा डिफेंस लिमिटेड भी अब तक 6 M777 ultralight Artillery Gun ( तोप ) बना ( मुख्यतः एसम्बलिंग करके ) कर भारतीय सेना को सौप चुकी हैं !
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दुनिया में अधिकांश उन्नत किस्म के हथियार बनाने वाली कम्पनियाँ निजी क्षेत्र में ही हैं ! चाहे दासो हो या बोईंग या लाकहिड मार्टिन ..सब निजी हाथ में है...परंतु देश के कानून के अंतर्गत काम करती हैं !
अमेरिका में इतनी स्वतंत्रता होते हुये भी अमेरिकी कम्पनियाँ बिना सरकार की अनुमति के किसी दूसरे देश को उन्नत किस्म के हथियारों को नहीं बेंच सकती थी ।
और अमेरिकी लेटेस्ट हथियार दूसरे देश को नहीं बेंचता ।

जबकि दूसरी और रूस की कम्पनियाँ जो हथियार बनाती थी...उसका लेटेस्ट माडल भी दूसरे देशो को बेंच देती थी !
यही कारण है...कि भारत सहित दुनिया के दूसरे देश रुस से ही हथियार खरीदा करते थे !
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भारत में भी सीमित रूप से प्राईवेट सेक्टर रक्षा उत्पादन के लिये खोले जा रहे हैं .और प्राईवेट कम्पनियो उतर भी चुकी हैं.....तो कानून का फ्रेम वर्क भी दुरुस्त करना पड़ेगा ! और बुद्धिजीवी वर्ग को भी ये समझना पड़ेगा कि रक्षा उत्पादन से जुड़ी कम्पनियाँ भी रोजगार प्रदान करती हैं ! केवल मनरेगा से ही काम नहीं चलने वाला !!
संजय द्विवेदी